सोमवती अमावस्या की पौराणिक एवं प्रचलित कथा – Somvati Amavasya Vrat Katha

0

सोमवती अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है. सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं. आज यानी 6 सितंबर को भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या है. सोमवती अमावस्या भगवान शिव को समर्पित है. माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. इस दिन पितरों का पूजन करने का भी विधान है. सोमवती अमावस्या का संयोग साल में 2-3 बार ही बनता है. सोमवती अमावस्या पर पितरों का पूजन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन गंगा में डुबकी लगाने और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

सोमवती अमावस्या व्रत कथा (Somvati Amavasya Vrat Katha and puja vidhi):
कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार था. इसमें पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी. आयु के अनुसार, पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. बढ़ती उम्र के साथ उसमें स्त्रियों के गुणों का भी विकास होने लगा. वह बहुत ही सुंदर, सुशील और सर्व गुण सम्पन्न थी. लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें. कन्या की सेवा से साधु महाराज का मन बहुत प्रसन्न हुआ. उन्होंने कन्या को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया और कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह का योग नहीं है.

इस बात से चिंतित होकर ब्राह्मण परिवार ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपने ध्यान के आधार पर बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही संस्कारों से संपन्न तथा पति परायण और निष्ठावान है.

यदि ये कन्या उसकी सेवा करे और इसकी विवाह में वह महिला अपनी मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का विधवा योग मिट सकता है. साधु ने ये भी कहा कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है. ये बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही. अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर चली गई और वहां साफ-सफाई और अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आ जाती थी.

एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं. इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है. कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर में चाकर तरह क्यों काम करती हैं?

तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह इस बात के लिए मान गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.

सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निर्जल ही चली थी, ये सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर उसकी परिक्रमा करने के बाद ही जल ग्रहण करेगी.

उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसका पति वापस जीवित हो गया. इसलिए माना जाता है कि इस दिन व्रत आदि करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

सोमवती अमावस्या का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना जाता है. सोमवार के दिन पड़ने वाली अमावस्या को सोमवती अमावस्या कहते हैं. आज यानी 6 सितंबर को भाद्रपद माह की सोमवती अमावस्या है. सोमवती अमावस्या भगवान शिव को समर्पित है. माना जाता है कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है उसके जीवन में कोई समस्या नहीं आती है और सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है. इस दिन पितरों का पूजन करने का भी विधान है. सोमवती अमावस्या का संयोग साल में 2-3 बार ही बनता है. सोमवती अमावस्या पर पितरों का पूजन करने से उनका आशीर्वाद मिलता है और उनकी आत्मा को शांति मिलती है. मान्यताओं के अनुसार, आज के दिन गंगा में डुबकी लगाने और दान करने से कई गुना पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

सोमवती अमावस्या व्रत कथा (Somvati Amavasya Vrat Katha and puja vidhi):
कथा के अनुसार, एक गरीब ब्राह्मण परिवार था. इसमें पति-पत्नी के अलावा एक पुत्री भी थी. आयु के अनुसार, पुत्री धीरे-धीरे बड़ी होने लगी. बढ़ती उम्र के साथ उसमें स्त्रियों के गुणों का भी विकास होने लगा. वह बहुत ही सुंदर, सुशील और सर्व गुण सम्पन्न थी. लेकिन गरीब होने के कारण उसका विवाह नहीं हो पा रहा था. एक दिन उस ब्राह्मण के घर एक साधु महाराज पधारें. कन्या की सेवा से साधु महाराज का मन बहुत प्रसन्न हुआ. उन्होंने कन्या को लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया और कहा कि इस कन्या के हथेली में विवाह का योग नहीं है.

इस बात से चिंतित होकर ब्राह्मण परिवार ने साधु से उपाय पूछा, कि कन्या ऐसा क्या करें कि उसके हाथ में विवाह योग बन जाए. साधु ने कुछ देर विचार करने के बाद अपने ध्यान के आधार पर बताया कि कुछ दूरी पर एक गांव में सोना नाम की धोबिन जाति की एक महिला अपने बेटे और बहू के साथ रहती है, जो बहुत ही संस्कारों से संपन्न तथा पति परायण और निष्ठावान है.

यदि ये कन्या उसकी सेवा करे और इसकी विवाह में वह महिला अपनी मांग का सिंदूर लगा दें, उसके बाद इस कन्या का विवाह हो तो इस कन्या का विधवा योग मिट सकता है. साधु ने ये भी कहा कि वह महिला कहीं आती-जाती नहीं है. ये बात सुनकर ब्राह्मणी ने अपनी बेटी से धोबिन की सेवा करने की बात कही. अगल दिन कन्या प्रात: काल ही उठ कर सोना धोबिन के घर चली गई और वहां साफ-सफाई और अन्य सारे कार्य करके अपने घर वापस आ जाती थी.

एक दिन सोना धोबिन अपनी बहू से पूछती है कि- तुम तो सुबह ही उठकर सारे काम कर लेती हो और पता भी नहीं चलता. बहू ने कहा- मां जी, मैंने तो सोचा कि आप ही सुबह उठकर सारे काम खुद ही खत्म कर लेती हैं. मैं तो देर से उठती हूं. इस पर दोनों सास-बहू निगरानी करने लगी कि कौन है जो सुबह ही घर का सारा काम करके चला जाता है. कई दिनों के बाद धोबिन ने देखा कि एक कन्या मुंह अंधेरे घर में आती है और सारे काम करने के बाद चली जाती है. जब वह जाने लगी तो सोना धोबिन उसके पैरों पर गिर पड़ी, पूछने लगी कि आप कौन है और इस तरह छुपकर मेरे घर में चाकर तरह क्यों काम करती हैं?

तब कन्या ने साधु द्बारा कही गई सारी बात बताई. सोना धोबिन पति परायण थी, उसमें तेज था. वह इस बात के लिए मान गई. सोना धोबिन के पति थोड़ा अस्वस्थ थे. उसने अपनी बहू से अपने लौट आने तक घर पर ही रहने को कहा.

सोना धोबिन ने जैसे ही अपने मांग का सिंदूर उस कन्या की मांग में लगाया, उसका पति मर गया. उसे इस बात का पता चल गया. वह घर से निर्जल ही चली थी, ये सोचकर की रास्ते में कहीं पीपल का पेड़ मिलेगा तो उसे भंवरी देकर उसकी परिक्रमा करने के बाद ही जल ग्रहण करेगी.

उस दिन सोमवती अमावस्या थी. ब्राह्मण के घर मिले पूए-पकवान की जगह उसने ईंट के टुकड़ों से 108 बार भंवरी देकर पीपल के पेड़ की 108 बार परिक्रमा की और उसके बाद जल ग्रहण किया. ऐसा करते ही उसका पति वापस जीवित हो गया. इसलिए माना जाता है कि इस दिन व्रत आदि करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *