Rash Bihari Bose In Hindi Biography | रासबिहारी बोस का जीवन परिचय : भौतिकी, आध्यात्म, कविता, नाटक, संगीत, तर्कशास्त्र,
रासबिहारी बोस का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Ras Bihari Bose History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)
रास बिहारी बोस भारत के प्रमुख क्रांतिकारी नेता थे. जिन्होंने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आंदोलन किया था. उनका ग़दर क्रांति और आजाद हिन्द फौज की स्थापना में भी योगदान था. सुभाषचन्द्र बोस की मृत्यु के पश्चात रास बिहारी बोस ने ही आजाद हिन्द फ़ौज की कमान संभाली थी.
रास बिहारी बोस | |
पूरा नाम | रास बिहारी बोस |
जन्म | 25 मई, 1886 |
जन्म भूमि | वर्धमान ज़िला, पश्चिम बंगाल |
मृत्यु | 21 जनवरी, 1945 |
मृत्यु स्थान | टोक्यो, जापान |
नागरिकता | भारतीय |
प्रसिद्धि | वकील, शिक्षाविद और स्वतंत्रता सेनानी |
धर्म | हिंदू |
अन्य जानकारी | रास बिहारी बोस प्रख्यात क्रांतिकारी तो थे ही, सर्वप्रथम आज़ाद हिन्द फ़ौज के निर्माता भी थे। |
रास बिहारी बोस (जन्म: 25 मई, 1886; मृत्यु: 21 जनवरी, 1945) प्रख्यात वकील और शिक्षाविद थे। रास बिहारी बोस प्रख्यात क्रांतिकारी तो थे ही, सर्वप्रथम आज़ाद हिन्द फ़ौज के निर्माता भी थे। देश के जिन क्रांतिकारियों ने स्वतंत्रता-प्राप्ति तथा स्वतंत्र सरकार का संघटन करने के लिए प्रयत्न किया, उनमें श्री रासबिहारी बोस का नाम प्रमुख है। रास बिहारी बोस कांग्रेस के उदारवादी दल से सम्बद्ध थे। रास बिहारी बोस ने उग्रवादियों को घातक, जनोत्तेजक तथा अनुत्तरदायी आंदोलनकारी कहा। रासबिहारी बोस उन लोगों में से थे जो देश से बाहर जाकर विदेशी राष्ट्रों की सहायता से अंग्रेजों के विरुद्ध वातावरण तैयार कर भारत की मुक्ति का रास्ता निकालने की सोचते रहते थे। 1937 में उन्होंने ‘भारतीय स्वातंय संघ’ की स्थापना की और सभी भारतीयों का आह्वान किया तथा भारत को स्वतंत्र राष्ट्र घोषित कर दिया।
प्रारंभिक जीवन
रासबिहारी बोस का जन्म 26 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले के सुबालदह नामक गाँव में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा चन्दननगर में हुई, जहाँ उनके पिता विनोद बिहारी बोस कार्यरत थे। जब बालक रासबिहारी मात्र तीन साल के थे तब उनकी मां का देहांत हो गया जिसके बाद उनका पालन –पोषण उनकी मामी ने किया। आगे की शिक्षा उन्होंने चन्दननगर के डुप्लेक्स कॉलेज से ग्रहण की। चन्दननगर उन दिनों फ़्रांसिसी कब्ज़े में था। अपने शिक्षक चारू चांद से उन्हें क्रांति की प्रेरणा मिली। उन्होंने बाद में चिकित्सा शाष्त्र और इंजीनियरिंग की पढ़ाई फ्रांस और जर्मनी से की। रासबिहारी बाल्यकाल से ही देश की आजादी के बारे में सोचते थे और क्रान्तिकारी गतिविधियों में गहरी दिलचस्पी लेते थी। रासबिहारी ने देहरादून के वन अनुसंधान संस्थान में कुछ समय तक हेड क्लर्क के रूप में कार्य किया था।
क्रांतिकारी जीवन
सन 1905 के बंगाल विभाजन के समय रासबिहारी बोस क्रांतिकारी गतिविधियों से पहली बार जुड़े। इस दौरान उन्होंने अरविंदो घोस और जतिन बनर्जी के साथ मिलकर बंगाल विभाजन के पीछे अंग्रेजी हुकुमत की मनसा को उजाकर करने का प्रयत्न किया। धीरे-धीरे उनका परिचय बंगाल के प्रमुख क्रांतिकारियों जैसे जतिन मुखर्जी की अगुआई वाले ‘युगान्तर’ क्रान्तिकारी संगठन के अमरेन्द्र चटर्जी और अरबिंदो घोष के राजनीतिक शिष्य रहे जतीन्द्रनाथ बनर्जी उर्फ निरालम्ब स्वामी से हुआ। निरालम्ब स्वामी के सम्पर्क में आने पर उनका परिचय संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) और पंजाब के प्रमुख आर्य समाजी क्रान्तिकारियों से हुआ।
दिसंबर 1911 में ‘दिल्ली दरबार’ के बाद जब भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग की सवारी दिल्ली के चांदनी चौक में निकाली जा रही थी तब हार्डिंग पर बम फेंका गया परन्तु वो बाल-बाल बच गए। युगांतर दल के सदस्य बसन्त कुमार विश्वास ने हार्डिंग की बग्गी पर बम फेंका था लेकिन निशाना चूक गया। बम फेंकने की इस योजना में रासबिहारी की महत्वपूर्ण भूमिका थी। बसंत तो पकड़े गए पर बोस ब्रिटिश पुलिस से बचने के लिये रातों-रात रेलगाड़ी से देहरादून चले गए और अगले दिन कार्यालय में इस तरह काम करने लगे मानो कुछ हुआ ही नहीं हो। अंग्रेजी प्राशासन को उनपर कोई शक न हो इसलिए उन्होंने देहरादून के नागरिकों की एक सभा बुलायी और वायसराय हार्डिंग पर हुए हमले की निन्दा भी की। सन 1913 में बंगाल बाढ़ राहत कार्य के दौरान उनकी मुलाकात जतिन मुखर्जी से हुई, जिन्होंने उनमें नया जोश भर दिया जिसके बाद रासबिहारी बोस दोगुने उत्साह के साथ फिर से क्रान्तिकारी गतिविधियों के संचालन में जुट गये। उन्होंने भारत को आजादी दिलाने के लिये प्रथम विश्व युद्ध के दौरान गदर की योजना बनायी और फरवरी 1915 में अनेक भरोसेमंद क्रान्तिकारियों की सेना में घुसपैठ कराने की कोशिश में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके क्रांतिकारी कार्यों का एक प्रमुख केंद्र वाराणसी रहा, जहाँ से उन्होंने गुप्त रूप से क्रांतिकारी आंदोलनों का संचालन किया।
जापान निर्वासन
प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान युगांतर के कई नेताओं ने ‘सशस्त्र क्रांति’ की योजना बनाई, जिसमें रासबिहारी बोस की प्रमुख भूमिका थी। इन क्रांतिकारियों ने सोचा था कि प्रथम विश्वयुद्ध के कारण अधिकतर सैनिक देश से बाहर गये हुये थे, अत: शेष बचे सैनिकों को आसानी से हराया जा सकता था, लेकिन दुर्भाग्य से उनका यह प्रयास भी असफल रहा और कई क्रान्तिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। ऐसा माना जाता है कि सन 1857 की सशस्त्र क्रांति के बाद ब्रिटिश शासन को समाप्त करने का यह पहला व्यापक और विशाल क्रांतिकारी प्रयत्न था। इसके बाद ब्रिटिश पुलिस रासबिहारी बोस के पीछे लग गयी जिसके कारण वो भागकर जून 1915 में राजा पी. एन. टैगोर के छद्म नाम से जापान पहुँचे और वहाँ रहकर भारत की आजादी के लिये काम करने लगे।
जापान में उन्होंने अपने जापानी क्रान्तिकारी मित्रों के साथ मिलकर देश की स्वतन्त्रता के लिये निरन्तर प्रयास किया। जापान में उन्होंने अंग्रेजी अध्यापन, लेखन और पत्रकारिता का कार्य किया। वहाँ पर उन्होंने ‘न्यू एशिया’ नाम से एक समाचार-पत्र भी निकाला। उन्होंने जापानी भाषा भी सीख ली और इस भाषा में कुल 16 पुस्तकें लिखीं। उन्होंने हिन्दू धर्मग्रन्थ ‘रामायण’ का भी अनुवाद जापानी भाषा में किया।
सन 1916 में रासबिहारी बोस ने प्रसिद्ध पैन एशियाई समर्थक सोमा आइजो और सोमा कोत्सुको की पुत्री से विवाह कर लिया और सन 1923 में जापानी नागरिकता ग्रहण कर ली। रासबिहारी बोस ने जापानी अधिकारियों को भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन और राष्ट्रवादियों के पक्ष में खड़ा करने और भारत की आजादी की लड़ाई में उनका सक्रिय समर्थन दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने मार्च 1942 में टोक्यो में ‘इंडियन इंडीपेंडेंस लीग’ की स्थापना की और भारत की स्वाधीनता के लिए एक सेना बनाने का प्रस्ताव भी पेश किया।
जून 1942 में उन्होंने बैंकाक में इंडियन इंडीपेंडेंस लीग का दूसरा सम्मेलन बुलाया, जिसमें सुभाष चंद्र बोस को लीग में शामिल होने और उसका अध्यक्ष बनने के लिए आमन्त्रित किया गया। मलय और बर्मा के मोर्चे पर जापान ने कई भारतीय युद्धबन्दियों को पकड़ा था। इन युद्धबन्दियों को इण्डियन इण्डिपेण्डेंस लीग में शामिल होने और इंडियन नेशनल आर्मी (आई०एन०ए०) का सैनिक बनने के लिये प्रोत्साहित किया गया। आई०एन०ए० इण्डियन नेशनल लीग की सैन्य शाखा के रूप में सितम्बर 1942 में गठित की गयी। इसके बाद जापानी सैन्य कमान ने रास बिहारी बोस और जनरल मोहन सिंह को आई०एन०ए० के नेतृत्व से हटा दिया लेकिन आई०एन०ए० का संगठनात्मक ढाँचा बना रहा। बाद में सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के नाम से आई०एन०ए० का पुनर्गठन किया।
निधन
भारत को ब्रिटिश शासन की ग़ुलामी से मुक्ति दिलाने में रास बिहारी बोस का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है. उनका 21 जनवरी 1945 को इनका निधन हो गया. उनके निधन से कुछ समय पहले ही जापानी सरकार ने उन्हें “आर्डर आफ द राइजिंग सन” के सम्मान से अलंकृत किया था.
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