Kalpana Dutt In Hindi Biography | कल्पना दत्त का जीवन परिचय : ‘बाघा जतीन’ के नाम से विख्यात

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कल्पना दत्त का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Kalpana Dutt History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)

यह प्रसिद्ध भारतीय महिला क्रान्तिकारी थी जिन्होंने अंग्रेजी सरकार को भारत से मिटाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों का मार्ग अपनाया था। वे सूर्यसेन द्वारा स्थापित हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी की सक्रिय सदस्या थी, 1930 में चटगांव शस्त्रागार पर अधिकार के समय व अस्थाई क्रांतिकारी सरकार की स्थापना पर वे सूर्यसेन के साथ थी, वे सूर्यसेन के साथ 1933 में पकडी गई एवं ब्रिटिश सरकार ने आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी

कल्पना दत्त
पूरा नाम कल्पना दत्त
अन्य नाम कल्पना जोशी
जन्म 27 जुलाई, 1913
जन्म भूमि चटगांव (अब बांग्लादेश), बंगाल
मृत्यु 8 फ़रवरी, 1995
मृत्यु स्थान कलकत्ता (अब कोलकाता), पश्चिम बंगाल
पति/पत्नी पूरन चंद जोशी
नागरिकता भारतीय
जेल यात्रा फ़रवरी, 1934 ई. में 21 वर्ष की कल्पना दत्त को आजीवन कारावास की सज़ा हुई, लेकिन 1937 ई. में जब पहली बार प्रदेशों में भारतीय मंत्रिमंडल बने, तब गांधी जी, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि के विशेष प्रयत्नों से कल्पना जेल से बाहर आ सकीं।
अन्य जानकारी सितम्बर, 1979 ई. में कल्पना दत्त को पुणे में ‘वीर महिला’ की उपाधि से सम्मानित किया गया।

14 की उम्र में कल्पना दत्त ने दिया था इंकलाबी भाषण

कल्पना दत्त का जन्म 27 जुलाई 1913 को चिट्टगौंग के श्रीपुर गांव में हुआ. ये जगह अब बांग्लादेश का हिस्सा है. यह वही दौर था जब अंग्रेजों से देश को आजाद कराने के लिए मुहिम तेज हो रही थी. गुलामी की फिजाओं में कल्पना दत्त बड़ी होती रहीं. चिट्टगौंग/चटगांव से ही प्रारंभिक शिक्षा हासिल की. उनके अंदर भी देश को आजाद कराने की ललक उठने लगी.

इतिहासकारों के मुताबिक, कल्पना महज़ 14 वर्ष की थीं जब उन्हें चटगांव के विद्यार्थी सम्मेलन में भाषण देने का मौक़ा मिला. उनके इंकलाबी भाषण ने लोगों को कल्पना की निडरता और गुलामी के प्रति सोच का एहसास कराया. कल्पना ने अपने भाषण में कहा था, ‘अगर दुनिया में हमें गर्व से सिर ऊंचा करके जीना है तो माथे से गुलामी का कलंक मिटाना होगा. साथियों, अंग्रेजों के चंगुल से आजादी पाने के लिए शक्ति का संचय करो. क्रांतिकारियों का साथ दो. ब्रिटिशर्स से लड़ो.’

पढ़ाई के दौरान ही आजादी की लड़ाई में कूद पड़ीं

साल 1929 में हाईस्कूल की परीक्षा पास कर कलकत्ता का रुख किया. यहां बेथ्यून कॉलेज में एडमीशन ले लिया. स्नातक की पढ़ाई के दौरान कल्पना क्रांतिकारियों के बारे में भी पढ़ती रहीं. वो उनसे बहुत अधिक प्रभावित हुईं. वह समय निकालकर तैराकी सीखती थीं और व्यायाम भी करती थीं. ताकि अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए शरीर को मजबूत बनाया जा सके. यह वही समय था जब उनके चाचा आजादी के आंदोलनों में हिस्सा ले रहे थे.

आगे वो छात्र संघ से जुड़ से गईं. जहां उनकी मुलाकात बीना दास और प्रीतिलता वड्डेदार जैसी मशहूर क्रांतिकारियों से हुई. जो आजादी के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही थीं. 18 अप्रैल 1930 को क्रांतिकारियों ने ‘चटगांव शस्त्रागार लूट’ को अंजाम दिया. जिसके बाद कल्पना कोलकाता से वापस अपने गांव चटगांव आ गईं. वो स्वतंत्रता सेनानी सूर्य सेन के संपर्क में थीं, जिन्हें क्रांतिकारी मास्टर दा के नाम से पुकारते थे.

कल्पना दत्त उनके ‘इंडियन रिपब्लिकन आर्मी’ में शामिल हो गई थीं. अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. चटगांव लूट के बाद कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार किया गया. कल्पना भी अंग्रेजों की निगाहों में चढ़ गई थीं.

लड़के के भेष में बम धमाका करने की बनाई योजना

संगठन के कई क्रांतिकारी गिरफ्तार कर लिए गए थे. कल्पना क्रांतिकारियों को गोला बारूद पहुंचाने का काम करती रहीं. इसके साथ ही उन्होंने अपने साथियों के संग निशाना लगाना सीखा. बंदूक चलाने में निपुण हो गईं. कई बार सूर्य सेन और बाकी क्रांतिकारियों के साथ अग्रेजों का डटकर मुकाबला किया.

आगे गिरफ्तार साथियों को जेल से रिहा कराने के लिए अदालत को बम से उड़ाने की योजना बनाई. जिसमें कल्पना दत्त के साथ उनकी साथी प्रीतिलता जैसी महिला क्रांतिकारी भी शामिल थीं.

सितंबर 1931 को कल्पना ने अपने साथियों के साथ हमला करने की एक तारीख मुकर्रर की. इसके लिए उन्होंने अपना भेष बदला. रिपोर्ट्स के मुताबिक, कल्पना ने लड़के के वेशभूषा में इस योजना को अंजाम देने वाली थीं. लेकिन कहीं से इसकी सूचना अंग्रेजों को हो गई. उन्होंने इससे पहले ही कल्पना को गिरफ्तार कर लिया. लेकिन सबूत ना मिलने की बुनियाद पर उन्हें रिहा कर दिया गया.

अंग्रेजों को कई बार चकमा देकर भागने में कामयाब रहीं

ब्रिटिश सरकार की नजरों में कल्पना आ चुकी थीं. उन्हें रिहा तो कर दिया गया था. लेकिन उन पर ब्रिटिश प्रशासन की पैनी नजर थी. उनके घर पर पुलिस का पहरा लगा दिया गया. कल्पना वेश बदलने और पुलिस को चकमा देने में माहिर थीं. वो घर से भागने में कामयाब रहीं और सूर्य सेन से जाकर मिलीं. अगले दो साल तक छिपकर अंग्रेजों से लोहा लेती रहीं. दो सालों के बाद अंग्रेजों को सूर्यसेन के ठिकाने का पता लग गया. 16 फरवरी 1933 को पुलिस ने सूर्यसेन को गिरफ्तार कर लिया लेकिन कल्पना अपने कुछ साथियों के साथ फिर से अंग्रेजों को चकमा देने में कामयाब रहीं और भाग गईं.

कल्पना अग्रेजों के साथ कई मुठभेड़ के दौरान भागने में कामयाब रही थीं. लेकिन मई 1933 को कल्पना और अग्रेज़ीं सेना का आमना सामना हुआ. कल्पना चारों ओर से घिर चुकी थीं. वो आसानी से खुद को हवाले नहीं करना चाहती थीं. कुछ देर की मुठभेड़ के बाद उन्हें हाथियार डालना पड़ा. उनकी मुलाकात मिदनापुर जेल में महात्मा गांधी से भी हुई. उन्होंने अपनी पुस्तक ‘चटगांव शस्त्रागार हमला’ में इस बात का जिक्र किया है. ‘जेल में मुझसे गांधी मिलने आए. वे मेरी क्रांतिकारी गतिविधियों से नाराज थे. लेकिन उन्होंने कहा कि मैं फिर भी तुम्हारी रिहाई की कोशिश करूंगा.”

जेल से रिहा होकर सियासत में रखा कदम

1939 में कल्पना जेल से रिहा हो गईं. वो अपनी आगे की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद सियासत में कदम रखा. वो भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गईं. जेल में रहते हुए उनकी कई कम्युनिस्ट नेताओं से मुलाकात हुई थी. उन्होंने मार्क्सवादी विचारों को भी काफी पढ़ा था. वो उनके विचारों से काफी प्रभावित हुई थीं.  1943 को पार्टी के महासचिव पूरन चंद जोशी के साथ शादी कर ली. आगे 1943 में ही बंगाल के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कल्पना को अपना उम्मीदवार बनाया. वो चुनाव जीतने में असफल रहीं.

कल्पना दत्त को मिला ‘वीर महिला’ का ख़िताब

आगे कुछ मतभेदों के चलते इनके पति और इन्होने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया. कल्पना ने चटगांव लूट पर आधारित अपनी आत्मकथा भी लिखी. वो बंगाल से दिल्ली आ गईं.  साल 1979 में कल्पना दत्त की बहादुरी और आजादी में दिए गए योगदान को देखते हुए ‘वीर महिला’ के ख़िताब से सम्मानित किया गया.

8 फरवरी 1995 में इस दुनिया से अलविदा कह दिया. देश ने एक जांबाज महिला को खो दिया था. कल्पना पर एक किताब ‘डू एंड डाई:चटगाम विद्रोह; लिखी गई. इनके ऊपर बॉलीवुड में ‘खेलेंगे हम जी जान से’ के नाम से फिल्म भी बनी जिसमें अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने इनका किरदार निभाया था. वहीं अभिषेक बच्चन भी मुख्य किरदार में थे.

तो ये थी उस आजादी की सिपाही कल्पना दत्त की कहानी, जिसने बड़ी बहादुरी और निडरता के साथ अंग्रेजों से मुकाबला किया. देश के लिए जेल भी गईं. आज उनकी बहादुरी पर देशवासियों को फख्र है.

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