शनिस्तुति || Shani Stuti

शनि ग्रह के प्रति अनेक आखयान पुराणों में प्राप्त होते हैं।शनिदेव को सूर्य पुत्र एवं कर्मफल दाता माना जाता है। लेकिन साथ ही पितृ शत्रु भी। शनि ग्रह के सम्बन्ध मे अनेक भ्रान्तियां और इस लिये उसे मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है। पाश्चात्य ज्योतिषी भी उसे दुख देने वाला मानते हैं। लेकिन शनि उतना अशुभ और मारक नही है, जितना उसे माना जाता है। इसलिये वह शत्रु नही मित्र है।मोक्ष को देने वाला एक मात्र शनि ग्रह ही है। सत्य तो यह ही है कि शनि प्रकृति में संतुलन पैदा करता है, और हर प्राणी के साथ उचित न्याय करता है। जो लोग अनुचित विषमता और अस्वाभाविक समता को आश्रय देते हैं, शनि केवल उन्ही को दण्डिंत (प्रताडित) करते हैं। अनुराधा नक्षत्र के स्वामी शनि हैं।

वैदूर्य कांति रमल:, प्रजानां वाणातसी कुसुम वर्ण विभश्च शरत:।

अन्यापि वर्ण भुव गच्छति तत्सवर्णाभि सूर्यात्मज: अव्यतीति मुनि प्रवाद:॥

भावार्थ:-शनि ग्रह वैदूर्यरत्न अथवा बाणफ़ूल या अलसी के फ़ूल जैसे निर्मल रंग से जब प्रकाशित होता है, तो उस समय प्रजा के लिये शुभ फ़ल देता है यह अन्य वर्णों को प्रकाश देता है, तो उच्च वर्णों को समाप्त करता है, ऐसा ऋषि, महात्मा कहते हैं। शनि का मंत्र निम्न है-

ॐ शं शनैश्चराय नमः॥

ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनैश्चराय नम:॥

शनि की सात सवारियां निम्न है : हाथी, घोड़ा, हिरण, गधा, कुत्ता, भैंसा , गिद्ध और कौआ

शनि देव की प्रसन्नता के लिए यहाँ श्रीशनिस्तुति नीचे दिया जा रहा है-

|| श्रीशनिनामस्तुतिः ||

क्रोडं नीलाञ्जनप्रख्यम् नीलवर्णसमस्रजम् ।

छायामार्तण्डसम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम् ॥

नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहारवर्णाञ्जनमेचकाय ।

श्रुत्वा रहस्यं भवकामदश्च फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र ॥

नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्णदेहाय वै नमः ।

शनैश्चराय क्रूराय शुद्धबुद्धिप्रदायिने ॥

॥ फलश्रुतिः ॥

य एभिर्नामभिः स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम् ।

मदीयं तु भयं तस्य स्वप्नेऽपि न भविष्यति ॥

॥ श्रीभविष्यपुराणे श्रीशनिनामस्तुतिः सम्पूर्णा ॥

|| शनिस्तुतिः ||

कोणस्थः पिङ्गलो बभ्रुः कृष्णो रौन्द्रान्तको यमः ।

सौरिः शनैश्चरो मन्दः पिप्पलाश्रयसंस्थितः ॥ १॥

एतानि शनिनामानि जपेदश्वत्थसन्निधौ ।

शनैश्चरकृता पीडा न कदाऽपि भविष्यति ॥ २॥

||शनिपत्नीनामस्तुतिः ||

ध्वजिनी धामनी चैव कङ्काली कलहप्रिया ।

कण्टकी कलही चाऽथ तुरङ्गी महिषी अजा ॥ १॥

शनेर्नामानि पत्नीनामेतानि सञ्जपन् पुमान् ।

दुःखानि नाशयेन्नित्यं सौभाग्यमेधते सुखम् ॥ २॥

शनिस्तुति सम्पूर्ण ॥

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