मैं तुम को पहिचान न पाया लिखित भजन Main Tumko Pehchan Na Paya Lyrics

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मैं तुम को पहिचान न पाया ।
वन उपवन में नगर नगर में,
माया फिरा भटकता गिरि – गह्वर में ।किन्तु पास तुम मेरे हरदम , मैं यह अब तक जान न पाया ।

रवि शशि से पदार्थ चमकाये , अन्नौषधि फल , फूल उगाये । तुम समान इस जग में कोई , दाता दयानिधान न पाया ॥

जल से धोया मल के तन , धोया नहीं कभी कलुषित मन ।
कट जाते त्रय ताप , ज्ञान की , गंगा में कर स्नान न पाया ॥

अखिल विश्व में व्यापक सत्ता , साक्षी देता है पत्ता पत्ता। पाया पता ‘ प्रकाश ‘ तुम्हारा । तो फिर अपना पता न पाया।

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