इस इच्छा से ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है
यदक्षरं वेदविदो वदन्ति विशन्ति यद्यतयो वीतरागा:। यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण प्रवक्ष्ये।। गीता 8/11।।
अर्थ : मैं, संक्षेप में तुझे उस पद को कहूंगा, जिसे वेदों के ज्ञाता अविनाशी कहते हैं, वीतराग और जितेंद्रित सन्यासी जिसमें प्रवेश करते हैं और जिसकी इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य पालन किया जाता है।
व्याख्या : यहां भगवान्, अर्जुन को, संक्षेप में उस परम पद को बताने जा रहे हैं, जिस पद का गुणगान वेदों में अविनाशी कहकर किया गया है। संसार के प्रति अनासक्त और वैराग्य को प्राप्त हो चुके वीतराग योगी जिसको जानना चाहते हैं।
सभी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने वाले जितेन्द्रिय जिस पद में प्रवेश करना चाहते हैं अर्थात उसको पा लेना चाहते हैं और जिस परम पद की इच्छा करते हुए ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। अतः जिस परमपद को जानने के लिए सभी योगी, तपी, सन्यासी, ज्ञानी, ध्यानी और भक्त लालायित रहते हैं।