श्री चैतन्य चरितामृत || Sri Chaitanya Charitamrit Biography In Hindi Book/Pustak PDF Free Download

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माता यशोदा को उन्हें घर लाने के लिए फुलाना पड़ता था। अतएव बच्चे का स्वभाव है कि वह रात-दिन खेल में लगा रहता है और अपने स्वास्थ्य तथा अन्य महत्वपूर्ण कार्यों भी परवाह नहीं करता।

वह प्रेयस् का उदाहरण है। किन्तु कार्य कुछ श्रेवस भी हैं जो अंतत: मंगलप्रद होते है। वैदिक सभ्यता के अनुसार मनुष्य को श-भावनाभाक्ति होना चाहिए उसे यह जानना कि ईश्वर क्या है ?

वह भौतिक जगत क्या है? वह कौन है और उनके परस्पर सम्बन्ध क्या है? वह श्रेयस् कहलाता है अर्थात् अंतत: मंगलप्रद कार्य। श्रीमद्भागवत के इस श्लोक में बतलाया गया है

मनुष्य को येयस् कार्य में रुचि दिखलानी वाहिए । श्रेयस के चरम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए उसे अपना सर्वस्व-अपना जीवन, धन तथा वाणी-आपने लिए हो नहीं, अपितु अन्यों के लिए……………..

 

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