पार्ट टाइम नहीं, फुल टाइम याद करो मिलेंगे भगवान
अनन्यचेता: सततं यो मां स्मरति नित्यश:। तस्याहं सुलभ: पार्थ नित्ययुक्तस्य योगिन: ।। गीता 8/14।।
अर्थ : हे पार्थ ! जो अनन्य चित्त से नित्य-निरंतर मेरा स्मरण करता है उस नित्य युक्त योगी के लिए मैं सुलभ हूं।
व्याख्या : कहावत हैं ‘लोहे की चोरी करे, करे सुई का दान। छत पर चढ़कर देखता, कितनी दूर विमान। हम चाहते तो हैं कि भगवान के दर्शन हो जाएं, लेकिन उसके लिए उतना पुरुषार्थ नहीं करते, जितना जरूरी होता है।
मंदिर जाते हैं, कभी पूजा-पाठ, यज्ञ, तप, दान, मंत्र जप या तीर्थ स्थानों पर चले जाते हैं, लेकिन यह भगवान को पाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
भगवान कह रहे हैं कि जो योगी प्रतिपल, रोज और लगातार, केवल अपने चित्त में मेरा ही चिंतन करता रहता है, साथ ही मेरे अलावा अब उसके अंदर अन्य कोई और ख्याल या इच्छा नहीं रहती, ऐसे निरंतर अपने मन से भगवान से जुड़ा योगी को मैं, आसानी से पाया जा सकता हूं अर्थात उसके लिए बड़ा सुलभ हूं। मतलब भगवान को पार्ट टाइम में याद नहीं करो, बल्कि फुल टाइम याद ही करते रहो।