हम तुम – रामदरश मिश्र
सुख के, दुख के पथ पर जीवन, छोड़ता हुआ पदचाप गया तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते, इतना लंबा पथ नाप गया।…
सकारात्मक दृष्टिकोण… भारत की उन्नति के लिए… आत्मनिर्भर बनाने की प्रेरणा…
सुख के, दुख के पथ पर जीवन, छोड़ता हुआ पदचाप गया तुम साथ रहीं, हँसते–हँसते, इतना लंबा पथ नाप गया।…
मेरे पीछे इसीलिये तो धोकर हाथ पड़ी है दुनिया मैंने किसी नुमाइश घर में सजने से इन्कार कर दिया। विनती…
मृषा मृत्यु का भय है जीवन की ही जय है जीव की जड़ जमा रहा है नित नव वैभव कमा…
माटी का पलंग मिला राख का बिछौना। जिंदगी मिली कि जैसे कांच का खिलौना। एक ही दुकान में सजे हैं…
सुनो ! सुनो ! यहीं कहीं एक कच्ची सड़क थी जो मेरे गाँव को जाती थी। नीम की निबोलियाँ उछालती,…
चलो चल कर बैठें उस ठौर, बिछी जिस थल मखमल सी घास, जहाँ जा शस्य श्यामला भूमि, धवल मरु के…
स्तब्ध ज्योत्सना में जब संसार चकित रहता शिशु सा नादान, विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान;…
एक कड़वी–मीठी औषधीय गंध से भर उठता था घर जब आँगन के नीम में फूल आते। साबुन के बुलबुलों–से हवा…
सपने जीते हैं मरते हैं सपनों का अंत नहीं होता। बाँहों में कंचन तन घेरे आँखों–आँखों मन को हेरे या…
धीमी कितनी गति है? विकास कितना अदृश्य हो चलता है? इस महावृक्ष में एक पत्र सदियों के बाद निकलता है।…