कृष्ण कथा- असुर धेनुकासुर वध Krishna Hindi story Dhenukasur vadh katha

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कृष्ण की हिंदी कहानियाँ (Krishna’s Hindi Stories) आज भी  पाठकों  द्वारा बहुत चाव से पढ़ी और सुनी जाती है. लेकिन कृष्ण कथा में आज हम आपको बताएं कि कृष्ण और बलराम ( Krishn & Balram) जब पहली बार घर से निकले तो  वन में क्या- क्या हुआ और कैसे कृष्ण और बलराम ने असुर धेनुकासुर ( Dhenukasur) का वध किया.

धेनुकासुर एक गधे के रूप में तालवन में अपने शेष असुरों के साथ रहता था. उस ताल में कोई भी जाने का साहास नहीं करता .जो भी जाता उसे धेनुकासुर अपनी दुलत्ती से मार डालता.

कृष्ण अपने अग्रज बलराम के साथ अपनी कौमारवस्था बिताकर पौगंड अवस्था में प्रविष्ट हो गए थे. यह अवस्था छठवे वर्ष से दसवे तक की होती है. कृष्ण पीला वस्त्र धारण करते थे और बलराम नीला.

एक समय बाद सभी ग्वालों ने परस्पर मंत्रणा की और वे इसके लिए राजी हो गए कि जो जो बालक पांच वर्ष के हो गए हैं उन्हें चारागाह में गायें ले जाने का उत्तरदायित्व दिया जाए. 

गौंवों का उत्तरदायित्व प्राप्त हो जाने के पर कृष्ण तथा बलराम ने अपने कमल जैसे चरण – चिन्हों से वृन्दावन की भूमि पवित्र की.

कृष्ण और बलराम जब प्रथम बार वन आये तो पौधों और वृक्षों ने भी अपनी भक्ति दिखाई.

कृष्ण अपने सखाओं तथा बलराम सहित जंगल में प्रविष्ट हुए और अनुकूल वातावरण देखकर उन्होंने जी भर कर आनंद लूटने की इच्छा की . कृष्ण ने देखा कि सारे वृक्ष फलों से लदे और नई-नई टहनियां नीचे आकर पृथ्वी का स्पर्श पर कर रही हैं. मानों व उनके चरण कमलों का स्पर्श करके उनका स्वागत कर रही हों. 

वे वृक्षों, फूलों तथा फलों के इस तरह के भाव से अत्यंत प्रसन्न थे और उनकी इच्छा जानकर हंसने लगे. कृष्ण और बलराम ने प्रथम दिवस प्रकृति का आनंद लिया फिर अपनी- अपनी गायों पर ध्यान दिया. इसके बाद एक बार वन जाना तो अब यह उनकी दिनचर्या में शामिल हो गया.

इस प्रकार कृष्ण तथा बलराम दोनों ही यमुना नदी तट पर अपने बछड़ों तथा गायों को चराते हुए ब्रजवासियों को पूर्ण रूप से आनंदित करने लगे. कुछ स्थानों में कृष्ण तथा बलराम के साथ उनके शखा भी होते. यह बालक गाते, भौरों के गुन-गुन की नकल उतारते और पुष्प हारों से विभूषित कृष्ण तथा बलराम के साथ चलते.

घूमते हुए यह बालक कभी-कभी सरोवर में तैरते हंसों की बोलियाँ बोलते हैं या जब वे किसी मोर को नाचते देखते, तो कृष्ण के समक्ष उसका अनुकरण करते. कृष्ण भी अपनी गर्दन हिलाते और नाचने का स्वांग भरते हुए अपने मित्रों को हंसा देते.

कृष्ण जिन गायों को चराते थे उनके अलग-अलग नाम थे और वे उन्हें दुलारवश पुकारते. कृष्ण को पुकारते सुनकर ये गायें रंभाती हुई तुरंत दौड़तीं और ग्वालबालें इस आदान-प्रदान का भरपेट मज़ा लेते.

वे विभिन्न प्रकार के पक्षियों की ध्वनि -तरंगों का अनुसरण करते जिनमें चकोर, मोर, कोयल तथा भारद्वाज प्रमुख थे. कभी-कभी दुर्बल पशुओं को सिंह तथा चीते की आवाज सुनकर डर जाने के कारण दौड़ते देखकर कृष्ण तथा बलराम सहित सारे बालक भी उन पशुओं के पीछे -पीछे दौड़ पड़ते. 

जब कुछ थक जाते तो, बैठ जाते और बलराम कुछ आराम करने के लिए अपना सिर किसी बालक की गोद में रख देते और कृष्ण तुरंत आ जाते और बलराम के पांव दबाने लगते और कभी-कभी ताड़ का पंखा लेकर बलराम के ऊपर झलते जिससे सुखद हवा निकलने पर उन्हें थकान से कुछ राहत मिलती. 

कभी-कभी बलराम के विश्राम करते समय बालक नाचते या गाते और कभी –कभी वे आपस में कुश्ती लड़ते या फिर कूदते –फांदते. जब बालक इस प्रकार व्यस्त होते तो कृष्ण भी उनके साथ हो लेते हैं उनके हाथ पकड़कर उनकी संगति का लाभ उठाते या उनके कार्यों की प्रशंसा करके हंसते.

जब कृष्ण थक जाते तो वह किसी बड़े वृक्ष के नीचे या किसी ग्यालबाल की गोद को तकिया बनाकर लेट जाते. तब कुछ बालक आकर उनके पांव दबाते कुछ पत्तियों से बनाए गए पंखे से हवा झलते.

कुछ अधिक प्रतिभाशाली बालक उन्हें प्रसन्न करने के लिए मीठी तान में गाना गाते. इस तरह शीघ्र ही उनकी थकान दूर हो जाती. भगवान कृष्ण जिनके पांव लक्ष्मी जी दबाती हैं, अपनी अंतरंगा शक्ति का विस्तार करके एक ग्रामीण बालक के रूप में प्रकट होकर ग्वालबालों के साथ मिलकर उनका साथ देते.

किन्तु एक ग्रामीण बालक की भाँती प्रकट होने के बावजूद ऐसे अवसर आते रहते जब वे अपने को श्री-भगवान सिद्ध कर देते. कभी-कभी लोग अपने को भगवान बताकर अबोध लोगों को ठगते हैं. वे केवल ठग सकते हैं, ईश्वर की शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर सकते.

जब श्रीकृष्ण इस प्रकार अपने परम सौभाग्यशाली ग्वाल बालों के साथ अपनी अंतरंगा शक्ति का प्रदर्शन करते हुए अपनी दिव्य लीलाओं में व्यस्त, थे तो उन्हें अपनी ईश्वरी अति मानवीय शक्ति को प्रकट करने का एक अन्य अवसर प्राप्त हुआ.

उनके परम मित्र सुदामा और सुबल ने उन्हें तथा बलराम को अत्यंत स्नेहवश संबोधित किया कि “हे बलराम ! तुम अत्यंत बलवान हो तुम्हारी भुजाएं अत्यंत सुदृढ़ है. हे कृष्ण ! तुम सभी प्रकार के उपद्रवकारी असुरों का वध करने में अत्यंत पटु हो. क्या तुम दोनों को पता है कि इस स्थान के निकट ही तालवन नामक एक बड़ा जंगल है.?

यह वन ताड़ के वृक्षों से पूर्ण है और सारे वृक्ष फलों से लदे हैं. इन फलों में कुछ गिर चुके हैं और कुछ वृक्ष पर ही अभी भी पके हुए लदे हैं. यह अत्यंत रमणीय स्थान है, किंतु महान असुर धेनुकासुर के कारण वहां जाना अत्यंत कठिन है.”

कोई भी जाकर वृक्षों के फल नहीं ला सकता. हे कृष्ण तथा बलराम ! यह असुर एक गधे के रूप में वहां रहता है और उसके साथ वैसा ही रूप धारण करके दुसरे असुर भी रहते हैं. वे सब के सब अत्यंत बलशाली है. अतः उस स्थान तक पहुंचना बहुत कठिन है. प्रिय भाइयों तुम ही दोनों एकमात्र ऐसे पुरुष हो, जो इन राक्षसों को मार सकते हो. प्राण- भय से वहां आपके अतिरिक्त कोई नहीं जा सकता.

यहां तक कि पशु-पक्षी भी नहीं जाते और वहां एक भी पक्षी निवास नहीं करता. सबों ने बसेरा छोड़ दिया है. केवल उस स्थान से आने वाली सुगंध का ही आनंद लूटा जा सकता है. ऐसा प्रतीत होता है कि अभी तक उन मधुर फलों का किसी ने स्वाद नहीं चखा है. 

हे कृष्ण ! हम तुमसे स्पष्ट कह देते हैं कि हम इस मधुर सुगंध से अत्यंत आकर्षित हैं. हे बलराम ! यदि तुम चाहो तो चलकर इन फलों का आनंद लिया जाए. इन फलों की सुगंध चारों ओर फैल रही है. क्या तुम्हें यहां उनकी सुगंध नहीं आ रही?”

जब बलराम तथा कृष्ण से उनके घनिष्ठ मित्रों ने इस तरह प्रार्थना की तो वे उन्हें प्रसन्न करने के उद्देश्य से अपने मित्रों के साथ हंसते हुए उस वन की ओर चल पड़े. 

धेनुकासुर वध

तालवन में प्रवेश करते ही बलराम अपनी हाथी जैसी शक्ति को दिखाते हुए वृक्षों को हिलाने लगे. इस झटके से सारे पके हुए फल पृथ्वी पर आ गिरे. फल गिरने की आवाज सुनकर वहां पर गधे के वेश में निवास कर रहा धेनुकासुर उस और तेजी से बढ़ने लगा. इससे सारी धरती और सारे वृक्ष हिलने लगे. मानो भूकंप आ गया हो. 

सर्व प्रथम यह असुर बलराम के समक्ष प्रकट हुआ और उनकी छाती पर अपनी पिछली टांगों से दुलत्ती मारी. बलराम पहले पहले कुछ नहीं बोले. किंतु वह असुर अब अधिक बलपूर्वक तेजी से लात मारने लगा. इस प्रकार बलराम ने तुरंत ही अपने एक हाथ से उस गधे के पैर पकड़ कर उसे चारों और घुमाकर वृक्ष की चोटी पर फेंक दिया.

जब बलराम उसे घुमा रहे थे तभी उस असुर के प्राण निकल गए. बलराम ने उसे सबसे ऊंचे ताल वृक्ष के ऊपर फेंका. उस असुर का शरीर इतना भारी था कि उसकी भार से टूटकर अन्य वृक्ष भी गिराकर धराशायी हो गए.

इस तरह हम देखते हैं की बलराम के असामान्य बल का प्रदर्शन विस्मयकारी नहीं है. क्योंकि बलराम अनंत शेषनाग के रूप में श्री भगवान है, जो अपने मस्तक पर समस्त लोगों को धारण किए हुए है. यह संपूर्ण विराट जगत उनके द्वारा उसी प्रकार पालित है जिस प्रकार समस्त एवं सीधे खड़े धागे कपड़े की बुनाई को धारण किए रहते हैं.

जब उस असुर को वृक्षों के ऊपर फेंक दिया, तो धेनुकासुर के सारे मित्र असुर तथा सहयोगी एकत्र हो गए और उन्होंने अत्यंत वेग से बलराम तथा कृष्ण पर आक्रमण कर दिया. वे अपने मित्र की मृत्यु का प्रतिशोध लेने पर तुले थे .

किन्तु कृष्ण तथा बलराम हर गधे की पिछली टाँगे पकड़ कर उसी प्रकार चारो ओर घुमा देते. इस प्रकार उन सबों को मार कर वृक्षों के ऊपर फेंक दिया. गधों के शवों के कारण अत्यंत अद्भूत दृश्य हो गए. ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों विविध रंगों के बादल वृक्षों के ऊपर एकत्र हो रहे हों. 

इस महान घटना को सुनकर देवतागण स्वर्गलोक से कृष्ण तथा बलराम पर पुष्पों की वर्षा करने लगे और दुन्दुभियाँ बजाकर स्तुतियाँ करने लगे.

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