इसलिए कृष्ण ने बाहर खड़े होकर देखी जुए में पांडवों की हार

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हम सभी ने सुना है और पढ़ा है कि इस दुनिया को ईश्वर संचालित करते हैं। ईश्वर की इच्छा के बिना इस संसार में एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। फिर क्यों संसार में पाप बढ़ रहा है? क्यों अनीति हो रही है? यहां तक कि महाभारत काल में तो भगवान स्वयं ही पांडवों के मित्र थे, फिर पांडवों को अपना अधिकार प्राप्त करने के लिए इतना संघर्ष क्यों करना पड़ा? आइए, ऐसे सवालों पर जानते हैं स्वयं श्रीकृष्ण द्वारा अपने मित्र उद्धव से कही गई बातें…

1/8 उद्धव ने श्रीकृष्ण से पूछे चुभनेवाले सवाल

उद्धव गीता (गीता का ही वह रूप, जिसे कान्हा के मित्र उद्धव ने लिखा है) का एक प्रसंग है, जिसमें उद्धव भगवान श्रीकृष्ण से सवाल पूछते हैं कि कृष्ण आप तो पांडवों के सखा थे, आप हर कष्ट और समस्या में उनका साथ देने की बात कहते थे, फिर आपने क्यों उन्हें द्रुत क्रीणा (जुआ) में हारने दिया? क्यों आपने द्रौपदी को भरी सभा में अपमानित हो जाने दिया? कहते हैं कि आपने द्रौपदी का चीरहरण नहीं होने दिया, एक स्त्री का भरी सभा में इतना अपमान होने पर आपने क्या बचाया कृष्ण? इतना कहते हुए उद्धव का गला रुंध गया।

2/8 कान्हा ने समझी उद्धव की पीड़ा

अपने मित्र उद्धव की बात सुनकर कान्हा मुस्कुराए और बोले, उद्धव मैं सचमुच पांडवों के साथ था। मैंने सदैव उनका हित करना चाहा। मैं सदैव अपने हर भक्त के साथ रहता हूं। मेरी उपस्थिति पर संदेह मत करो और ना ही मेरी नीयत पर। उद्धव! युधिष्ठिर और दुर्योधन में सिर्फ एक ही अंतर था, जिस कारण गलत राह पर होते हुए भी दुर्योधन जीता और युधिष्ठिर हार गए।

3/8 उद्धव ने पूछा अगला सवाल

उद्धव ने कहा, कृष्ण अगर आप युधिष्ठिर के साथ थे तो उन्हें भला किसी और चीज की क्या आवश्यकता थी? और आखिर वह अंतर क्या था? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव वह अंतर विवेक का अंतर था। दुर्योधन को द्रुत क्रीणा नहीं आती थी लेकिन उसने अपने विवेक का उपयोग किया और कहा कि उसकी तरफ से शकुनी यह खेल खेलेंगे। यह खेल पांडवों को भी नहीं आता था लेकिन वे स्वयं खेलने लगे। सोचो, अगर युधिष्ठिर अपने विवेक का उपयोग करते हुए कहते कि उनकी तरफ से मैं यह खेल खेलूंगा… तो पासे शकुनी के अनुसार आते या मेरे अनुसार?

4/8 तो आपने पासे क्यों नहीं पलटे?

उद्धव श्रीकृष्ण से कहते हैं कि चलिए मान लिया पांडवों ने आपको क्रीणा में सम्मिलित नहीं किया तो क्या आप अपनी शक्ति से पासे नहीं पलट सकते थे? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव मैं बिल्कुल ऐसा कर सकता था। लेकिन मैं करता कैसे? पांडवों ने मुझे अपनी प्रार्थना में बांध लिया था। वे द्रुत क्रीणा मुझसे छिपकर खेलना चाहते थे। उन्हें लगा कि मुझे पता नहीं चलेगा कि वे लोग अंदर क्या कर रहे हैं। उन्होंने मुझे अपनी प्रार्थना में बांधकर कहा, जब तक आपको पुकारा ना जाए आप अंदर नहीं आएंगे। अब बताओ मैं अंदर कैसे आता?

5/8 तो क्यों नहीं रोका द्रौपदी का अपमान?

अब उद्धव आगे कहते है, कृष्ण हमने माना आप अंदर नहीं आ सकते थे लेकिन जिस समय द्रौपदी को अपमानित करते हुए सभा में लाया जा रहा था और फिर भरी सभा में उसका शील भंग किया गया तब आपने अपनी शक्ति क्यों नहीं दिखाई? इस पर कान्हा ने कहा, उद्धव द्रौपदी ने भी तो मुझे नहीं पुकारा था! जब उसे अपमानित करते हुए उसके कक्ष से सभा तक लाया गया तो वह अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ जूझती रही लेकिन उसने भी मुझे भुला दिया था। जब उसे लगा कि अब बात उसके वश से बाहर है तब सभा के भीतर उनसे मुझे पुकारा और मैं तुरंत वहां उपस्थित हो गया।

6/8 क्यों पांडवों को गलती करने से नहीं रोका?

उद्धव अगला सवाल पूछते हैं तो कृष्ण ये बताइए कि आपने पांडवों को गलती करने से क्यों नहीं रोका? माना प्रार्थना में बंधने के कारण आप उन्हें जिता नहीं सकते थे तो आपने उन्हें गलतियां करने से क्यों नहीं रोका? इस पर कान्हा कहते हैं, उद्धव मैं भी कुछ नियमों में बंधा हूं। जो अपने विवेक का उपयोग करता है, वही जीतता है। द्रुत क्रीणा के दौरान भी पांडव अपने भाग्य को कोसते रहे, एक बार भी याद करते कि कृष्ण सहायता करो और तब मैं उनकी सहायता नहीं करता तो मेरी गलती होती उद्धव।

7/8 तो आप सिर्फ नजर रखने के लिए हो?

उद्धव श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि अगर विवेक ही सबकुछ है तो फिर आप हर व्यक्ति के साथ केवल उसके कर्मों का लेखा-जोखा रखने के लिए रहते हैं? क्या अपने भक्त को गलत कार्य करने से रोकना आपका दायित्व नहीं? इस पर कान्हा कहते हैं ‘उद्धव, जिस समय सभी लोग कोई भी कार्य करते समय इस बात का ध्यान रखेंगे कि मैं उनके साथ हूं और सब देख रहा हूं। तो तुम ही बताओ उद्धव, यह जानकर वे कोई गलत कार्य कर पाएंगा क्या? मनुष्य गलत कार्य करते तभी हैं, जब दुनियादारी में खोकर वे मुझे भुला देते हैं और मेरी उपस्थिति को अनदेखा कर देते हैं।’

8/8 मिल गया अपने सवालों जवाब

कान्हा की बात सुनकर उद्धव बोले ‘आपने बहुत गहरी बात कही है कृष्ण। यह सही है कि जब हर पल व्यक्ति के मन में यह भाव रहेगा कि आप उसके साथ हैं और उसके सब कार्यों को देख रहे हैं तो वह कोई गलत काम कर ही नहीं पाएगा। फिर जब गलत काम नहीं करेगा तो बुरे परिणाम क्यों भुगतेगा। मैं आपको मेरे सभी प्रश्नों का उत्तर देने के लिए धन्यवाद करता हूं कृष्ण।’

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