ऐसे व्यक्तियों का फिर पुनर्जन्म नहीं होता

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मामुपेत्य पुनर्जन्म दु:खालयमशाश्वतम्। नाप्नुवन्ति महात्मान: संसिद्धिं परमां गता: ।। गीता 8/15।।

अर्थ : परम सिद्धि को प्राप्त महान आत्माएं, मुझको प्राप्त होकर दुःखालय व अशाश्वत पुनर्जन्म को प्राप्त नहीं होती।

व्याख्या : यह संसार दुखों से भरा है, यहां दुखों के अलावा और कुछ नहीं है, जिसको हम सुख कहते हैं वह सुख भी आखिर में दुःख की ही ओर ले जाता है। साथ ही यह संसार हमेशा बदलता रहता है, और कभी भी एक जैसा रहने वाला नहीं है, निरंतर बदलते रहने के कारण यह संसार दुःखदायी बना रहता है, इसलिए इस बदलते हुए संसार को अशाश्वत कहा जाता है।

योगी दुखों वा निरंतर बदलते हुए इस संसार से परे परमात्मा की शरण में चला जाता है, जिसके लिए वह निरंतर परमात्मा का चिंतन करता है और अंत में परमात्मा को ही प्राप्त हो जाता है, फिर उसके चित्त में परमात्मा के अतिरिक्त अन्य कोई भी भाव नहीं रहता।

ऐसी दिव्य और महान जीव आत्माएं इस संसार में बड़ी कम होती हैं और वे जीव आत्माएं फिर परमात्मा को प्राप्त कर हमेशा-हमेशा के लिए मुक्त हो जाती हैं, जिससे उनका पुनर्जन्म नहीं होता।

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