राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रश्न उत्तर Rashtriya Swayamsevak Sangh Question Answer

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सम्बन्धित समान्य प्रश्न #प्रश्नोत्तरी

  • संघ का पूरा नाम क्या है ? संस्थापक कौन है ? संघ की स्थापना कहाँ और कब हुई ?
    संघ का पूरा नाम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ। संघ के संस्थापक है डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार। डॉ. जी स्वातंत्र्य सेनानी थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन राष्ट्र सेवा में ही समर्पित किया था। उन्होंने नागपुर में, 1925 में संघ प्रारंभ किया।
  • संघ का सदस्य कौन बन सकता है ?
  • कोई भी हिंदू पुरूष संघ का सदस्य बन सकता है।
  • संघ केवल हिन्दुओं के संगठन की ही बात क्यों करता है? क्या वह एक धार्मिक संगठन है?
  • संघ में हिन्दू शब्द का प्रयोग उपासना,पंथ,मजहब या रिलिजन के नाते नहीं होता है. इसलिए संघ एक धार्मिक या रिलिजियस संगठन नहीं है. हिन्दू की एक जीवन दृष्टि है,एक View of Life है और एक way of life है. इस अर्थ में संघ में हिंदूका प्रयोग होता है. सर्वोच्च न्यायालय ने भी एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि Hinduism is not a religion but a way of Life. उदाहरणार्थ सत्य एक है. उसे बुलाने के नाम अनेक हो सकते हैं. उसे पाने के मार्ग भी अनेक हो सकते हैं. वे सभी समान है यह मानना यह भारत की जीवन दृष्टि है. यह हिन्दू जीवन दृष्टि है. एक ही चैतन्य अनेक रूपों में अभिव्यक्त हुआ है. इसलिए सभी में एक ही चैतन्य विद्यमान है इसलिए विविधता में एकता (Unity in Diversity )यह भारत की जीवन दृष्टि है. यह हिन्दू जीवन दृष्टि है. इस जीवन दृष्टि को मानने वाला,भारत के इतिहास को अपना मानने वाला,यहाँ जो जीवन मूल्य विकसित हुए हैं,उन जीवन मूल्यों को अपने आचरण से समाज में प्रतिष्ठित करनेवाला और इन जीवन मूल्यों की रक्षा हेतु त्याग और बलिदान करनेवाले को अपना आदर्श मानने वाला हर व्यक्ति हिन्दू  है, फिर उसका मजहब या उपासना पंथ चाहे जो हो.
  • क्या संघ में मुस्लिम और ईसाई को भी प्रवेश मिल सकता है?
  • भारत में रहने वाला ईसाई या मुस्लिम भारत के बाहर से नहीं आया है. वे सब यहीं के हैं. हमारे सबके पुरखे एक ही है. किसी कारण से मजहब बदलने से जीवन दृष्टि नहीं बदलती है. इसलिए उन सभी की जीवन दृष्टि भारत की याने हिन्दू ही है. हिन्दू इस नाते वे संघ में आ सकते हैं, आ रहे हैं और जिम्मेदारी लेकर काम भी कर रहे हैं. उनके साथ मजहब के आधार पर कोई भेदभाव या कोई स्पेशल ट्रीटमेंट उनको नहीं मिलती है. सभी के साथ हिन्दू इस नाते वे सभी कार्यक्रमों में सहभागी होते हैं.
  • संघ की सदस्यता की प्रक्रिया क्या है ?
  • संघ सदस्यता की कोई औपचारिक प्रक्रिया नहीं है। कोई भी व्यक्ति नजदीक की संघ शाखा में जाकर संघ मेंसम्मिलित हो सकता है। संघ सदस्य को स्वयंसेवक कहते है। उसके लिए कोई भी शुल्क या पंजीकरण प्रक्रिया नहीं है।
  • संघ के कार्यक्रमों में गणवेष क्यों होता है ? क्या यह स्वयंसेवक बनने के लिए अनिवार्य है ? उसको कैसे प्राप्त किया जाता है ?
  • संघ में शारीरिक कार्यक्रमों के द्वारा एकता का, सामूहिकता का संस्कार किया जाता है। इस हेतू गणवेष उपयुक्त होता है।परन्तु गणवेष विशेष कार्यक्रमों में ही पहना जाता है। नित्य शाखा के लिए वह अनिवार्य नहीं है। गणवेष कीउपयुक्तता ध्यान में आने पर हर स्वयंसेवक अपने खर्चे से गणवेष की पूर्ति करता है।
  • संघ का शाखा में निक्कर पहनने पर आग्रह क्यों है ?
  • यह आग्रह का नहीं परन्तु सुविधा का विषय है। शाखा में प्रतिदिन शारीरिक कार्यक्रम होते हैं।उसके लिए निक्कर यह सुविधाजनक तथा सबके लिए संभव ऐसा वेष है।
  • शाखा क्या है ?
  • किसी निश्चित भौगोलिक क्षेत्र के स्वयंसेवकों के एक घण्टे के प्रतिदिन मिलन को शाखा कहते है।
  • एक घण्टे की शाखा में प्रतिदिन क्या कार्यक्रम होते हैं ?
  • प्रतिदिन की एक घण्टे की शाखा में विविध शारीरिक व्यायाम, खेल, देशभक्ति गीत, विविध राष्ट्र हित के विषयों पर चर्चा तथा भाषण और मातृभूमि की प्रार्थना होती है।
  • संघ की भारत में कितनी शाखा और कितने स्वयंसेवक है ?
  • भारत में शहर और गाँव मिलाकर ५०,००० स्थानोंपर संघ की शाखा है | औपचारिक सभासदत्व न होने के कारण स्वयंसेवकों की संख्या बताना कठिन है |

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की प्रार्थना सम्बन्धित प्रश्नावली

प्रार्थना प्रश्नोत्तरी : प्रार्थना का अर्थ स्पष्ट करने के लिए इस प्रश्नोत्तरी का उपयोग शाखा पर प्रश्नमंच अथवा प्रश्नोत्तरी आदि रूपों में किया जा सकता है।

  • पूर्व इतिहास राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रार्थना किस भाषा में है?
    • संस्कृत ।
  • संस्कृत भाषा के अतिरिक्त उसमें और कौन सी भाषा है?#प्रश्नोत्तरी
    • हिन्दी |
  • हिन्दी का भाग कौन सा है?
    • भारत माता की जय ।
  • प्रार्थना में कितने श्लोक हैं?
    • तीन ।
  • पंक्तियाँ कितनी हैं?
    • तीन श्लोक होने के कारण बारह तथा तेरहवीं ‘भारत माता की जय” |
  • परन्तु दोहराते समय कितनी?
    • २० बीस तथा इक्कीसवीं ‘भारत माता की जय’ ।
  • यह विभाजन कैसे किया गया है?
    • प्रथम श्लोक की चारपंक्तियाँ यथावत, तथा अन्य दोनों श्लोकों की पंक्तियाँ आधी-आधी करके बोली जाती है।
  • यह विभाजन क्यों किया गया है?
    • प्रथम श्लोक का वृत्त छोटा है- 12 वर्णों की पंक्तियों वाला भुजंगप्रयात तथा अन्य दोनों की प्रत्येक पंक्ति में 23 वर्ण होने के कारण वृत्त बड़ा है मेघनिर्घोष ।
  • यह वृत्त नया है क्या?
    • हाँ, नया है। परन्तु मराठी साहित्य में सुमन्दारमाला नाम से यह प्रचलित है। प्रार्थना के रचयिता ने उसका प्रयोग किया। प्रार्थना के रचयिता कौन हैं?
  • श्री नरहरि नारायण भिड़े? श्री भिड़े जी ने प्रार्थना की रचना कब की ?
    • फरवरी 1936 में
  • श्री भिड़े जी कवि थे क्या?
    • शायद हों। परन्तु उन्होंने स्वयं कहा है कि “कवि शांतदर्शी है, मंत्रदृष्टा है, ऋषि है, मैं इसमें कोई नहीं। “नमो मातृभूमी जिथे जन्मलो मी प्रार्थना का दृष्टा और कवि स्वयं डॉ. हेडगेवार हैं। उन्होंने अपने विचारों को मुझ से पद्य रूप दिलवाया। मैं केवल रचयिता हूँ, कवि तो स्वयं डॉ. हेडगेवार हैं।”
  • फरवरी 1939 में विशेष क्या था?
    • बढ़ते जाते संघ कार्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए उस समय ‘सिन्दी’ (महाराष्ट्र) में दस-दिवसीय बैठक बुलाई गई थी। वहीं अन्य बातों के साथ-साथ इस प्रार्थना का भी निश्चय किया गया। पहले इसका भाव गद्य रूप में लिखा गया, पश्चात् पद्य रूप तैयार हुआ ।
  • यह प्रार्थना कब से गाई जाने लगी?
    • 23 अप्रैल 1940 को पुणे संघ शिक्षा वर्ग में ।
  • प्रार्थना को स्वर किसने दिया? ० मा. यादवराव जोशी ने । इस प्रार्थना के पूर्व संघ में प्रार्थना नहीं थी क्या?
    • जरूर थी किन्तु वह थी हिन्दी तथा मराठी में दो श्लोक रूपी। पहला श्लोक मराठी था, दूसरा हिन्दी ।
  • पहला श्लोक क्या था?
    • नमो हिन्दुभूमी जिथे वाढलो मी नमो धर्मभूमी जियेच्याच कामी पड़ो देह माझा सदा ती नमी मी”
  • दूसरा श्लोक?
    • उन दिनों आर्यसमाज की प्रचलित प्रार्थना के एक श्लोक का परिवर्तन रूप था वह-“हे गुरो श्रीरामदूता शील हमको दीजिये शीघ्र सारे सद्गुणों से पूर्ण हिन्दू कीजिये लीजिये हमको शरण में रामपंथी हम बनें ब्रह्मचारी, धर्मरक्षक, वीखतधारी बनें।”(ख) मातृवन्दना और समर्पण (प्रथमश्लोक) प्रार्थना के प्रथम श्लोक में हम
  • क्या माँगते हैं?
    • प्रारंभ में कुछ नहीं माँगते. मात्र नमन करते हैं।
  • नमन किसको?
    • मातृभूमि को ।
  • मातृभूमि के और कितने विशेषण हैं? क्या क्या है?
    • चार ।
      • वत्सले,
      • हिन्दुभूमे ।
      • महामंगले,पुण्यभूमे,
  • इनमें मातृत्वविशेष का शब्द क्या है?
    • वत्सले । अपनी संतानों पर प्रेम करने वाली ।
  • श्रद्धाभाव सूचित करने वाला शब्द ?
    • पुण्यभूमे । (पवित्र धरती)
  • धर्म-संस्कृति संबंधित पहचान व्यक्त करने वाला शब्द ?
    • हिन्दुभूमे ।
  • माता ने हमारे लिए क्या किया?
    • मुझे सुख पूर्वक पाला है (सुखव्ंवर्धितोऽहम्)
  • तब माँ के प्रति अपना कर्तव्य क्या है ?
    • बार – बार नमन करना और अपना तन-मन-धन माँ के चरणों में समर्पित करना (पतत्वेष कायो…) ‘भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किये चलो।’
  • माँ से आपकी माँग क्या है?
    • कुछ नहीं । “मैं नहीं तू ही जैसा पूजनीय गुरुजी ने कहा था। “तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें । (ग) प्रमोदेहि (द्वितीय श्लोक)
  • मातृभू के वन्दन के बाद क्या होता है?
    • प्रभु को नमस्कार ।
  • नमस्कार करने वाला कौन है?
    • हम ( वयम् ) अर्थात् हिन्दूराष्ट्र के अंगभूत । अपने अन्तर्मन का प्रभु कैसा है?
    • सर्वशक्तिमान् ।
    • हमारे द्वारा किस भाव से नमन ?
    • आदरपूर्वक ।
  • नमन करने के बाद हम क्या करते हैं?
    • प्रभो देहि-अर्थात् प्रभु से माँगते हैं।
  • क्या माँगते हैं?
    • शुभ आशीष ।
  • क्यों?
    • अपना जो संकल्प है, उसे पूरा करने के लिए (तत्पूर्तये)
  • तत् क्या है? अर्थात् संकल्प क्या है?
    • तेरा (प्रभु का) कार्य करने के लिए हमने कमर कसी है – यही है संकल्प | (त्वदीय कार्य)
  • तेरा कार्य का तात्पर्य?
    • यह संघ का कार्य, ईश्वरीय कार्य
    • ईश्वर का कार्य तो ईश्वर ही करेगा न?
    • हमारा संकल्प है हम करेंगे। ईश्वर का कार्य ईश्वर की संतानें करेंगी।
    • यह ईश्वरीय कार्य निभाने के लिए कुछ और भी माँगते हैं क्या? हाँ। पाँच गुण ।
  • पहला गुण ? • सम्पूर्ण विश्व में अजेयशक्ति । दूसरा ?
    • सम्पूर्ण विश्व को विनम्र बनाने वाला उत्कृष्ट शील (चरित्र) । तीसरा ?
    • काँटों (कठिनाईयों, कष्टों) से भरे मार्ग पर सफलतापूर्वक चलने का विवेक – श्रुतं (ज्ञान) । यह कंटीला मार्ग टालते क्यों नहीं?
    • टालने का तो प्रश्न ही पैदा नहीं होता। मार्ग की प्रकृति जानकर ही हमने उसे अपनाया है । स्वयंस्वीकृत मार्ग है। वह
    • (घ)साध्य, साधन (तृतीय श्लोक) चौथा गुण क्या है?
  • वीरव्रत । वीरव्रत क्या है? कौन सा व्रत है?
    • जिस धर्म की स्थापना भगवान करना चाहता है, उसी का उग्र, श्रेष्ठ, एकमेव साधन है
  • वीरव्रत । धर्म अर्थात् पूजा-पाठ, भजन, कीर्तन ?
    • नहीं, धर्म याने ऐहिक एवं पारलौकिकं भलाई प्रदान करने वाला सनातन शाश्वत मूल्य । अन्तिम पाँचवा गुण क्या है? • वह है ध्येय के प्रति
  • निष्ठा? किस प्रकार की निष्ठा?
    • अक्षया, तीव्रा, अनिशम् प्रजागर्तु अर्थात् हृदय के अन्तःकरण में कभी कम ने होने वाली, तीव्रता से दिन रात धधकने वाली निष्ठा ।
  • उक्त पाँच गुणों की उपलब्धि क्या है? क्या प्रार्थना करने वालों की
    • कार्य शक्ति ।
  • वैयक्तिक शक्ति ?
    • नहीं, सामूहिक संगठित,
  • यह सभी की कार्यशक्ति ‘संहता कार्यशक्ति ।’ संहता कार्यशक्ति की विशेष क्षमता क्या है?
    • वह जयिष्णु है (विजेत्री) । हमारे धर्म की रक्षा करने वाली भी है।
  • शक्ति प्राप्त होने से प्रार्थना पूर्ण हुई क्या?
    • नहीं, शक्ति तो. साधन मात्र है।
  • तब शक्ति संचय किसलिए? • लक्ष्य पूर्ति हेतु । लक्ष्य क्या है? • स्वराष्ट्र का परम् वैभव अर्थात् स्वधर्म की रक्षा करते हुए स्वराष्ट्र की सर्वांगीण उन्नति । आखिरी माँग क्या है?
    • इस प्रकार की सक्षम विजय शालिनी शक्ति द्वारा राष्ट्र का परं वैभव सिद्ध करने में हम समर्थ बनें । हे प्रभु वह आशीष भी हमें दीजिए । और फलश्रुति । हम भारत माँ की संतानों के बलबूते पर बोलें ‘भारत माता की जय’ ।

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