रामज्ञा प्रश्न चतुर्थ सर्ग || Ramagya Prashna Chaturtha Sarga 4

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रामज्ञा प्रश्न चतुर्थ सर्ग – रामाज्ञा प्रश्न तुलसीदास की रचना है जो शुभ-अशुभ विचार के लिए रची गयी है। यह विचार उन्होंने राम-कथा की सहायता से प्रस्तुत किया है। यह रचना दोहा शैली में रचित है। सात-सात सप्तकों के सात सर्गों के लिए पुस्तक खोलने पर जो दोहा मिलता है उसके पहले राम-कथा का कोई एक प्रसंग आता है और बाद में शुभ-अशुभ फल चर्चा आती है। तुलसीदास जी की यह रचना अवधी भाषा मे लिखित एक मुक्तक काव्य है। मूलतः यह एक ज्योतिष ग्रन्थ है जिसको तुलसीदास जी ने अपने मित्र गंगाराम ज्योतिष के आग्रह पर लिखा था।

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक १

राम जनम सुभ सगुन भल सकल सुकृत सुख सारु ।

पुत्र लाभ कल्यानु बड़, मंगल चारु बिचारु ॥१॥

श्रीराम का जन्म उत्तम शुभ शकुन है, समस्त पुण्यों का तथा सुखों का सार है । पुत्र की प्राप्ति होगी, परम कल्याण होगा, सुन्दर मंगल समझो ॥१॥

दसरथ कुल गुरु की कॄपाँ सुत हित जाग कराइ ।

पायस पाइ बिभाग करि रानिन्ह दीन्ह बुलाइ ॥२॥

महराज दशरथ ने कुलगुरु ( वसिष्ठजी ) की कृपा से पुत्रेष्टि यज्ञ कराकर ( प्रसादरूप में ) खीर पाकर; रानियों को बुलाकर उसका विभाग करके उन्हें दे दिया ॥२॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

सब सगरभ सोहहिं सदन सकल सुमंगल खानि ।

तेज प्रताप प्रसन्नता रूप न जाहिं बखानि ॥३॥

सब रानियाँ गर्भवती होकर ( अयोध्या के ) राजमहल में सुशोभित हो रही हैं । वे समस्त शुभ मंगलों की खानें (निवासभूत) हैं । उनके तेज, प्रताप, आनन्द और सौन्दर्य का वर्णन नहीं किया जा सकता ॥३॥

( प्रश्‍न फल श्रेष्ठ है । )

देखि सुहावन सपन सुभ सगुन सुमंगल पाइ ।

कहहिं भूप सन मुदित मन हर्ष न हृदयँ समाइ ॥४॥

सुहावना स्वप्न देखकर तथा मंगलमय शकुन पाकर प्रसन्न मन से ( रानियाँ उसका वर्णन) महाराज ( दशरथ ) से कहती हैं, प्रसन्नता हृदय में समाती नहीं ( बाहर फुटी पड़ती है ) ॥४॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

सपन सगुन सुनि राउ कह कुलगुरु आसिरबाद ।

पूजिहि सब मन कामना, संकर गौरि प्रसाद ॥५॥

( रानियों का ) स्वप्न तथा शकुन सुनकर महाराज दशरथजी कहते हैं, ( यह सब ) कुलगुरु ( वसिष्ठजी ) का आशिर्वाद है । श्रीशड्करजी तथा पार्वतीजी की कृपा से मन की सब अभिलाषा पूर्ण होगी ॥५॥

( प्रश्‍न फल उत्तम है । )

मास पाख तिथि जोग सुभ नखत लगन ग्रह बार ।

सकल सुमंगल मूल जग राम लीन्ह अवतार ॥६॥

जिस समय समस्त श्रेष्ठ कल्याणों के मूल श्रीराम ने संसार में अवतार लिया, उस समय महीना, पक्ष, तिथि, योग, नक्षत्र, लग्न, ग्रह तथा दिन-सभी शुभ थे ॥६॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

भरत लखन रिपुदवन सब सुवन सुमंगल मुल ।

प्रगट भए नृप सुकृत फल तुलसी बिधि अनुकुल ॥७॥

भरत लक्ष्मण शत्रुघ्न-ये सब श्रेष्ठ मंगलों के मूलस्वरुप पुत्र महाराज दशरथ के पुण्यों के फलस्वरूप प्रकट हुए । तुलसीदासजी कहते हैं कि ( इस शकुन द्वारा सूचित होता है कि ) विधाता ( भाग्य ) अनुकूल है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक २

घर घर अवध बधावने, मुदित नगर नर नारि ।

बरषि सुमन हरषहिं बिबुध, बिधि त्रिपुरारि मुरारि ॥१॥

अयोध्या के प्रत्येक घर में बधाई बज रही हैं । नगर के नर नारी सब आनन्दित हैं । पुष्प – वर्षा करके देवता, ब्रह्माजी, शंकरजी और विष्णु भगवान् प्रसन्न हो रहे हैं ॥१॥

( प्रश्‍न – फल श्रेष्ठ है । )

मंगल गान निसान नभ, नगर मुदित नर नारि ।

भूप सुकृत सुरतरु निरखि फरे चारु फल चारि ॥२॥

आकाश में ( देवताओं द्वारा ) मंगल- गान हो रहा हैं तथा नगारे बज रहे हैं, नगर के स्त्री-पुरुष महाराज दशरथ के पुण्यरूपी कल्पवृक्ष में ( पुत्ररूपी ) चार सुन्दर फल लगे देखकर आनन्दमग्न हैं ॥२॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

पुत्र काज कल्यान नृप दिए बहु भाँति ।

रहस बिबस रनिवास सब मुद मंगल दिन राति ॥३॥

पुत्रों के कल्याण के लिये महाराज ने बहुत प्रकार से दान दिये । पूरा रनिवास आनन्द में मग्न है । दिन-रात आनन्दमंगल हो रहा है ॥३॥

( प्रश्‍न फल श्रेष्ठ है । )

अनुदिन अवध बधावने, नित नव मंगल मोद ।

मुदित मातु पितु लोग लखि रघुबर बाल बिनोद ॥४॥

अयोध्या में प्रतिदिन बधाइ के बाजे बज रहे हैं । नित्य नवीन आनन्द- मंगल हो रहा है । श्रीरघुनाथजी की बालक्रीड़ा देखकर माताएँ, पिता तथा सब लोग प्रसन्न होते हैं ॥४॥

( प्रश्‍न – फल उत्तम है । )

करनबेध चूडा़करन लौकिक बैदिक काज ।

गुरु आयसु भूपति करत मंगल साज समाज ॥५॥

गुरुदेव की आज्ञा से महाराज मंगल-साज सजाकर कर्णवेध, चूड़ाकरण ( मुण्डन ) आदि लौकिक-वैदिक विधियोंसहित वे समाज के साथ करते हैं ॥५॥

( प्रश्‍न – फल शुभ है । )

राज अजिर राजत रुचित कोसल पालक बाल ।

जानु पानि चर चरित बर सगुन सुमंगल माल ॥६॥

राजभवन के आँगन में कोसलनरेश महाराज दशरथ के सुन्दर बालक घुटनों तथा हाथों के बल चलते एवं सुन्दर चरित ( क्रीड़ा ) करते सुशोभित होते हैं । यह शकुन सुमड्गलों की माला ( सदा कल्याणकारी ) है ॥६॥

लहे मातु पितु भोग बस सुत जग जलधि ललाम ।

पुत्र लाभ हित सगुन सुभ, तुलसी सुमिरहु राम ॥७॥

माता पिता ने सौभाग्यवश संसार-सागर में रत्‍नस्वरूप पुत्र पाये । तुलसीदासजी कहते हैं कि श्रीराम का स्मरण करो, यह शकुन पुत्र-प्राप्ति के लिये शुभ है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक ३

बाल बिभुषन बसन धर, धूरि धूसरित अंग ।

बालकेलि रघुबर करत बाल बंधु सब संग ॥१॥

श्रीरघुनाथजी बालकोपयुक्त आभुषण और वस्त्र पहिने बालक्रीड़ा कर रहे हैं । उनका शरीर धूलि से सना हैं और साथ में छोटे भाई तथा अन्य बालक हैं ॥१॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है ।)

राम भरत लछिमन ललित सत्रुसमन सुभ नाम ।

सुमिरत दसरथ सुवन सब पूजिहिं सब मन काम ॥२॥

श्रीराम, भरत, लक्ष्मण, शत्रुघ्न-ये सुन्दर शुभ नाम हैं । महाराज दशरथ के इन पुत्रों का स्मरण करने से सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी ॥२॥

नाम ललित लीला ललित ललित रूप रघुनाथ ।

ललित बसन भूषन ललित ललित अनुज सिसु साथ ॥३॥

श्रीरघुनाजी का नाम सुन्दर है, लीलाएँ सुन्दर हैं, स्वरूप सुन्दर है, वस्त्र सुन्दर हैं आभुषण सुन्दर हैं तथा छोटे भाई एवं साथ के बालक भी सुन्दर हैं ॥३॥

( प्रश्‍न – फल उत्तम हैं । )

सुदिन साधि मंगल किए, दिए भूप ब्रतबंध ।

अवध बधाव ब्रिलोकि सुर बरषत सुमन सुगंध ॥४॥

महाराज दशरथ ने शुभ दिन शोधकर मंगल-कर्य करके ( पुत्रों का ) यज्ञोपवीत-संस्कार कराया । अयोध्या में बधाई के बाजे बजते देख देवता सुगन्धित पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं ॥४॥

( प्रश्‍न – फल शुभ है । )

भूपति भूसुर भाट नट जाचक पुर नर नारि ।

दिए दान सनमानि सब, पूजे कुल अनुहारि ॥५॥

महराज ने ब्राह्मण, भाट, नट भिक्षुक तथा नगर के सभी स्त्री-पुरुषों के उनके कुल के अनुसार सम्मानपूर्वक दान देकर उनकी पूजा की ॥५॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

सखीं सुआसिनि बिप्रतिय सनमानीं सब रायँ ।

ईस मनाय असीस सुभ देहिं सनेह सुभायँ ॥६॥

महाराज ने ( रानियों की ) सखियों, सौभाग्यवती स्त्रियों तथा ब्राह्मणों की स्त्रियों- सबका सम्मान किया । वे स्वाभाविक प्रेमवश ईश्वर को मनाकर शुभाशीर्वाद देती हैं ॥६॥

( प्रश्‍न फल उत्तम है । )

राम काज कल्यान सब सगुन सुमंगल मूल ।

चिर जीवहु तुलसीस सब , कहि सुर बरषहिं फुल ॥७॥

श्रीरामचंद्रजी के कल्याण के लिये सभी सुमंगलों के मुल ( अत्यन्त कल्याणकारी ) शकुन हो रहा हैं । तुलसीदास के सब स्वामी ( चारों भाई ) चिरंजीवी हों, यह कहकर देवता पुष्पवर्षा कर रहे हैं ॥७॥

( प्रश्‍न – फल शुभ है । )

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक ४

राम जनक सुभ काज सब कहत देवरिषि आइ ।

सुनि सुनि मन हनुमान के प्रेम उमँग न अमाइ॥१॥

देवर्षि नारदजी आकर श्रीराम के अवतार से होनेवाले सभी शुभ-कार्यों का वर्णन करते हैं । उनकी चर्चा बार-बार ( किष्किन्धा में ) सुनकर हनुमान्‌जी के मन में प्रेम की उमंग समाती नहीं ॥१॥

( प्रियजनका संवाद मिलेगा )

भरतु स्यामतन राम सम, सब गुन रूप निधान ।

सेवक सुखदायक सुलभ सुमिरत सब कल्यान ॥२॥

श्रीभरतजी श्रीरघुनाथजी के समान ही साँवले शरीरवाले और समस्त गुणों तथा रूप के खजाने हैं । वे सेवकों को सुख देनेवाले हैं । उनका स्मरण करने से सभी कल्याण सुलभ हो जाते हैं ॥२॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

ललित लाहु लोने लखनु, लोयन लाहु निहारि ।

सुत ललाम लालहु ललित, लेहु ललकि फल चारि ॥३॥

परम सुन्दर श्रीलक्ष्मणजी के प्रिय-मिलन (दर्शन) को नेत्र पाने का लाभ समझो ( यह शकुन कहता है कि ) सुन्दर पुत्ररत्न ( पाकर ) उसका लालन-पालन करो और समुत्सुक बनकर चारों फल ( धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ) प्राप्त करो ॥३॥

मंगल मूरति मोद निधि, मधुर मनोहर बेष ।

रम अनुग्रह पुत्र फल होइहि सगुन बिसेष ॥४॥

मंगल की मूर्ति, आनन्दनिधि, मधुरिमामय मनोहर रूपवाले श्रीरघुनाथजी की कृपा से पुत्र होगा, यह इस शकुन का विशेष फल है ॥४॥

सोधत मख महि जनकपुर सीय सुमंगल खानि ।

भूपति पुन्य पयोधि जनु रमा प्रगट भ‌इ आनि ॥५॥

यज्ञ-भूमि शुद्ध करते समय जनकपुर में श्रेष्ठ मंगलों की खानि सीताजी इस प्रकार प्रकट हुईं, मानो महाराज जनक के पुण्यरुपी समुद्र से निकलकर लक्ष्मी प्रकट हो गयी हों ॥५॥

( कन्या की प्राप्ति होगी । )

नाम सत्रुसुदन सुभग सुषमा सील निकेत ।

सेवत सुमिरत सुलभ सुख सकल सुमंगल देत ॥६॥

सौन्दर्य एवं शील के भवन शत्रुघ्नजी का नाम मनोहर है, उनकी सेवा एवं स्मरण में बड़ी सुगमता है और वे सम्पूर्ण सुख एवं कल्याण प्रदान करते हैं ॥६॥

बालक कोसलपाल के सेवक पाल कॄपाल ।

तुलसी मन मानस बसत मंगल मंजु मराल ॥७॥

कोसलनरेश ( महाराज दशरथ ) के कॄपालु पुत्र सेवकों का पालन करनेवाले हैं । तुलसीदास के मनरूपी मानसरोवर में वे मंगलमय सुन्दर हंसों के समान निवास करते हैं ॥७॥

( प्रश्‍न फल उत्तम है । )

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक ५

जनकनंदिनी जनकपुर जब तें प्रगटीं आइ ।

तब तें सब सुखसंपदा अधिक अधिक अधिकाइ ॥१॥

जब से जनकपुर में श्रीसीताजी आकर प्रकट हुई, तब से वहाँ सभी सुख एवं सम्पत्तियाँ दिनों-दिन अधिकाधिक बढ़ती जाती हैं ॥१॥

( यह शकुन सुख सम्पत्ति की प्राप्ति तथा उन्नति की सूचना देता है । )

सीय स्वयंबर जनकपुर सुनि सुनि सकल नरेस ।

आए साज समाज सजि भूषन बसन सुदेस ॥२॥

सीताजी के स्वयंवर का समाचार सुनकर सभी राजा आभुषण और वस्त्रों से भली प्रकार सजकर अपना समाज सजाकर जनकपुर आये ॥२॥

( प्रश्‍न-फल शुभ है । )

चले मुदित कौसिक अवध सगुन सुमंगल साथ ।

आए सुनि सनमानि गृहँ आने कोसलनाथ ॥३॥

महर्षि विश्वामित्र प्रसन्न होकर अयोध्या चले । श्रेष्ठ मंगलदायक शकुन उनके साथ-साथ चल रहे थे – मार्ग में होते जाते थे । महाराज दशरथ उनका आगमन सुनकर ( आगे जाकर ) आदरपूर्वक उन्हें राजभवन में ले आये ॥३॥

( प्रश्‍न फल श्रेष्ठ है । )

सादर सोरह भाँति नृप पूजि पहुनई कीन्हि ।

बिनय बडा़ई देखि मुनि अभिमत आसिष दीन्हि ॥४॥

महाराज दशरथ ने आदरपूर्वक षोडशोपचार से ( विश्वामित्रजी का ) पूजन करके आतिथ्य सत्कार किया ।(महाराज का) विनम्रभाव तथा सम्मान देखकर मुनि ( विश्वामित्रजी ) ने अभीष्ट आशीर्वाद दिया ॥४॥

( प्रश्‍न- फल उत्तम है । )

मुनि माँग दसरथ दिए रामु लखनु दो‍उ भाइ ।

पाइ सगुन फल सुकृत फल प्रमुदित चले लेवाइ ॥५॥

मुनि के माँगने पर महाराज दशरथ ने उन्हें श्रीराम-लक्ष्मण दोनों भाइयों को सौंप दिया । ( पहिले हुए ) शकुनों का फल तथा अपने पुण्यों का फल पा अत्यन्त प्रसन्न हो ( मुनि दोनों भाइयों को ) साथ ले चले ॥५॥

( प्रश्‍न – फल श्रेष्ठ है । )

स्यामल गौर किसोर बर धरें तुन धनु बान ।

सोहत कौसिक सहित मग मुद मंगल कल्यान ॥६॥

साँवले और गोरे श्रेष्ठ किशोर ( दोनों भाई) तरकस और धनुष्य-बाण लिये विश्वामित्रजी के साथ मार्ग में ऐसे सुशोभित हैं, मानो ( मूर्तिमान ) आनन्द मंगल एवं कल्याण हों ॥६॥

( प्रश्‍न फल उत्तम है । )

सैल सरित सर बाग बन, मृग बिहंग बहुरंग ।

तुलसी देखत जात प्रभु मुदित गाधिसुत संग ॥७॥

तुलसीदासजी कहते हैं कि प्रभु पर्वत, नदी, सरोवर, वन, उपवन तथा अनेक रंगों के पशु-पक्षी देखते हुए आनन्दित हो विश्वामित्रजी के साथ जा रहे हैं ॥७॥

( यात्रा सुखद होगी । )

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक ६

लेत बिलोचन लाभु सब बड़भागी मग लोग ।

राम कृपाँ दरसनु सुगम, अगन जाग जप जोग ॥१॥

मार्ग के सब लोग बडे़ भाग्यशाली हैं, वे नेत्रों का लाभ ( श्रीराम का दर्शन ) पा रहे हैं – जो ( श्रीराम का ) दर्शन यज्ञ जप तथा योगद्वारा भी अगम्य है, परन्तु श्रीराम की कृपा से सुगम ( सुलभ ) हो जाता है ॥१॥

( प्रश्‍न – फल श्रेष्ठ है । )

जलद छाँह मृदु मग अवनि सुखद पवन अनुकूल ।

हरषत बिबुध बिलोकि प्रभु बरषत सुरतरु फूल ॥२॥

बादल छाया कर रहे हैं, मार्ग की भूमि कोमल हो गयी है, सुखदायी अनुकूल वायु चल रही है । प्रभु को देखकर देवता प्रसन्न हो रहे हैं और कल्पवृक्ष के पुष्पों की वर्षा कर रहे हैं ॥२॥

( प्रश्‍न – फल शुभ है । )

दले मलिन खल राखि मख, मुनि सिष आसिष दीन्ह ।

बिद्या बिस्वामित्र सब सुथल समरपित कीन्हि ॥३॥

(प्रभु ने) दुष्ट राक्षसों को नष्ट कर दिया और इस प्रकार यज्ञ की रक्षा की । मुनि विश्वामित्रजी ने उन्हें शिक्षा और आशीर्वाद दिया तथा पुण्यस्थल में सारी विद्याएँ दान की ॥३॥

( प्रश्‍न-फल उत्तम है । )

अभय किए मुनि राखि मख, धरें बान धनु हाथ ।

धनु मख कौतुक जनकपुर चले गाधिसुत साथ ॥४॥

हाथ में धनुष-बाण लेकर ( प्रभु ने ) यज्ञ की रक्षा और मुनियों को निर्भय कर दिया । फिर वे विश्र्वामित्रजी के साथ धनुष्य – यज्ञ की क्रीड़ा देखने जनकपुर चले ॥४॥

( प्रश्‍न – फल श्रेष्ठ है । )

गौतम तिय तारन चरन कमल आनि उर देखु ।

सकल सुमंगल सिद्धि सब करतल सगुन बिसेषु ॥५॥

गौतम मुनि की पत्नी ( अहल्या ) का उद्धार करनेवाले चरणों को हृदय में लाकर देखो ( हृदय में उनका ध्यान करो ) । यह शकुन विशेषरूप से सूचित करता है कि सब प्रकार का परम कल्याण तथा सारी सफलता हाथ में (प्राप्त ही ) समझो ॥५॥

जनक पाइ प्रिय पाहुने पूजे पूजन जोग ।

बालक कोसलपाल के देखि मगन पुर लोग ॥६॥

महाराज जनक ने पूजा करनेयोग्य प्रिय अतिथियों को पाकर उनका पूजन किया । कोसलनरेश (महाराज दशरथ) के कुमारों को देखकर नगरवासी आनन्दमग्न हो रहे हैं ॥६॥

( प्रश्‍न – फल शुभ है । )

सनमाने आने सदन पूजे अति अनुराग ।

तुलसी मंगल सगुन सुभ भूरि भलाई भाग ॥७॥

महाराज जनक श्रीराम – लक्ष्मणसहित विश्र्वामित्रजी को सम्मानपूर्वक राजभवन में ले आये और अत्यन्त प्रेमपूर्वक उनकी पूजा की । तुलसीदासजी कहते हैं कि यह शुभ शकुन मंगलकारी है, भाग्य में बहुत अधिक बड़ाई है ॥७॥

रामज्ञा प्रश्न – चतुर्थ सर्ग – सप्तक ७

कौसिक देखन धनुष मख चले संग दो‍उ भाइ ।

कुँअर निरखि पुर नारि नर मुदित नयन फल पाइ ॥१॥

विश्र्वामित्रजी दोनों भाइयों के साथ धनुषयज्ञ देखने चले । दोनों कुमारों को देखकर नगर के स्त्री-पुरुष नेत्रों का फल पाकर प्रसन्न हो रहे हैं ॥१॥

( प्रश्‍न-फल श्रेष्ठ है । )

भूप सभाँ भव चाप दलि राजत राजकिसोर ।

सिद्धि सुमंगल सगुन सुभ जय जय जय सब ओर ॥२॥

राजाओं की सभा में शंकरजी के धनुष को तोड़कर ( अयोध्या के ) राजकुमार ( श्रीराम ) शोभित हो रहे हैं । सब ओर उनकी जय-जयकार हो रही है । यह शुभ शकुन सफलतादायक एवं परम कल्याणकारी है ॥२॥

जयमय मंजुल माल उर मंगल मुरति देखि ।

गान निसान प्रसुन झरि मंगल मोद बिसोषि ॥३॥

विजयसूचक मनोहर जयमाला वक्षःस्थल पर धारण किये (श्रीराम की) मंगलमयी मूर्ति देखकर मंगलगान तथा पुष्पवर्षा हो रही है और नगारे बज रहे हैं, अत्यन्त आनन्द मड्गल हो रहा है ॥३॥

( प्रश्‍न फल शुभ है । )

समाचार सुनि अवधपति आए सहित समाज ।

प्रीति परस्पर मिलत मुद, सगुन सुमंगल साज ॥४॥

समाचार सुनकर अयोध्यानाथ ( महाराज दशरथ ) बरात के साथ आये । दोनों नरेश प्रेमपूर्वक एक-दुसरे से मिलते हुए बडे़ ही आनन्द का अनुभव कर रहे हैं । यह शकुन परम मंगलकारी है ॥४॥

गान निसान बितान बर बिरचे बिबिध बिधान ।

चारि बिबाह उछाह बड़, कुसल काज कल्यान ॥५॥

मंगलगान हो रहा है, नगारे बज रहे हैं, अनेक प्रकार की करीगरी से युक्त श्रेष्ठ मण्डप बनाये गये हैं, ( एक साथ ) चार विवाह होने से बड़ा उत्सव हो रहा है । ( यह शकुन ) कुशलपूर्वक विवाह-कार्य को पूर्ण करनेवाला है ॥५॥

दाइज पाइ अनेक बिधि सुत सुतबधुन समेत ।

अवधनाथु आए अवध सकल सुमंगल लेत ॥६॥

अनेक प्रकार का दहेज पाकर पुत्र और पुत्रवधुओं के साथ अयोध्यानाथ ( महाराज दशरथ ) समस्त सुमंगल प्राप्त करके अयोध्या लौटे ॥६॥

( प्रश्‍न फल उत्तम है । )

चौथ चारु उनचास पुर घर घर मंगलचार ।

तुलसिहि सब दिन दाहिने द्सरथ राजकुमार ॥७॥

( अयोध्या में ) घर-घर मंगलाचार हो रहा है । तुलसीदासजी कहते हैं कि चौथें सर्ग का उनचासवाँ दोहा शुभ है, दशरथकुमार ( श्रीराम ) सब समय अनुकूल हैं ॥७॥

इतिश्री: रामज्ञा प्रश्न चतुर्थ: सर्ग: ॥

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