नारदसंहिता अध्याय ९ || Narad Samhita Adhyay 9
नारदसंहिता अध्याय ९ में शुभाशुभमुहूर्त का वर्णन किया गया है।
नारदसंहिता अध्याय- ९
अथ शुभाशुभमुहूर्ताः।
दिवा मुहूर्ता रुद्राहिर्मित्रपित्र्यवसूदकम् ॥
विष्वे विधातृब्रह्मेन्द्र इन्द्राग्ननिर्ऋतितोयपाः ॥ १ ॥
रुद्र १ सर्प २ मित्र ३ पितरः४ वसु ५ उदक ६ विश्वेदेवा ७ अभिजित् ८ ब्रह्म ९ इंद्र १० इंद्राग्नी ११ राक्षस १२ वरुण १३ ॥ १ ॥
अर्यमा भगसंज्ञश्च विज्ञेया दश पंच च।
ईशाजपादहिर्बुन्ध्याः पूषाश्वियमवह्नयः ॥ २ ॥
धातूचंद्रादितिज्याख्यविष्ण्वर्कवाष्ट्रवायवः ॥
अह्नः पंचदशो भागस्तथा रात्रिप्रमाणतः ॥ ३॥
मुहूर्तमानं द्वे नाड्यौ कथिते गणकोत्तमैः ।
अथाशुभमुहूर्त्तानि वारादिक्रमशो यथा ॥ ४ ॥
अर्यमा १४ भग १५ ये दिवा मुहूर्त हैं अर्थात् दिन में दो-दो घडी प्रमाण तक यथाक्रम से रुद्रआदि नामक ये १५ मुहूर्त रहते हैं अपने नामसदृश फल जानना और शिव १ अजपान २ अहिर्बुध्न्य ३ पूषा ४ अश्विनीकुमार ५ धर्मराज ६ अग्नि ७ ब्रह्मा ८ चंद्रमा ९ अदिति १० बृहस्पति ११ विष्णु ११ सूर्यं १३ त्वष्टा १४ वायु १५ ये पंद्रह मुर्हूत रात्रि के हैं अर्थात् जैसे दिन के पंदरह भाग किये हैं वैसे ही रात्रि के १५ भाग कर लेना और २ घडी का एक मुहूर्त होता है और दिनमान रात्रिमान तीस घडी से कमज्यादा होवें तो इनमें से एक २ मुहूर्त भी दो-दो घड़ी से कमज्यादा समझ लेने चाहिये और इनमें वार आदि क्रम से जो मुहूर्त, अशुभ होते; उनको कहतेहैं ॥ २ – ४ ॥
अर्यमा राक्षसब्राह्मौ पित्र्याग्नेयौ तथाभिजित् ॥
राक्षसापो ब्रह्मपित्र्यौ भौजंगेशाविनादिषु ।। ४ ॥
वारेषु वर्जनीयास्ते मुहूर्ताः शुभकर्मसु ।
अन्यानपि तु वक्ष्यामि योगानत्र शुभाऽशुभान् ॥ ६ ॥
अर्यमा मुहूर्त सूर्यवार में अशुभ है और सोमवार में राक्षस, बह्मा ये अशुभ है, मंगल में पितर, अग्नि ये अशुभ हैं, बुध में अभिजित मुहूर्त अशुभ है, बृहस्पति को राक्षस और उदक अशुभ, शुक्र को बह्मा पितर अशुभ, शनि को सर्प, शिव ये मुहर्तु अशुभ हैं । रविवार आदिकों में ये मुहूर्त शुभकर्म में यतन करके वर्ज देने चाहियें। अब यहां अन्य भी शुभ-अशुभ योगों को कहते हैं । । ५ – ६ ।। ।
सूर्यभाद्वेदगोतर्कदिग्विश्वनखसंमिते ॥
चंद्रर्क्षे रवियोगाः स्युर्दोषसंधविनाशकाः ॥ ७ ॥
इति श्रीनारदीयसंहितायां मुहूर्ताध्यायो नवमः॥ ९॥
जिस नक्षत्र पर सूर्य हो उस नक्षत्र से चंद्रमा का नक्षत्र अर्थात् वर्तमान नक्षत्र ४ – ९- ६-१०-१३- २० इन संख्याओं पर हो तो रवियोग होते हैं वे दोषों के समूहों को नष्ट करते हैं, अर्थात् शुभदायक योग जाने ।। ७ ॥
इति श्रीनारदीयसंहिताभाषाटीकायां मुहूर्त्याध्यायो नवमः ॥ ९ ॥