भुवनेश्वरी कवच Bhuvaneshvari Kavach माया तन्त्र पटल १२, मायातन्त्रम् द्वादश: पटलः Maya tantra patal 12

0

आगमतन्त्र से मायातन्त्र के अंतिम पटल १२ में भुवनेश्वरी कवच विधान और उसका फल बताया है।

|| भुवनेश्वरी कवच ||

अथ द्वादशः पटलः

श्री देवी उवाच

शृणु प्रिये प्रवक्ष्यामि कवचं भुवि दुर्लभम् ।

यस्यापि पठनाद् देवि सर्वसिद्धीश्वरो भवेत् ॥1॥

महादेव ने पार्वतीजी से कहा कि हे प्रिये! सुनो! अब मैं तुम्हें पृथ्वी पर दुर्लभ कवच को बताऊंगा। जिसके पढ़ने से हे देवि! मनुष्य सब सिद्धियों का ईश्वर हो जाना चाहिए ॥1 ॥

इन्द्रोऽपि धारणाद् यस्य प्राप्नुयाद् राज्यमुत्तमम् ।

कृष्णेन पठितं देवि भूतापमारणाय च ॥2॥

शंकर जी ने कहा कि हे देवि ! इस कवच को धारण करने से इन्द्र ने भी उत्तम राज्य को प्राप्त किया था तथा हे देवि ! पृथ्वी के ताप को नष्ट करने के लिए भगवान् श्रीकृष्ण ने इसी कवच का पाठ किया था ॥2॥

शुकदेवोऽपि यद् धृत्वा सर्वयोगविशारदः ।

तस्य श्रीभुवनेश्वरी कवचस्य महेश्वरि ॥3॥

जिस कवच को धारण करने वाले शुकदेव भी सब प्रकार के योगों में विशारद हुए । अतः हे महेश्वरि ! उस कवच की देवी श्रीभुवनेश्वरी हैं ॥ 3 ॥

सर्वार्थे विनियोगः स्यात् प्राणायामं ततश्चरेत् ।

अब भगवान् कवच का पाठ करना बताते हुए कहते हैं कि जब कवच का पाठ प्रारम्भ करना हो तब सब प्रकार के कार्यों से मन को अलग कर लेना चाहिए। उसके बाद में प्राणायाम करना चाहिए और फिर कवच को पढ़ना चाहिए।

कवच इस प्रकार है-

|| भुवनेश्वरी कवचम् ||

मायाबीजं शिरः पातु कामबीजं तु बालकम् ॥4॥

दुर्गाबीजं नेत्रयुग्मं नासिकां मन्त्रदा मनुः ।

वदने दक्षिणाबीजं ताराबीजं तु गण्डयोः ॥5॥

षोडशी मे गलं पातु कण्ठं मे भैरवीमनुः ।

हृदयं छिन्नमस्ता च उदरं बगला तथा ॥6॥

धूमावतीं कटिं पातु मातङ्गी पातु सर्वतः ।

सर्वाङ्गं मे सदा पातु सर्वविद्यास्वरूपिणी ॥7॥

इसका अर्थ है- मायाबीज शिर की रक्षा करे। काम बीज बालों की रक्षा करे। दुर्गा का बीज शिर की रक्षा करे। मन्त्र देने वाले मनु नासिका की रक्षा करें। वदन (मुख) पर दक्षिणा का बीज रक्षा करे। दो गण्डस्थलों की रक्षा तारा का बीज करें। षोडशी देवी मेरे गले की रक्षा करे तथा उदर की रक्षा बगलामुखी करे, धूमावती देवी मेरी कमर की रक्षा करे। मातंगी देवी मेरी सब ओर से रक्षा करे और सब विद्या स्वरूपिणी मां मेरे सभी अंगों की रक्षा करे ॥4-7॥
भुवनेश्वरी कवच महात्म्य

इत्येतत् कवचं देवि पठनाद् धारणादिकम् ।

कृत्वा तु साधकः श्रेष्ठो विद्यावान् धनवान् भवेत् ॥8॥

भगवान् शंकर ने कहा कि हे देवि ! मैंने जो अभी बताया है, यही कवच है और इस कवच को पढ़ने से धारण करके मनुष्य श्रेष्ठ और विद्यावान् हो जाना चाहिए ॥ 8 ॥

पुत्रपौत्रादिसम्पन्नो ह्यन्ते याति परां गतिम् ।

इदं तु कवचं गुह्यं साधकाय प्रकाशयेत् ॥ 9 ॥

न दद्याद् भ्रष्टमर्त्याय न परदेवताय च ।

तथा इस कवच को नित्य पढ़कर धारण करने से मनुष्य पुत्र-पौत्रादि से सम्पन्न होकर अन्त में परागति (मोक्ष) को प्राप्त करता है। वैसे तो हे देवि ! यह कवच अत्यन्त गूढ़ है, इसे छिपाना ही चाहिए। केवल साधना करने वाले को बताना ही चाहिए; परन्तु भ्रष्ट पुरुष के लिए तथा अन्य देवता की पूजा करने वाले पुरुष को नहीं देना चाहिए ॥9 ॥

इदं यन्त्रं महेशानि त्रिषु लोकेषु गोपितम् ॥ 10 ॥

सर्वसिद्धिकरं साक्षान्महापातकनाशनम् ।

कल्पद्रुमसमं ज्ञेयं पूजयेत् श्रियमाप्नुयात् ॥11॥

पठनाद् धारणात् सर्वं पापं क्षयति निश्चितम् ।

विवादे जयमाप्नोति धनैर्धनपतिर्भवेत् ।

यं यं वाञ्छति तत् सर्वं भवत्येव न संशयः ॥12 ॥

शंकर जी ने कहा कि हे देवि ! यह यन्त्र तीनों लोकों में छिपा हुआ है तथा सबकी सिद्धि करने वाला है तथा साक्षात् महापाप का नाश करने वाला है। इस कवच को कल्पवृक्ष के समान समझो और कल्पवृक्ष के समान समझ कर इसकी पूजा करनी चाहिए। इस कवच को धारण करने से निश्चित ही सब पाप नष्ट हो जाते हैं। इसका पाठ करने से विवाद (मुकदमें) में जीत होती है और जो धनवान् है, वह धनपति हो जाना चाहिए । अतः इस कवच का पाठ करने वाला जो-जो चाहता है, वह सब उसे प्राप्त होता ही है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं है॥10-12॥

।। इति श्री मायातन्त्रे द्वादशः पटलः ।।

समाप्तश्चायं ग्रन्थः

।। इस प्रकार श्री मायातन्त्र में बारहवां पटल समाप्त हुआ।

यह ग्रन्थ समाप्त हुआ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *