मौनी अमावस्या की पौराणिक एवं प्रचलित कथा – Mauni Amavasya Vrat Katha

0

माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या के दिन पड़ने वाली मौनी अमावस्या तिथि का आरंभ 31 जनवरी दिन सोमवार को दोपहर 02 बजकर 18 मिनट से हो रहा है और इसका समापन 01 फरवरी दिन मंगलवार को दिन में 11 बजकर 15 मिनट पर होगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, मौनी अमावस्या के दिन मौन रखकर संयमपूर्वक व्रत किया जाता है, जिससे मुनि पद प्राप्त होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन देवतागण पवित्र संगम में निवास करते हैं, इसलिए इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है. बता दें कि माह की आखिरी तिथि को अमावस्या पड़ती है. माघ माह में पड़ने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या या फिर माघ अमावस्या के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन दान-पुण्य करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु और पीपल के वृक्ष की पूजा की जाती है. मौनी अमावस्या की कथा में इस पूजा का जवाब छिपा है. आइए जानते हैं मौनी अमावस्या की कथा.

मौनी अमावस्या की पौराणिक कथा | Mauni Amavasya Katha

पौराणिक कथा के अनुसार, कांचीपुरी में एक ब्राह्मण निवास करता था. उन ब्राह्मण का नाम देवस्वामी था और उनकी पत्नी का नाम धनवती था. उनक दोनों के सात पुत्र और एक पुत्री थी. पुत्री का नाम उन्होंने गुणवती रखा था. ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके अपने सबसे बड़े पुत्र को बेटी के लिए वर खोजने भेजा. उस समय एक पंडित ने पुत्री गुणवती की जन्मकुंडली देखकर बताया कि सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी. यह सुन ब्राह्मण ने पंडित से पूछा कि पुत्री के इस वैधव्य दोष का निवारण कैसे होगा? जिस पर पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से वैधव्य दोष दूर होगा. पंडित ने सोमा के बारे में बताया कि वह एक धोबिन हैं. उनका निवास स्थान सिंहल द्वीप है. उन्हें पहले प्रसन्न करो और गुणवती के विवाह से पूर्व उन्हें यहां बुला लो.

ब्राह्मण देवस्वामी का सबसे छोटा लड़का बहन को अपने साथ लेकर सिहंल द्वीप जाने के लिए सागर तट पर चला गया. सागर पार करने की चिंता में दोनों एक वृक्ष की छाया में बैठ गए. उस पेड़ पर एक घोंसले में गिद्ध का परिवार रहा करता था. उस समय घोंसले में सिर्फ गिद्ध के बच्चे थे. गिद्ध के बच्चे भाई-बहन के क्रिया-कलापों को देख रहे थे. सायंकाल के समय उन बच्चों (गिद्ध के बच्चों) की मां आई तो उन्होंने भोजन नहीं किया. वह अपनी मां से बोले कि मां नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे बैठे हैं. जब तक वे कुछ नहीं खा लेते, तब तक हम भी कुछ नहीं खाएंगे. बच्चों की बात सुन दया और ममता से वशीभूत गिद्ध माता उनके पास आई और बोली कि मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है.

इस वन में जो भी फल-फूल कंद-मूल मिलेगा, मैं ले आती हूं. आप भोजन कर लीजिए. मैं प्रात:काल आपको सागर पार करा कर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी और वे दोनों भाई-बहन माता की सहायता से सोमा के यहां जा पहुंचे. वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़ कर लीप देते थे. एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि हमारे घर कौन बुहारता है, कौन लीपता-पोतता है? सास के पूछे जाने पर बहुओं ने कहा कि हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा, लेकिन सोमा को उनकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ. एक दिन इस रहस्य को जानने के लिए वह सारी रात जागी और सबकुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई. इस दौरान सोमा का उन बहन-भाई से वार्तालाप हुआ. भाई ने सोमा को बहन संबंधी सारी बात बता दी.

सोमा ने दोनों भाई-बहनों की श्रम-साधना और सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष निवारण का आश्वासन दे दिया. मगर भाई ने उससे अपने साथ चलने का आग्रह किया. आग्रह करने पर सोमा उनके साथ चल दी. चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना. मेरा इंतजार करना. इसके बाद सोमा उन दोनों बहन-भाई के साथ कांचीपुरी पहुंच गई, जिसके दूसरे दिन ही गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया. सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया. सोमा ने तुरंत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया. तुरंत ही उसका पति जीवित हो उठा. सोमा उन्हें आशीर्वाद देकर अपने घर चली गई. उधर गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता और पति की मृत्यु हो गई. सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में पीपल वृक्ष की छाया में श्री हरि विष्णु का पूजन किया और 108 परिक्रमाएं लगाई, जिसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *