नवग्रह स्तोत्रम् || Navagrah stotram जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम्

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जब किसी जातक का जन्म होता है तो आकाश मण्डल पर जो ग्रह नक्षत्र उदित या अस्त होता है सभी का असर उनके जीवन पर्यन्त पड़ता है । मानव जीवन पर ग्रहों का प्रभाव सर्वाधिक पड़ता है। जीवन में सुख-दुख, लाभ-हानि ग्रहों की गति पर ही निर्भर होते हैं। ग्रह अगर अनुकूल हों तो रंक से राजा बना देते हैं, प्रतिकूल हो जायें तो राजा को भी सड़को पर ले आता है। ग्रह प्रतिकूल हो तो देवताओं को भी नहीं छोड़ते। राम पर प्रतिकूल ग्रह की दशा आई तो वनवास करवा दिया, कृष्ण पर आयी तो मथुरा छोड़नी पड़ी और रणछोड़ कहलाये। ग्रहों के प्रतिकूल दशा को ठीक करने के लिए ग्रहशांति पूजन करना होता है या यदि नित्य हम नवग्रह स्तोत्रम् Navagrah stotram का पाठ करें तो भी प्रतिकूल ग्रह अनुकूल होकर लाभ पहुँचाते हैं-

अथ नवग्रह स्तोत्रम् Navagrah stotram

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महदद्युतिम् I

तमोरिंसर्वपापघ्नं प्रणतोSस्मि दिवाकरम् II १ II

दधिशंखतुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवम् I

नमामि शशिनं सोमं शंभोर्मुकुट भूषणम् II २ II

धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांति समप्रभम् I

कुमारं शक्तिहस्तं तं मंगलं प्रणाम्यहम् II ३ II

प्रियंगुकलिकाश्यामं रुपेणाप्रतिमं बुधम् I

सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम् II ४ II

देवानांच ऋषीनांच गुरुं कांचन सन्निभम् I

बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिम् II ५ II

हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरुम् I

सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहम् II ६ II

नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम् I

छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्चरम् II ७ II

अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनम् I

सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम् II ८ II

पलाशपुष्पसंकाशं तारकाग्रह मस्तकम् I

रौद्रंरौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम् II ९ II

इति श्रीव्यासमुखोग्दीतम् यः पठेत् सुसमाहितः I

दिवा वा यदि वा रात्रौ विघ्न शांतिर्भविष्यति II १० II

नरनारी नृपाणांच भवेत् दुःस्वप्ननाशनम् I

ऐश्वर्यमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनम् II ११ II

ग्रहनक्षत्रजाः पीडास्तस्कराग्निसमुभ्दवाः I

ता सर्वाःप्रशमं यान्ति व्यासोब्रुते न संशयः II १२ II

II इति श्रीव्यास विरचितम् आदित्यादी नवग्रह स्तोत्रम् Navagrah stotram संपूर्णं II

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