शिव स्तुति || Shiv Stuti

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स्कन्दपुराण के महेश्वरखण्ड केदारखण्डान्तर्गत अध्याय ५ में भगवान् शिव की यह स्तुति आता है, भगवान ने जब दक्ष का यज्ञ विध्वंश कर दक्ष का शिर काट दिया तब ब्रह्मा ने व दक्ष का बकरे का शिर लग जाने पर स्वयं दक्ष ने शिवजी का स्तुति किया ।

शिव स्तुति स्कन्दपुराणान्तर्गत

शिव स्तुति ब्रह्मकृत

॥ब्रह्मोवाच॥

नमो रुद्राय शांताय ब्रह्मणे परमात्मने॥

त्वं हि विश्वसृजां स्रष्टा धाता त्वं प्रपितामहः॥ ५.१६ ॥

ब्रह्माजी बोले-शान्तस्वरूप, सर्वत्र व्यापक, परब्रह्मरूप परमात्मा भगवान्‌ रुद्र को नमस्कार है; मस्तक पर जटा -जूट धारण करनेवाले महान्‌ ज्योतिर्मय महेश्वर को नमस्कार है। भगवन्‌! आप जगत्‌ को सृष्टि करनेवाले प्रजापतियो के भी स्रष्टा हैं । आप ही सबका धारण-पोषण करते हैं । आप सबके प्रपितामह हैं ।

नमो रुद्राय महते नीलकंठाय वेधसे॥

विश्वाय विश्वबीजाय जगदानंदहेतवे॥ ५.१७ ॥

आप ही रुद्र, महान्‌, नीलकण्ठ और वेधा है; आपको नमस्कार है। यह सम्पूर्ण विश्व आपका स्वरूप है। आप ही इसके बीज (आदिकारण) हैं । इस जगत्‌ को आनन्द को प्राप्ति करानेवाले भी आप ही हैं, आपको नमस्कार है।

ओंकारस्त्वं वषट्कारः सर्वारंभप्रवर्तकः॥

यज्ञोसि यज्ञकर्मासि यज्ञानां च प्रवर्तकः॥ ५.१८ ॥

आप ही ओंकार, वषट्कार तथा सम्पूर्ण आयोजनों के प्रवर्तक हैं । यज्ञ, यजमान और यज्ञ- प्रवर्तक भी आप ही हैं ।

सर्वेषां यज्ञकर्तॄणां त्वमेव प्रतिपालकः॥

शरण्योसि महादेव सर्वेषां प्राणिनां प्रभो॥

रक्ष रक्ष महादेव पुत्रशोकेन पीडितम्॥ ५.१९ ॥

प्रभो! देवेश्वर । यज्ञ – प्रवर्तक होकर भी आपने इस यज्ञ का विनाश कैसे किया? महादेव ! आप ब्राह्मणों के हितैषी है, तो भी आपके द्वारा दक्ष का वध कैसे हुआ? रुद्र! आप तो गौओं और ब्राह्मणों के प्रतिपालक है । समस्त प्राणियों को शरण देनेवाले हैं । रक्षा कोजिये, रक्षा कीजिये।

शिव स्तुति स्कन्दपुराणान्तर्गत

शिव स्तुति दक्षकृत

॥दक्ष उवाच॥

नमामि देवं वरदं वरेण्यं नमामि देवेश्वरं सनातनम् ॥

नमामि देवाधिपमीश्वरं हरं नमामि शंभुं जगदेकबंधुम् ॥ ५.३६ ॥

दक्ष बोले-सबको वर देनेवाले सर्वश्रेष्ठ देव भगवान्‌ शंकर को मैं प्रणाम करता हूं। सनातन देवता शिव को मैं सदा नमस्कार करता हूं। देवताओं के पालक और ईश्वर, पापहारी हर को मै प्रणाम करता हूं। जगत्‌ के एकमात्र बन्धु शम्भु को मैं नमस्कार करता हूं।

नमामि विश्वेश्वरविश्वरूपं सनातनं ब्रह्म निजात्मरूपम्॥

नमामि सर्वं निजभावभावं वरं वरेण्यं नतोऽस्मि॥ ५.३७ ॥

जो सम्पूर्णं विश्व के स्वामी, विश्वरूप, सनातन ब्रह्म और स्वात्मरूप है, उन भगवान्‌ शिव को मैं शीश झुकाता हूं। अपनी भक्ति से प्राप्त होने योग्य सर्वरूप भगवान्‌ शिव को मैं प्रणाम करता हूं। जो वरदायक हैं, वरस्वरूप है और वरण करनेयोग्य हैं, उन भगवान्‌ शिव को मैं मस्तक नवाता हूं।

इति स्कन्दपुराणामहेश्वरखण्ड केदारखण्डान्तर्गता श्रीशिवस्तुति:।

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