केवल इस वजह से हम ईश्वर को पहचान नहीं पाते

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अवजानन्ति मां मूढा मानुषीं तनुमाश्रितम्।
परं भावमजानन्तो मम भूतमहेश्वरम् || गीता 9/11।

अर्थ: मेरे मनुष्य रूप में अवतरित होने पर लोग मुझे तुच्छ समझते हैं। दरअसल, वे मूढ़ होते हैं और मुझ परमेश्वर के दिव्य स्वभाव को नहीं जानते।

व्याख्या: मजनू को किसी ने बोला कि लैला इतनी काली है, तू कहां उसके लिए दीवाना बना घूमता है। मजनू बोला: लैला की सुंदरता को देखने के लिए मजनू की आंखें चाहिए। ऐसे ही परमात्मा को जानने के लिए परम भाव में रहना और उसमें हमारी रुचि जरूरी है, जैसे जब हमारी रुचि धन कमाने में होती है तो हम धन कमा लेते हैं।

हमारी रुचि शरीर स्वस्थ रखने में होती है तो शरीर फिट कर लेते हैं। बिना रुचि के हम संसार में कुछ भी नहीं पा सकते, फिर यह तो परमात्मा को जानना है। ऐसे लोग जो संसार और माया में ही जीवनभर उलझे रहते हैं, वे मूढ़ होते हैं और मूढ़ लोग कभी भी परमात्मा के परम भाव को जान ही नहीं सकते। इसलिए भगवान कह रहे हैं कि मूढ़ लोग मनुष्य रूप में स्थित मुझ परमात्मा को नहीं जान पाते।

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