परम्परा – रामधारी सिंह दिनकर
परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवित है जीवन दायक है जैसे भी हो...
परंपरा को अंधी लाठी से मत पीटो उसमें बहुत कुछ है जो जीवित है जीवन दायक है जैसे भी हो...
फिर क्या होगा उसके बाद? उत्सुक हो कर शिशु ने पूछा माँ, क्या होगा उसके बाद? ‘रवि से उज्ज्वल शशि...
फूल से बोली कली‚ क्यों व्यस्त मुरझाने में है फायदा क्या गंध औ’ मकरंद बिखराने में है तू स्वयं को...
सूर्य की अब किसी को जरूरत नहीं जुगनुओं को अंधेरे में पाला गया फ्यूज़ बल्बों के अदभुत समारोह में रोशनी...
सागर से मिलकर जैसे नदी खारी हो जाती है तबीयत वैसे ही भारी हो जाती है मेरी सम्पन्नों से मिलकर...
देखो, टूट रहा है तारा। नभ के सीमाहीन पटल पर एक चमकती रेखा चलकर लुप्त शून्य में होती-बुझता एक निशा...
जिन मुश्किलों में मुस्कुराना हो मना उन मुश्किलों में मुस्कुराना धर्म है। जिस वक्त जीना गैर मुमकिन सा लगे उस...
एक भी आँसू न कर बेकार जाने कब समंदर मांगने आ जाए! पास प्यासे के कुआँ आता नहीं है यह...
रूप से कह दो कि देखें दूसरा घर, मैं गरीबों की जवानी हूँ, मुझे फुर्सत नहीं है। बचपने में मुश्किल...
इक पल है नैनों से नैनों के मिलने का, बाकी का समय सभी रूठने मनाने का। इक पल में झटके...
हर किसी आँख में खुमार नहीं हर किसी रूप पर निखार नहीं सब के आँचल तो भर नहीं देता प्यार...
है अंधेरी रात पर दीपक जलाना कब मना है। कल्पना के हाथ से कमनीय जो मंदिर बना था भावना के...