Veerbala Kalibai In Hindi Biography | वीरबाला काली बाई का जीवन परिचय : काली बाई भील को आधुनिक एकलव्य कहा गया ।
कालीबाई भील का जीवन परिचय, जीवनी, परिचय, इतिहास, जन्म, शासन, युद्ध, उपाधि, मृत्यु, प्रेमिका, जीवनसाथी (Rani Lakshmibai History in Hindi, Biography, Introduction, History, Birth, Reign, War, Title, Death, Story, Jayanti)
गुरुभक्त कालीबाई का बलिदान शिक्षा जगत में गुरु भक्ति और राजस्थान हिस्ट्री में इनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में लिखा गया हैं. 15 अगस्त 1947 से पहले के पहले की यह एक डूंगरपुर जिलेकी भील सम्प्रदाय की बालिका की कहानी हैं, इन्होने अंग्रेजी सरकार के अत्याचार और अपने गुरुजनों की रक्षा की खातिर अपना बलिदान दे दिया था.
आदिवासियों का गढ़ है- दक्षिणी राजस्थान. इस क्षेत्र का एक जिला हैं, डूंगरपुर.इस जिले का एक गाँव हैं रास्तापाल. भारत की आजादी के पहले तक यहाँ को सरकारी स्कुल नही था. उस समय एक पाठशाला चला करती थी. इन्हे प्रजामंडल चलाता था. इस पाठशाला के सरक्षक थे श्री नानाभाई खांट जो प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे. इस पाठशाला में श्री सेंगाभाई रोत पढ़ाने का काम करते थे. इस पाठशाला में आदिवासियों के बालक भी पढ़ते थे और बालिकाए भी.इन बालिकाओं में एक भील बालिका भी थी, कालीबाई कलासुआ |
उसकी उम्र 13 वर्ष थी. उन दिनों इस क्षेत्र के लोगों पर अंग्रेजो की दोहरी मार थी. एक ओर अंग्रेजो का कठोर शासन दूसरी तरफ सामंत आम जनता को सताते थे. उस समय राजस्थान का प्रत्येक व्यक्ति आजादी चाहता था.
कालीबाई की जीवनी – कालीबाई का जीवन परिचय (Biography of Kalibai – Life Introduction of Kalibai)
डूंगरपुर जिले के गाँव रास्तापाल का निवासी भील कन्या कालीबाई रास्तापाल की पाठशाला में पढ़ती थी. जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के फरमान के बावजूद जब रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं की गई तो पुलिस सुपरीडेंटटेड एवं मजिस्ट्रेट दल बल सहित पाठशाला बंद कराने पहुचे. जब पुलिस ने पाठशाला बंद कर इसकी चाबी सुपर्द करने का आदेश दिया तो प्रजामंडल कार्यकर्ता नानाभाई खांट ने मना कर दिया. इस पर सिपाहियों ने नानाभाई खांट की पिटाई की और अध्यापक सेंगाभाई को ट्रक से बांधकर घसीटना शुरू किया.
तेरह वर्षीया भील बालिका कालीबाई अपने खेत में घास काटकर लौट रही थी, जब उसने अपने गुरु सेंगाभाई को ट्रक के पीछे घसीटते देखा तो वह भीड़ को चीरती हुई ट्रक के पीछे दौड़ पड़ी, और चिल्लाने लगी, मेरे गुरूजी को कहाँ ले जा रहे हो. ट्रक को रुकते देखकर उसने सिपाहियों की चेतावनी की परवाह किये बिना दरांती से सेंगाभाई के कमर के बंधी रस्सी काट दी, मगर तभी पुलिस की गोलियों ने कालीबाई को छलनी कर दिया.
18 जून 1947 को अंत में अपने गुरु को बचाने के प्रयास में कालीबाई ने 20 जून 1947 को दम तोड़ दिया. रास्तापाल में इसकी स्मृति में एक स्मारक बना हुआ हैं. डूंगरपुर में गेप सागर के किनारे एक पार्क में कालीबाई की मूर्ति लगी हुई हैं.
बात उस समय की हैं जब पुरे देश में आजादी की हवा चल रही थी. भला राजस्थान इसमे क्यों पीछे रहे, डूंगरपुर का प्रजामंडल इन पाठशालाओ की मदद से आजादी का विचार जन-जन तक पहचानें का काम कर रहा था. शिक्षक सेंगाभाई बालकों को कभी अंग्रेजो के अत्याचार की कहानिया बताते तो कभी इन अंग्रेजो के पठू सामंतो की कहानी.
कालीबाई इन कहानियों को ध्यान से सुनती थी. सुनते-सुनते उनका खून खौल उठता था. सेंगाभाई उनके लिए बहुत आदरणीय थे. भील बालिका कालीबाई में भी एकलव्य की भांति गुरु भक्ति के संस्कार थे. वह भी अपने गुरु की परम भक्त थी. एक बार की बात थी, प्रजामंडल के सदस्यों की बैठक चल रही थी. वहा नानाभाई भी उपस्थित थे. उस बैठक में इन्होने प्रण किया था, जब तक मेरी जान रहेगी, अपने गाँव रास्तापाल की पाठशाला बंद नही होने दुगा.
वास्तव में वे चाहते थे. कि हर बच्चे को अच्छी शिक्षा मिला, हर बच्चे के मन में देशभक्ति की भावना जगे. परन्तु यह बात रास्तापाल के जागीरदार को नही पची. वह नही चाहता था. कि गाँवों के लोगों में शिक्षा का प्रचार हो. उसने पाठशाला बंद करवाने के लिए एक षड्यंत्र रचा. उसने गाँव के लोगों की एक बैठक बुलाई. नानाभाई को इस षड्यंत्र का पता चला. उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को समझाया. एक भी व्यक्ति ने उस बैठक में हिस्सा नही लिया. गाँव के लोग जब बैठक में नही आए तो जागीरदार झल्ला उठा. उसने सारी घटना नमक-मिर्च लगाकर सामंत को कह डाली. अगले ही दिन रियासत के पुलिस अधिकारी और जिला न्यायधीश दलबल सहित रास्तापाल पहुचे.
वह दिन था 19 जून 1947 का, रास्तापाल की पाठशाला के बाहर एक ट्रक आकर रुका. कालीबाई उस समय खेत में गईं हुई थी. पाठशाला में उस समय नानाभाई और सेंगाभाई दोनों उपस्थित थे. जिला न्यायधीश ने सेंगाभई से कहा- पाठशाला बंद करो और चाबी हमको दे दो. इस पर सेंगाभाई ने नम्रता के साथ कहा ” न्यायधीश महोदय, आप तो न्याय करते हैं. हम आपका काम को ही तो कर रहे हैं. बालकों को शिक्षा देना तो राज्य का काम हैं. आप उसे भी बंद करवाना चाहते हैं, यह तो कोई न्याय की बात नही हैं. जिला न्यायधीश यह बात सुनकर आग बबूला हो गये. और बोले तुम मुझे न्याय सीखा रहे हो. छोटे मुह बड़ी बात करते हो ? सिपाहियों! इसे ट्रक से बांधकर घसीटो. इधर वही बात पुलिस अधिकारी ने नानाभाई से की. इस पर नानाभाई हाथ जोड़कर बोले- ‘साहब’ यह पाठशाला तो प्रजामंडल के आदेश से चल रही हैं आपके आदेश से तो नही. हमे पाठशाला चलाने दीजिए. इससे बालकों का ही भला होगा.
पुलिस अधिकारी ऐसा उत्तर कैसे सहन कर करता ? उसके क्रोध का सागर उमड़ पड़ा | फिर क्या था उसका संकेत पाते ही सिपाही नानाभाई पर टूट पड़े. उन्होंने थप्पड़ो,घुसो, डंडो, और बंदूक के कुंदो से नानाभाई की जमकर पिटाई की. इससे वे बुरी तरह घायल हो गये. इसी बिच सेंगाभाई को ट्रक से बाधकर घसीटा जाने लगा. नानाभाई से यह देखा नही गया, वे सेंगाभाई को बचाना चाहते थे. घायल अवस्था में ही खड़े होकर दौड़ने लगे. उस पर एक सिपाही ने जोर से बंदूक का कुंदा दे मारा. नानाभाई धडाम से जमीन पर गिर पड़े ऐसे गिरे कि फिर कभी उठे ही नही. उधर सेंगाभाई को ट्रक से बाधकर घसीटा जा रहा था.
पाठशाला के बाहर गाँव के स्त्री-पुरुषो की भीड़ जमा हो गईं. परन्तु उनमे से किसी में भी इतनी हिम्मत नही थी. कि आगे बढ़कर सेंगाभाई को बचा सके. कालीबाई उस समय खेत से आ रही थी, उनके सिर पर घास का गट्ठर था. हाथ में हंसिया लिए जब उन्होंने अपने गुरूजी सेंगाभाई को इस हालत में देखा तो उनकी भौहे तन गईं. उससे ऐसा देखा नही गया. आव देखा ना ताव, घास का गट्ठर वही जमीन पर डालकर. उसने ललकार कर कहा- ठहरो! मेरे गुरूजी को इस तरह घसीट कर कहा लेकर जा रहे हो ? यह कहते हुए कालीबाई बिजली की चाल से उस ट्रक की तरफ लपकी. उसने ट्रक से बंधी रस्सी को हंसिये के एक झटके से काट दिया.
उसके गुरूजी मौत के मुह में जाने से बच गये. किन्तु अफ़सोस ! सिपाहियों ने कालीबाई को गोलियों से भुन दिया. उसे बचाने के लिए कुछ औरते भागकर आई. उन पर निर्मम पुलिस ने गोलियां बरसाई. एक तरफ नानाभाई का शव पड़ा था, दूसरी तरफ लहू से लथपथ कालीबाई. फिर क्या था, अरावली की पहाडियों में भीलो के मारू ढोल का मातमी स्वर गूंज उठा. देखते ही देखते हजारो भील रास्तापाल में एकत्रित हो गये. विकट स्थति को समझकर नानाभाई के कातिल वहा से भाग खड़े हुए. कालीबाई को डूंगरपुर के अस्पताल में भर्ती करवाया गया. 40 घंटे तक बेहोश रहने के बाद राजस्थान की इस वीरबाला ने दम तोड़ दिया. कालीबाई तो शहीद हो गईं,किन्तु अपने गुरूजी को बचा लिया. एक नन्ही ज्योति असमय में ही बुझ गईं. लेकिन हजारों दिलों में देश की आजादी की अलख जगा गईं.
राजस्थान हिस्ट्री में काली बाई का बलिदान | kali bai rajasthan history in hindi
कालीबाई भील डूंगरपुर जिले के रास्तापाल गाँव की रहने वाली थी. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन की घोषणा के बाद राजस्थान के निवासी भी औपनिवेशिक शासन के खुले विरोधी हो गये. भोगीलाल पांड्या, शोभालाल गुप्त, माणिक्यलाल वर्मा के सहयोग से डूंगरपुर संघ की स्थापना की गई. यह संगठन दलितों और आदिवासियों के लिए स्कूल चलाता था. अंग्रेजो के दवाब में डूंगरपुर राज्य में इस प्रकार के विद्यालयों के संचालन की मनाही थी. प्रजामंडल ने अन्यायपूर्ण तरीके से विद्यालयों को बंद करने का विरोध किया और औपनिवेशिक शासन की समाप्ति की मांग की.
प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं पर डूंगरपुर नरेश द्वारा अत्याचार किया जाने लगा और उन्हें जेल में डाल दिया. इसी प्रकार एक विद्यालय नानाभाई खाट के घर पर संचालित था. राज्य पुलिस 19 जून 1947 को रास्तापाल आई. नानाभाई खांट ने विद्यालय बंद करने से मना कर दिया. पुलिस ने बर्बरतापूर्वक नानाभाई खांट की पिटाई कर दी और उन्हें जेल भेज दिया, पुलिस की चोटों से नानाभाई खांट की मृत्यु हो गई. इससे लोगों में असंतोष की भावना में और वृद्धि हुई.
पुलिस ने विद्यालय के अध्यापक सेंगाभाई भील को इसलिए मरना आरम्भ कर दिया, क्योकि उसने नानाभाई खांट की मृत्यु के बाद विद्यालय अध्यापन जारी रखा था. अध्यापक को पुलिस ने अपने ट्रक के पीछे बाँध दिया और इसी अवस्था में उसे घसीटते हुए रोड पर ले आए. विद्यालय की किशोर बालिका कालीबाई से यह देखा नही गया. पुलिस के मना करने के बाद भी वह ट्रक के पीछे पीछे दौड़ी और उस ट्रक से रस्सी को काटकर अपने अध्यापक को अंग्रेजो से मुक्त कराया. इससे पुलिस अत्यधिक क्रोधित और उत्तेजित हो गई.
जैसे ही कालीबाई अपने अध्यापक सेंगाभाई को उठाने के लिए झुकी, पुलिस ने कालीबाई के पीठ पर गोली दाग दी. कालीबाई गिरकर अचेत हो गई. बाद में डूंगरपुर के चिकित्सालय में उसकी मृत्यु हो गई. पुलिस की इस बर्बरता एवं विद्यालय की एक किशोर बालिका की अन्यायपूर्ण तरीके से हत्या से भीलों में जबर्दस्त असंतोष फ़ैल गया. लगभग 12 हजार लोग हथियारों सहित एकत्र हो गये. महारावल डूंगरपुर पर दवाब बनाया जाने लगा कि वह प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं को जेल से रिहा करे और भीलों के समूह को शांत करे और उन्हें लौटाने के लिए राजी करे.
अब रास्तापाल में 13 वर्षीय कालीबाई की प्रतिमा स्थापित है. उनकी शहादत की स्मृति में अब भी यहाँ प्रतिवर्ष शहादत के दिन मेला लगाया जाता है. और लोग इस अमर शहीद बाला कालीबाई को श्रद्धासुमन अर्पित करते है.