RADHE KRISHNA

इन कार्यों में कभी ना करें अहंकार, वरना व्यर्थ है सब

न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय। उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु।। गीता 9/9।। अर्थ: हे अर्जुन! कर्म मुझको नहीं बांधते हैं,...

भगवान कृष्ण ने बताया किसी को भी पूजें, यहां जाती है आपकी प्रार्थना

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:| तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्||9/23|| अर्थ: हे अर्जुन! जो भक्त दूसरे देवताओं को श्रद्धापूर्वक पूजते हैं, वे...

गीता ज्ञानः भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वालों को मिलता है यह लाभ

येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:| तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् || गीता 9/23|| अर्थ: हे अर्जुन! श्रद्धा से युक्त जो भक्त अन्य...

भगवान कृष्ण ने बताया इसलिए यज्ञ का सही फल नहीं ले पाता मनुष्य

अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च| न तु मामभिजानन्ति तत्वेनातश्च्यवन्ति ते|| गीता 9/24|| अर्थ: मैं ही सभी यज्ञों का...

भगवान कृष्ण ने बताया मरने के बाद इस तरह मुझे कर सकते हैं प्राप्त

यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः। भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।। गीता 9/25।। अर्थ: देवताओं को पूजने वाले देवताओं को...

ऐसे व्यक्ति की आत्मा महान आत्मा बन जाती है

महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिता:। भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्।। गीता 9/13।। अर्थ: हे अर्जुन! महान आत्माएं मेरी दैवीय प्रकृति के आश्रित...

ज्यादातर इस तरह के व्यक्ति फंसते हैं जन्म-मरण के चक्र में

ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति | एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते || गीता 9/21|| अर्थ: वे...

जानें कैसे मिलता है स्वर्ग और किस तरह के भोगते हैं दिव्य सुख

त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते। ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।गीता 9/20|| अर्थ: तीनों वेदों के ज्ञाता, सोमरस...

तो इस तरह भगवान ने बताया किस तरह होता है सबका लालन-पालन

गतिर्भर्ता प्रभु: साक्षी निवास: शरणं सुहृत्| प्रभव: प्रलय: स्थानं निधानं बीजमव्ययम्|| गीता 9/18|| अर्थ: सबकी परम गति, भरण-पोषण करने वाला,...

भगवान ने बताया अगर इसे नहीं जाना तो तुम्हारा जीवन बेकार

पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामह:| वेद्यं पवित्रमोङ्कार ऋक्साम यजुरेव च|| गीता 9/17|| अर्थ: मैं इस जगत का पिता, माता, पितामह...