गीता ज्ञानः भगवान श्रीकृष्ण को पूजने वालों को मिलता है यह लाभ
येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विता:|
तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम् || गीता 9/23||
अर्थ: हे अर्जुन! श्रद्धा से युक्त जो भक्त अन्य देवताओं को पूजते हैं, वे भी मेरा ही पूजन करते हैं; किंतु उनकी वह पूजा अविधि पूर्वक होती है।
व्याख्या: सभी देवता अलग-अलग एनर्जी हैं, जो निश्चित कार्यों के अध्यक्ष हैं, जैसे बुद्धि के लिए सरस्वती, धन के लिए लक्ष्मीजी और बल के लिए हनुमानजी आदि! ये सभी ऊर्जाएं परमात्मा से ही उपजी हैं, अतः सभी देवी-देवताओं का आदि कारण परमात्मा ही है।
यहां भगवान कह रहे हैं कि हे अर्जुन! जो श्रद्धा से युक्त भक्त अलग-अलग देवी-देवताओं की पूजा करते हैं, असलियत में परोक्ष रूप से वो मेरा ही पूजन कर हैं, लेकिन उनकी यह पूजा अविधिपूर्वक होती है, क्योंकि वो सीधे मुझे नहीं भज रहे हैं, बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए संबंधित देवताओं की पूजा में लगे हैं।
अतः हमें परमात्मा के वास्तविक निराकार स्वरूप को ही पूजना चाहिए, क्योंकि जब पूजा कर ही रहे हैं तो क्यों न यह विधि पूर्वक हो।