गीता में बताया गया है इस तरह इकट्ठा होता है हमारे कर्मों का लेखा-जोखा
प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुन: पुन:|
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्|| गीता 9/8||
अर्थ: अपनी प्रकृति को वश में करके जो प्रकृति के वश में होने के कारण परतंत्र हैं, उन सब भूतसमुदाय को पुनः-पुनः उत्पन्न करता हूं।
व्याख्या: जो भी कर्म हम करते हैं, उसका लेखा-जोखा हमारे चित्त में इकट्ठा हो जाता है, क्योंकि कर्म हमने किया है, तो उसका फल भी हमें ही भोगना पड़ता है, भले समय कितना भी लग जाए, काल कितने भी बीत जाएं, लेकिन जीव अपने कर्मफलों के आधार पर उनको भोग लेने के लिए ही फिर से जन्म लेता है।
जब तक चित्त संस्कारों से भरा होता है, तब तक जीव परतंत्र है, लेकिन चित्त की सफाई होते ही जीव स्वतंत्र हो जाता है। भगवान कह रहे हैं कि अपनी प्रकृति को वश करके जो प्रकृति के वश में भूत समुदाय हैं, उन सभी को, उनके कर्मों के आधार पर मैं बार-बार उत्पन्न करता रहता हूं। यह जन्म-मरण, कर्मों के आधार पर ऑटोमेटिक मोड की तरह होता रहता है।