Lockdown में पुलिस अफसर ने 100 से भी अधिक असहाय लोगों को सुदूर पहाड़ियों में दवा पहुंचाने का किया काम :Medicine Man
कभी-कभी दवाइयों के डिलीवरी में 2 दिन से भी अधिक वक्त लग जाता था क्योंकि पहाड़ियों के संकरे रास्ते और उन तक पहुंचने वाले पगडंडियों पर चलना इतना आसान नहीं होता था!
डायबिटीज हाइपरटेंशन और शुगर जैसे मरीजों के लिए जब उत्तराखंड की सुदूर तराईयों में Lockdown में दवा नहीं पहुंच पा रहा था तब मनीष पंत ने उन तक सही समय पर दवा पहुंचाने का बीड़ा उठाया।
मनीष पंत उत्तराखंड पुलिस में बतौर फायरमैन कार्यरत हैं जो उत्तराखण्ड के पावेरी शहर में तैनात हैं । Lockdown में मनीष अभी तक 100 से भी अधिक मरीजों के लिए दवा पहुंचा चुके हैं । उत्तराखंड के विभिन्न इलाकों जैसे देहरादून, अल्मोड़ा ,चमोली ,पिथौरागढ़ रुद्रप्रयाग ,उत्तरकाशी और अन्य सुदूर इलाकों में पिछले 22 मार्च से मनीष पंत एक कुरियर मैन की तरह काम कर रहे हैं और इनके सेवा भाव के कारण इन्हें मेडिसिन की उपाधि दी गई है।
मनीष के द्वारा शुरू की गई इनिशिएटिव-संजीवनी
22 मार्च की बात है जब पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगा था । लोगों का घर से बाहर निकलना मना था उसी दिन मनीष के 65 वर्षीय पड़ोसी की तबीयत अचानक खराब हो गई , यद्यपि मनीष पुलिस में काम करते हैं इसलिए उनके पड़ोसियों ने उनसे दवा पहुंचाने का आग्रह किया।
कोई भी दवा का दुकान ना खुलने के कारण मैंने दवा अस्पताल से खरीदा और उनके घर की तरफ चल पड़ा । रास्ते मे मुझे यह ख्याल आया कि जब मेरे जान पहचान में किसी को दवा की जरूरत पड़ सकती है तो फिर हमारे अगल बगल में ऐसे ही पता नहीं कितने लोग होंगे जो तकलीफ भरी बीमारियों से गुजर रहे होंगे और उन्हें भी दवा की जरूरत होगी , उस परिस्थिति में सभी परिवार में पुलिस वाला नहीं होता जो उनकी मदद कर पाए।
24 घंटों के भीतर मनीष ने एक फेसबुक पोस्ट लिखा जिसमें उन्होंने आग्रह किया कि अगर आप एक वरिष्ठ नागरिक हैं और आपके घर में आपका देखभाल करने वाला कोई नहीं है उस परिस्थिति में कृपया मुझसे संपर्क करें, मैं दवाइयों को आप तक पहुंचाने की कोशिश करूंगा।
इस पोस्ट में मनीष ने यह भी आग्रह किया कि दवा मंगाने के लिए डॉक्टर की पर्ची के साथ लोकेशन भी जरूरी है। मनीष का यह पोस्ट 500 से भी अधिक लोगों ने शेयर किया और तुरंत इनके पास कई लोगों का रिक्वेस्ट भी आने लगा । कुछ लोग अल्मोड़ा चमोली नैनीताल जैसे जगहों से दवा के लिए मदद मांगना शुरू किए। मनीष ने सीनियर सिटीजन के साथ ही ,गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए भी दवा पहुंचाया।
मनीष कहते हैं कि जरूरतमंदों तक दवा पहुंचाने के लिए मैं कितने भी दूर जाने के लिए तैयार था । एक बार की बात है जब मेरे घर से लगभग 90 किलोमीटर दूर से दवा के लिए मुझे रिक्वेस्ट आया और मौसम बहुत खराब था । उस परिस्थिति में पहाड़ी में बाइक की सवारी बहुत ही मुश्किल थी तब मैंने अपने सीनियर से गाड़ी की मदद मांगी। मेरे विभाग में लोगों को संजीवनी मिशन के बारे में पता था और मुझे गाड़ी मुहैया कराई गई जिससे मैं उस मरीज को दवा पहुंचाने में सफल रहा।
आखिर संजीवनी ऑपरेशन काम कैसे किया
दवा के लिए रिक्वेस्ट आने के साथ हीं, प्रिसक्रिप्शन पर लिखें डॉक्टर से मैं तुरंत संपर्क करता था और उनसे फार्मेसी के बारे में पता करता था । इस तरह मुझे दवा मिलने में आसानी होती थी और उपयुक्त समय में मैं मरीज के पास पहुंचाने में सफल हो पाता था। कभी-कभी ऐसे ही परिस्थिति आई जब मरीज, दवा के लिए पैसे देने में असमर्थ होते थे । इस परिस्थिति में मनीष खुद के पैसे से दवा खरीद कर उन तक पहुंचा देते थे।
ऑपरेशन संजीवनी को चलाने में मनीष ने खुद के पॉकेट से ₹35000 खर्च किए जिसमें से उन्हें लगभग 23000 रुपए वापस मिल गए और बाकी पैसे उन्होंने छोड़ दिया।
पिछले 3 महीने की लॉकडाउन में मनीष के द्वारा किया गया कार्य सराहनीय है , इनके प्रयास को नमन करता है !