Rabindranath Tagore Autobiography | विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर का जीवन परिचय : एक बंगाली कवि, उपन्यासकार, चित्रकार, ब्रह्म समाज दार्शनिक, संगीतकार, समाज सुधारक, दृश्य कलाकार, नाटककार, लेखक और शिक्षाविद
रवीन्द्रनाथ टैगोर/रबीन्द्रनाथ टैगोर, विलक्षण साहित्यिक और कलात्मक उपलब्धियों वाले व्यक्ति थे। वह एक बंगाली कवि, उपन्यासकार, चित्रकार, ब्रह्म समाज दार्शनिक, संगीतकार, समाज सुधारक, दृश्य कलाकार, नाटककार, लेखक और शिक्षाविद थे। उन्होंने भारतीय सांस्कृतिक और राष्ट्रीय आंदोलनों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
रवीन्द्रनाथ टैगोर भारतीय सांस्कृतिक पुनर्जागरण में एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। उन्होंने अपनी साहित्य कला के माध्यम से भारत की संस्कृति और सभ्यता को पश्चिमी देशों मे फैलाया। उन्होंने पश्चिमी सभ्यता और भारतीय संस्कृति के बीच संबंध स्थापित किया। महात्मा गांधी द्वारा उनको ’गुरुदेव’ उपाधि दी गई।
रवीन्द्रनाथ टैगोर 1913 में अपने ’गीतांजलि’ कविता संग्रह के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले एशियाई व्यक्ति बने। इन्हें प्यार से गुरुदेव, कविगुरु और विश्वकाबी उपनाम से संबोधित किया जाता है। इनके गीतों को ’रवींद्रसंगीत’ के नाम से जाना जाता है। टैगोर भारत के सबसे प्रसिद्ध शब्दलेखकों में से एक थे। पाठकों के दिलो-दिमाग पर उनका अविस्मरणीय प्रभाव पङा था, इसलिए उन्हें ’गुरुदेव’ या ’कवियों के कवि’ के उपनाम से जाना जाता था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गान ’जन-गण-मन’ तथा ’आमार सोनार बांग्ला’ के रचयिता है। 1954 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को ’भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर का परिचय (Introduction to Rabindranath Tagore)
नाम | रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) |
मूल नाम | रवींद्रनाथ ठाकुर |
उपनाम | गुरुदेव, विश्वकवि |
जन्म | 7 मई 1861, कोलकाता, पश्चिम बंगाल (ब्रिटिश भारत) |
पिता | देबेंद्रनाथ टैगोर |
माता | शारदा देवी |
शैक्षणिक योग्यता | कानून की पढ़ाई |
विद्यालय | स्कूल सेंट जेवियर |
विश्वविद्यालय | यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन |
उम्र | 80 वर्ष |
वैवाहिक स्थिति | विवाहित (9 दिसंबर,1883 में) |
पत्नी | मृणालिनी देवी |
भाषा | बंगाली, अंग्रेजी |
पेशा | कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार, निबन्धकार और चित्रकार, लेखक |
प्रसिद्धि का कारण | ’गीताजंलि’ रचना पर ’नोबेल पुरस्कार’ प्राप्त करने वाले पहले गैर-यूरोपीय व्यक्ति |
धर्म | हिन्दू |
जाति | बंगाली ब्राह्मण |
नागरिकता | भारतीय |
पुरस्कार | साहित्य का नोबेल पुरस्कार (1913), नाईटहुड की उपाधि से सम्मानित (1915), ऑक्सफोर्ड यूनवर्सिटी द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित (1940) |
मृत्यु | 7 अगस्त 1941, कलकत्ता (भारत) |
रवीन्द्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई, 1861 को कलकत्ता में जोरासांको हवेली में देवेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के तेरह बच्चों में से सबसे छोटे बेटे के रूप में हुआ था। इनके पिता देबेंद्रनाथ टैगोर ब्रह्म समाज के एक नेता थे। इनके दादा द्वारकानाथ टैगोर एक अमीर जमींदार और समाज सुधारक थे। इनका पालन-पोषण मुख्य रूप से नौकरानियों और नौकरों द्वार किया गया था क्योंकि उनके पिता ने बङे पैमाने पर यात्रा की थी और उनकी छोटी सी उम्र में ही उनकी माँ का निधन हो गया था।
रवीन्द्रनाथ टैगोर बंगाल पुनर्जागरण में एक युवा प्रतिभागी थे, जिसमें उनके परिवार ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। वह एक बाल विलक्षण भी थे। उनको बचपन से ही कविता लिखने का शौक था, उन्होंने आठ साल की उम्र में ही कविता लिखना और प्रकाशित करना प्रारंभ कर दिया था। जब वे सोलह वर्ष के थे, तब उन्होंने छद्म नाम ’भानुसिम्हा’ से कविता लिखना शुरू किया।
उन्होंने कालिदास की शास्त्रीय कविता को पढ़कर प्रेरणा प्राप्त की और अपनी खुद की शास्त्रीय कविताएं लिखना शुरू कर दिया। उन्हें कुछ अन्य प्रेरणाएँ उनके भाइयों और बहनों से मिलीं। उनके बड़े भाई द्विजेंद्रनाथ एक कवि और दार्शनिक थे। उनके भाई सत्येंद्रनाथ एक उच्च सम्मानजनक स्थिति में थे।
उनकी बहन स्वर्णकुमारी एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थीं। टैगोर काफी हद तक होम-स्कूली थे और उन्हें उनके भाई-बहनों ने जिम्नास्टिक, मार्शल आर्ट, कला, शरीर रचना विज्ञान, साहित्य, इतिहास और गणित के क्षेत्र में प्रशिक्षित किया था। 1873 में उन्होंने अपने पिता के साथ कई महीनों तक देश का भ्रमण किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने कई विषयों पर ज्ञान अर्जित किया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शिक्षा (Rabindranath Tagore‘s Education)
रवींद्रनाथ टैगोर की प्रारंभिक शिक्षा सेंट जेवियर नामक स्कूल, कोलकाता में हुई। टैगोर कभी भी औपचारिक शिक्षा के प्रशंसक नहीं थे और इसी कारण उन्हें अपने स्कूल में जाने में कोई रुचि नहीं थी। इनके पिता देवेन्द्रनाथ टैगोर समाज सुधारक एवं समाजसेवी थे, इसीलिए वह रवीन्द्रनाथ को बैरिस्टर बनाना चाहते थे।
परन्तु इनको साहित्य में रूचि में थी। वर्ष 1878 में उनको कानून के अध्ययन के लिए ब्राइटन, इंग्लैंड भेजा गया तथा उनका लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज में दाखिला करवाया गया। लेकिन उनकी बैरिस्टर की पढ़ाई में कोई रुचि नहीं थी। वे शेक्सपियर के कई नाटकों का अध्ययन तथा अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का अध्ययन करने के बाद 1880 में अपनी पढ़ाई अधूरी छोङकर ही भारत वापस लौट आए।
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रवीन्द्रनाथ टैगोर का वैवाहिक जीवन (Marital life of Rabindranath Tagore)
रवीन्द्रनाथ टैगोर की शादी 9 दिसंबर, 1883 में मृणालिनी देवी से हुआ, जब वह सिर्फ 10 साल की थीं। उनके पांच बच्चे हुए।
शान्ति निकेतन की स्थापना (Establishment of Shanti Niketan)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1901 में शांतिनिकेतन आश्रम चले गए, वहां उन्होंने उपनिषदों से पारंपरिक ’गुरु-शिष्य’ शिक्षण विधियां पर आधारित एक प्रायोगिक स्कूल की स्थापना की। उनका प्रकृति साथ विशेष लगाव था इसलिए शान्तिनिकेतन में उन्होंने प्राकृतिक माहौल बनाया और सघन पेङ-पौधों के बीच पुस्तकालय का निर्माण कराया।
उनको यह विश्वास था कि यह शिक्षण के प्राचीन तरीके अंग्रेजों द्वारा प्रदान की गई आधुनिक शिक्षा प्रणाली की तुलना में इससे छात्रों को अधिक फायदा होगा। परन्तु उसी समय उनकी पत्नी और उनके दो बच्चों की मृत्यु हो गई। जिससे टैगोर व्याकुल हो गए।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1921 में ’विश्वभारती विश्वविद्यालय’ की स्थापना की।
रवींद्रनाथ टैगौर का साहित्यिक जीवन (Literary Life of Rabindranath Tagore)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कई कविताएँ, उपन्यास और लघु कथाएँ लिखीं, जिनमें उन्होंने उस समय प्रचलित सामाजिक बुराइयों जैसे बाल विवाह और दहेज प्रथा को उजागर किया। उनको बचपन से ही कविता, छन्द और भाषा में अत्यंत रुचि थी। उन्होंने इतिहास, भाषा विज्ञान और आध्यात्मिकता से जुङी बहुत-सी किताबें लिखी थीं। टैगोर जी ने बांग्ला साहित्य को नये आयाम दिये और एक आधुनिक साहित्य के रचयिता बने। उन्होंने अपनी रचनाओं से भारतीय सांस्कृतिक चेतना को उजागर किया। वह बंगाली साहित्य में अमूल्य योगदान देने वाले युगदृष्टा बने।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पहली भाषा बंगाली थी, उन्होंने अपना लेखन बंगाली में शुरू किया, लेकिन बाद में उनमें से कई का अंग्रेजी में अनुवाद किया। उन्होंने 2,230 गीतों की रचना की, जिन्हें अक्सर ’रवींद्र संगीत’ कहा जाता है।
टैगोर ने छोटी सी उम्र में लघु कथाएँ लिखना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने लेखन करियर की शुरूआत 1877 में ’भिखारिणी’ नामक लघु कथा से की, जो उनकी पहली रचना थी। उन्होंने अपनी कहानियों में सामाजिक मुद्दों और गरीब आदमी की समस्याओं को उजागर किया। उन्होंने हिंदू विवाहों और कई अन्य रीति-रिवाजों के नकारात्मक पक्ष के बारे में भी लिखा, जो उस समय देश की परंपरा का हिस्सा थे। उनकी कुछ सबसे प्रसिद्ध लघु कथाएँ हैं – ’काबुलीवाला, ’खुदिता पासन’, ’अटृटुजू’, ’हेमंती’ और ’मुसलमानिर गोलपो।’
टैगोर ने भारतीय पौराणिक कथाओं और समकालीन सामाजिक मुद्दों पर आधारित कई नाटक लिखे। जब वह किशोर थे, तब उन्होंने अपने नाटक का काम अपने भाई के साथ शुरू किया। 20 वर्ष की आयु में उन्होंने ’वाल्मीकि प्रतिभा’ नाटक लिखा।
प्रसिद्ध नाटक –
- मुक्तधारा (1922)
- राजा (1910)
- रक्तकरावी (1926)
- अचलयातन (1912)
- डाकघर (1912)
प्रसिद्ध कहानी व उपन्यास –
- गोरा (1910)
- नौकादुबी
- योगायोग (1929)
- जोगजोग
- चतुरंगा
- बहू ठाकुरनीर हाट (1881)
- घारे बायरे
- पोस्ट मास्टर
- काबुलीवा
- चोखेर बाली
- घाटेर कथा
एक कवि के रूप में रवीन्द्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore as a poet)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सभी साहित्यिक विधाओ को सफलतापूर्वक लिखा था। टैगोर सर्वप्रथम एक कवि थे तथा उन्होंने 50 से भी अधिक कविताएँ लिखीं थीं।
टैगोर की पारंपरिक बंगाली भाषा में 1910 में सर्वश्रेष्ठ और सर्वप्रसिद्ध कविता ’गीतांजलि’ प्रकाशित हुई। इसमें प्रकृति, आध्यात्मिकता और जटिल मानवीय भावनाओं पर आधारित 157 कविताएँ शामिल थीं।
भारत के साथ-साथ विदेशों में भी गीतांजलि के प्रकाशन के बाद उनकी लोकप्रियता काफी बढ़ गई। इसी कारण 1913 में रवीन्द्रनाथ टैगोर को ’गीताजंलि’ कविता संग्रह के लिए साहित्य में प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह साहित्य में नोबेल पुरस्कार जीतने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने प्राचीन कवियों कबीर और रामप्रसाद सेन से प्रेरणा ली। उनकी कविताओं की तुलना अक्सर शास्त्रीय कवियों की 15 वीं और 16 वीं शताब्दी की रचनाओं से की जाती है।
प्रमुख कविताएँ –
- मानसी (1890)
- सोनार तारी (1894)
- गीतांजलि (1910)
- गीतिमाल्या (1914)
- बालका (1916)
- तलगाच
- भानुसिम्हा ठाकुर पदबली
- कबी-कहिनी
- जीते नहीं दीबो
- प्रभात संगीत
- संध्या संगीत
- भगना हृदय
- बंगमाता
- चित्तो जेठा भयुन्यो
- दुई बीघा जोमी
- जीवन की धारा
- वीरपुरुष
रवीन्द्रनाथ टैगोर की विशिष्ट कथा शैली आज भी पाठकों के लिए चुनौतीपूर्ण है। उनके लेखन ने राष्ट्रवाद के भविष्य के खतरों के साथ-साथ अन्य महत्त्वपूर्ण सामाजिक समस्याओं को संबोधित किया है। उनकी पुस्तक ’शेशेर कोबिता’ ने कविता और मुख्य पात्र के लयबद्ध वर्णन के माध्यम से अपनी कहानी प्रस्तुत की।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की पुस्तकें है –
- गीतांजलि (1910)
- शेशेर कबिता (1929)
- चोखेर बाली (1903)
- डाकघर (1912)
- मानसी (1890)
- रचनात्मक एकता (1922)
- वसंत का चक्र (1917)
- भिखारिनी
- भूखे पत्थर (1920)
- साधना, जीवन का अहसास (1913)
- राष्ट्रवाद (1917)
- लघु कथाएँ
- गीताबितान (1932)
- मनुष्य का धर्म (1931)
- द होम एंड द वर्ल्ड (1916)
- गेला (1910)
- आवारा पक्षी (1916)
- माली (1913)
- काबुलीवाला
- गाने की पेशकश (1910)
- द हंग्री स्टोन्स एंड अदर स्टोरीज़ (1916)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा कहानियां (2004)
- द ब्रोकन नेस्ट (1901)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर: एन एंथोलॉजी (1997)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की चुनिंदा लघु कथाएँ (1917)
- टैगोर की कहानियां (1918)
- द एसेंशियल टैगोर (2011)
- गमेरे लड़कपन के दिन
- फलों का जमावड़ा (1916)
- सोनार तोरी (1894)
- बंगाल की झलक (1921)
- मेरे संस्मरण (1912)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की संपूर्ण कृतियाँ (सचित्र संस्करण)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर : चयनित कविताएं और गीत (2006)
- योगयोग (1929)
- गल्पगुच्छा
- मलबे (1926)
- प्रेमी का उपहार और पार (1918)
- वोकेशन (1909)
- सहज पथ
- चार अध्याय
- भानुसिम्हा ठाकुरर पदबली (1884)
- चतुरंगा
- नौकाडुंबी (1906)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर : अचलायतन
- रेड ओलियंडर्स (1925)
- रवीन्द्रनाथ टैगोर की कविताओं और नाटकों का संग्रह (1936)
- दुई बीघा जोमी
- एल कार्टेरो डेल रे
- घर आ रहा है
भारतीय राष्ट्रगान (जन-गण-मन) के रचयिता
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने भारत के लिए राष्ट्रगान – ’जन गण मन’ लिखा था। उन्होंने बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत ’आमार सोनार बांग्ला’ भी लिखा था। इसके साथ ही श्रीलंका का राष्ट्रगान भी टैगोर द्वारा लिखे गए एक बंगाली गीत पर आधारित था।
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान (Contribution to the Indian Independence Movement)
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी कविताओं और गीतों के माध्यम से भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन में आवाज उठाई। उन्होंने भारतीय राष्ट्रवादियों का समर्थन किया और ब्रिटिश साम्राज्यवाद की आलोचना की। उन्होंने भारतीयों पर जबदस्ती ठोपी जा रही अंग्रेजी शिक्षा प्रणाली की भी आलोचना की। उन्होंने ब्रिटिश शासन को भारतीय जनता की ’सामाजिक बुराई’ की संज्ञा दी तथा उन्होंने अपने लेखन में भारतीय राष्ट्रवादियों के पक्ष में आवाज उठाई।
रवीन्द्रनाथ टैगोर ने 1905 में बंगाल विभाजन के बाद बंगाल की जनता को एकजुट करने के लिए ’बांग्लार माटी बांग्लार जोल’ गीत लिखा था। इसके अतिरिक्त उन्होंने जातिवाद के खिलाफ ’राखी उत्सव’ का प्रारंभ किया, उनसे प्रेरित होकर हिंदू और मुस्लिम समुदायों के लोगों ने एक-दूसरे की कलाई पर रंग-बिरंगे धागे बांधे।
3 जून 1915 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को ’किंग जॉर्ज पंचम’ द्वारा ’नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। जिसको उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकाण्ड’ (अमृतसर) के विरोध के रूप में त्याग दिया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर को मिले पुरस्कार (Rabindranath Tagore gets Awards)
14 नवंबर, 1913 को रवीन्द्रनाथ टैगोर को सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रय रचना ’गीताजंलि’ के लिए साहित्य में ’नोबेल पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उसके बाद वे पूरे विश्व में विख्यात हो गए।
20 दिसंबर, 1915 को कलकत्ता विश्वविद्यालय ने टैगोर जी को साहित्य के लिए ’डॉक्टर’ की उपाधि से सम्मानित किया।
टैगोर को 3 जून 1915 को ’किंग जॉर्ज पंचम’ (ब्रिटेन) द्वारा ’नाइटहुड’ की उपाधि से सम्मानित किया गया। 1919 में ’जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के बाद उन्होंने इस उपाधि को त्याग दिया।
1940 में ’ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी’ ने उन्हें शांतिनिकेतन में आयोजित एक विशेष समारोह के दौरान ’डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर’ के साथ प्रस्तुत किया।
रवींद्रनाथ टैगारे की मृत्यु (Death of Rabindranath Tagare)
रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन के अंतिम चार साल कष्टदायी पीङा में बीते। लंबे समय तक बीमारी से पीङित रहने के बाद 7 अगस्त 1941 को कोलकात्ता में जोरासांकी हवेली में उनका निधन हो गया।
वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वे अधिकतर अपनी छोटी और सरल कविताओं के लिए विख्यात थे तथा उनकी लिखी हुई बङी कवितायें भी बहुत लोकप्रिय हुई।
भारत के राष्ट्रीय गान की रचना करने वाले और साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार जीतने वाले रवीन्द्रनाथ टैगोर प्रत्येक दृष्टि से एक बहुप्रतिभाशाली व्यक्तित्व के धनी थे।