दूसरों के लिए की गई दुआ हमारे लिए दवा बन जाती है

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कई बार, दुआ ही दवा बन जाती है। जहां दवा काम नहीं करती, वहां दुआ काम कर जाती है। बिगड़ी हुई तबीयत ठीक हो जाती है, काम बन जाते हैं। हम दूसरों के लिए दुआ करते या मांगते हैं, तो दूसरे को तो इसका लाभ मिलता ही है, दूसरों के प्रति हमारी शुभ भावना और शुभकामना रूपी दुआ, हमें भी स्वस्थ और सुरक्षित रखती है। यह कुदरत का कानून है।

इसी तरह, लोगों की बद्दुआ भी लग जाती है। कई बार हममें से कुछ लोग अपने से कमजोर व्यक्ति या प्राणी के ऊपर अत्याचार करते हैं। जब कोई कमजोर और निर्दोष अपना बचाव नहीं कर पाता है, तो उसकी अंतरात्मा से आह निकलती है। यही आह बद्दुआ बनकर निकलती है। बद्दुआ इंसान से ही नहीं, अन्य जीव-जंतुओं, पशु-पक्षियों से भी निकलती है। यहां तक कि मनुष्य द्वारा प्रताड़ित प्रकृति भी प्राकृतिक प्रकोप के रूप में अपना अभिशाप देती है। कभी बाढ़, भूचाल या कभी तूफान के रूप में प्रकृति के पांच तत्व कहर ढाते हैं। कोरोना जैसी महामारी भी मनुष्य के कारण है। मानव की अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए की गई सामूहिक हिंसा या निर्दयी आचरण का यह बुरा नतीजा है।

लोग संकट के समय ईश्वर से दुआएं मांगते हैं। संत, महात्मा और प्रियजन भी अन्य के सुख, शांति, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य के लिए दुआ करते हैं। खास कर इस कोरोना काल में दुआओं का महत्व अधिक महसूस हुआ है। इस महामारी से पीड़ितों को दवाओं के साथ-साथ अपने परिजनों, समाज और परमात्मा से दुआएं चाहिए, ताकि उनका हौसला और मनोबल बढ़े। पीड़ितों में नकारात्मक तत्वों से लड़ने की सकारात्मक इच्छा शक्ति प्रबल हो जाएं।

असल में अच्छी नीयत, सुखदाई कर्म और निस्वार्थ सेवा से इंसान अपने लिए दुआ कमाता है। मांगने की जरूरत नहीं पड़ती, यह आशीर्वाद अपने-आप मिल जाता है, चाहे वे इसे मांगे या न मांगे। हम सबके प्रति दया, करुणा और कल्याण करने की भावना और हिम्मत रखेंगे, तो परमात्मा भी हमारी मदद करेंगे। इसी नेक दिशा में हमें आगे बढ़ाने के लिए सभी मनुष्य आत्माओं के रूहानी पिता निराकार परमात्मा कहते हैं, ‘बच्चे, तुम समाज और विश्व कल्याण के लिए हिम्मत की एक कदम बढ़ाओ, तो हजार कदम मैं तुम्हारे साथ हूं।’ वास्तव में, भगवान या साधु-महात्मा कृपा नहीं करते, पर व्यक्ति को नेक कर्म की ओर प्रेरित करते हैं। मनुष्य श्रेष्ठ कर्म करता है, तो दुआओं का अधिकारी अपने-आप बन जाता है। इसे ही ‘कर और पा’ यानी कृपा कहते हैं। इससे अंतरात्मा स्वस्थ, शक्तिशाली और सकारात्मक बन जाती है। श्रेष्ठ कर्म रूपी बगिया में जीवन हरा भरा और खुशहाल हो जाता है। ऐसे श्रेष्ठ कर्मों का आधार है श्रेष्ठ सोच। सबके प्रति सदा शुभ भावना और शुभ कामना रखना।

जीवन के कर्म रूपी खेत में जैसे बीज बोएंगे, वैसा ही फल पाएंगे। दुख-दर्द के कांटे बोएंगे, तो कांटे ही नसीब होंगे। सुख-शांति के मीठे फल-फूल लगाएंगे, तो स्वयं और दूसरों को भी खुशी दे पाएंगे। यह नियति का नियम है। हमारे नीयत नेक है, तो नियति और नियंता ईश्वर हमारे साथ हैं। इसलिए सदा स्वस्थ, सुखी, निर्भय और सुरक्षित रहने के लिए अपने इरादे और भावनाओं को हमेशा सबके लिए शुभ, शुद्ध और मंगलकारी रखें। उपनिषद् में लिखा है, सभी सुखी रहें, सभी स्वस्थ रहें, सभी का जीवन मंगलमय हो, कभी कोई दुख के भागी न बनें। इन कल्याणकारी शुभ भावना और शुभकामनाओं में असीम शक्ति है।

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