संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् || Sankat Mochan Hanuman Stotram

0

हनुमान जी को संकटमोचक कहा गया है और उनके संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् पाठ का कुछ ऐसा ही असर है। इस पाठ को पढ़ने वाले के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। इस संकट मोचन का नित्य पाठ करने से श्री हनुमान् जी की साधक पर विशेष कृपा रहती है, इस स्तोत्र के प्रभाव से साधक की सम्पूर्ण कामनाएँ पूरी होती हैं । इसके अतिरिक्त भी पाठकों के लाभार्थ यहाँ एक अन्य श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रम् काशीपीठाधीश्वर जगद्गुरुशङ्कराचार्यस्वामि श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वती द्वारा बनाया गया दिया जा रहा है ।

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्

||अथ संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम्||

काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

नहिं जप जोग न ध्यान करो । तुम्हरे पद पंकज में सिर नाई ।।

खेलत खात अचेत फिरौं । ममता-मद-लोभ रहे तन छाई ।।

हेरत पन्थ रहो निसि वासर । कारण कौन विलम्बु लगाई ।।

काहे विलम्ब करो अंजनी सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

जो अब आरत होई पुकारत । राखि लेहु यम फांस बचाई ।।

रावण गर्वहने दश मस्तक । घेरि लंगूर की कोट बनाई ।।

निशिचर मारि विध्वंस कियो । घृत लाइ लंगूर ने लंक जराई ।।

जाइ पाताल हने अहिरावण । देविहिं टारि पाताल पठाई ।।

वै भुज काह भये हनुमन्त । लियो जिहि ते सब संत बचाई ।।

औगुन मोर क्षमा करु साहेब । जानिपरी भुज की प्रभुताई ।।

भवन आधार बिना घृत दीपक । टूटी पर यम त्रास दिखाई ।।

काहि पुकार करो यही औसर । भूलि गई जिय की चतुराई ।।

गाढ़ परे सुख देत तु हीं प्रभु । रोषित देखि के जात डेराई ।।

छाड़े हैं माता पिता परिवार । पराई गही शरणागत आई ।।

जन्म अकारथ जात चले । अनुमान बिना नहीं कोउ सहाई ।।

मझधारहिं मम बेड़ी अड़ी । भवसागर पार लगाओ गोसाईं ।।

पूज कोऊ कृत काशी गयो । मह कोऊ रहे सुर ध्यान लगाई ।।

जानत शेष महेष गणेश । सुदेश सदा तुम्हरे गुण गाई ।।

और अवलम्ब न आस छुटै । सब त्रास छुटे हरि भक्ति दृढाई ।।

संतन के दुःख देखि सहैं नहिं । जान परि बड़ी वार लगाई ।।

एक अचम्भी लखो हिय में । कछु कौतुक देखि रहो नहिं जाई ।।

कहुं ताल मृदंग बजावत गावत । जात महा दुःख बेगि नसाई ।।

मूरति एक अनूप सुहावन । का वरणों वह सुन्दरताई ।।

कुंचित केश कपोल विराजत । कौन कली विच भऔंर लुभाई ।।

गरजै घनघोर घमण्ड घटा । बरसै जल अमृत देखि सुहाई ।।

केतिक क्रूर बसे नभ सूरज । सूरसती रहे ध्यान लगाई ।।

भूपन भौन विचित्र सोहावन । गैर बिना वर बेनु बजाई ।।

किंकिन शब्द सुनै जग मोहित । हीरा जड़े बहु झालर लाई ।।

संतन के दुःख देखि सको नहिं । जान परि बड़ी बार लगाई ।।

संत समाज सबै जपते सुर । लोक चले प्रभु के गुण गाई ।।

केतिक क्रूर बसे जग में । भगवन्त बिना नहिं कोऊ सहाई ।।

नहिं कछु वेद पढ़ो, नहीं ध्यान धरो । बनमाहिं इकन्तहि जाई ।।

केवल कृष्ण भज्यो अभिअंतर । धन्य गुरु जिन पन्थ दिखाई ।।

स्वारथ जन्म भये तिनके । जिन्ह को हनुमन्त लियो अपनाई ।।

का वरणों करनी तरनी जल । मध्य पड़ी धरि पाल लगाई ।।

जाहि जपै भव फन्द कटैं । अब पन्थ सोई तुम देहु दिखाई ।।

हेरि हिये मन में गुनिये मन । जात चले अनुमान बड़ाई ।।

यह जीवन जन्म है थोड़े दिना । मोहिं का करि है यम त्रास दिखाई ।।

काहि कहै कोऊ व्यवहार करै । छल-छिद्र में जन्म गवाईं ।।

रे मन चोर तू सत्य कहा अब । का करि हैं यम त्रास दिखाई ।।

जीव दया करु साधु की संगत । लेहि अमर पद लोक बड़ाई ।।

रहा न औसर जात चले । भजिले भगवन्त धनुर्धर राई ।।

काहे विलम्ब करो अंजनी-सुत । संकट बेगि में होहु सहाई ।।

संकट मोचन हनुमान् स्तोत्रम् समाप्त ।।

|| श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रम् २ ||

काशीपीठाधीश्वर जगद्गुरुशङ्कराचार्यस्वामि श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं स्तोत्रम्

श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रम्

सिन्दूरपूररुचिरो बलवीर्यसिन्धुः बुद्धिप्रभावनिधिरद्भुतवैभवश्रीः ।

दीनार्तिदावदहनो वरदो वरेण्यः सङ्कष्टमोचनविभुस्तनुतां शुभं नः ॥ १॥

सोत्साहलङ्घितमहार्णवपौरुषश्रीः लङ्कापुरीप्रदहनप्रथितप्रभावः ।

घोराहवप्रमथितारिचयप्रवीरः प्राभञ्जनिर्जयति मर्कटसार्वभौमः ॥ २॥

द्रोणाचलानयनवर्णितभव्यभूतिः श्रीरामलक्ष्मणसहायकचक्रवर्ती ।

काशीस्थदक्षिणविराजितसौधमल्लः श्रीमारुतिर्विजयते भगवान् महेशः ॥ ३॥

नूनं स्मृतोऽपि ददते भजतां कपीन्द्रः सम्पूजितो दिशति वाञ्छित-सिद्धिवृद्धिम् ।

संमोदकप्रिय उपैति परं प्रहर्षं रामायणश्रवणतः पठतां शरण्यः ॥ ४॥

श्रीभारतप्रवरयुद्धरथोद्धतश्रीः पार्थैककेतनकरालविशालमूर्तिः ।

उच्चैर्घनाघनघटाविकटाट्टहासः श्रीकृष्णपक्षभरणः शरणं ममाऽस्तु ॥ ५॥

जङ्घालजङ्घ उपमातिविदूरवेगो मुष्टिप्रहारपरिमूर्च्छितराक्षसेन्द्रः ।

श्रीरामकीर्तितपराक्रमणोद्धवश्रीः प्राकम्पनिर्विभुरुदञ्चतु भूतये नः ॥ ६॥

सीतार्तिदारणपटुः प्रबलः प्रतापी श्रीराघवेन्द्रपरिरम्भवरप्रसादः ।

वर्णीश्वरः सविधिशिक्षितकालनेमिः पञ्चाननोऽपनयतां विपदोऽधिदेशम् ॥ ७॥

उद्यद्भानुसहस्रसन्निभतनुः पीताम्बरालङ्कृतः

प्रोज्ज्वालानलदीप्यमाननयनो निष्पिष्टरक्षोगणः ।

संवर्तोद्यतवारिदोद्धतरवःप्रोच्चैर्गदाविभ्रमः

श्रीमान् मारुतनंदनः प्रतिदिनं ध्येयो विपद्भञ्जनः ॥ ८॥

रक्षःपिशाचभयनाशनमामयाधि प्रोच्चैर्ज्वरापहरणं हननं रिपूणाम् ।

सम्पत्तिपुत्रकरणं विजयप्रदानं सङ्कष्टमोचनविभोः स्तवनं नराणाम् ॥ ९॥

दारिद्र्यदुःखदहनं शमनं विवादे कल्याणसाधनममङ्गलवारणाय ।

दाम्पत्यदीर्घसुखसर्वमनोरथाप्तिं श्रीमारुतेः स्तवशतावृतिरातनोति ॥ १०॥

स्तोत्रं य एतदनुवासरमाप्तकामःश्रीमारुतिं समनुचिन्त्य पठेत् सुधीरः ।

तस्मै प्रसादसुमुखो वरवानरेन्द्रः साक्षात्कृतो भवति शाश्वतिकः सहायः ॥ ११॥

सङ्कष्टमोचनस्तोत्रं शङ्कराचार्यभिक्षुणा ।

महेश्वरेण रचितं मारुतेश्चरणेऽर्पितम् ॥ १२॥

इति काशीपीठाधीश्वर जगद्गुरुशङ्कराचार्यस्वामि

श्रीमहेश्वरानन्दसरस्वतीविरचितं श्रीसङ्कष्टमोचनस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *