तो आप लाभ हानि के चक्कर से मुक्त हो जाएंगे
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्। ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता:।। गीता 7/28।।
अर्थ : परंतु, पुण्य कर्म करने वाले जिन मनुष्यों के पाप नष्ट हो चुके हैं, वे द्वंद्वों के मोह से मुक्त दृढ़ संकल्प वाले मुझे भजते हैं ।
व्याख्या : शुभ कर्म, पुण्य फल व अशुभ कर्म, पाप फल देने वाले होते हैं। जैसे-जैसे हम कर्म करते रहते हैं, वैसे-वैसे पाप या पुण्य फल हमें मिलता रहता है। इस प्रकार हमारा चित्त पाप व पुण्य कर्मों के फलों से भर जाता है।
लेकिन, जब हम साधना पथ पर आगे बढ़ने लगते हैं तब पाप कर्म पूर्णतया छूटते जाते हैं, जिससे हमारा रुझान केवल पुण्य कर्म करने में ही रहता है, ऐसा करने से चित्त की सफाई शुरू हो जाती है और हमारे पाप कर्मों का धीरे-धीरे नाश होने लगता है।
पाप कर्म नष्ट होने पर गर्मी-सर्दी, भूख-प्यास, सुख-दुःख, लाभ-हानि आदि द्वंदों में हमारा जो मोह पैदा होता है, उससे मुक्ति मिल जाती है। इस प्रकार निश्चय बुद्धि व दृढ संकल्प वाले व्यक्ति ही, प्रभु का वास्तविक भजन करते हैं।