भगवान कृष्ण ने बताया इसलिए यज्ञ का सही फल नहीं ले पाता मनुष्य
अहं हि सर्वयज्ञानां भोक्ता च प्रभुरेव च|
न तु मामभिजानन्ति तत्वेनातश्च्यवन्ति ते|| गीता 9/24||
अर्थ: मैं ही सभी यज्ञों का भोक्ता और स्वामी हूं, परंतु वे मुझे तत्व रूप से नहीं जानते, इसलिए नीचे गिरते हैं ।
व्याख्या: व्यक्ति अपनी क्षणिक इच्छा पूर्ति के लिए संबंधित देवता को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करता है और उन यज्ञों को करके उसमें बंध जाता है, क्योंकि वह नहीं जानता कि सभी यज्ञों का भोक्ता और सब यज्ञों का स्वामी परमात्मा ही है।
अतः अविधिपूर्वक पूजन करके वे यज्ञ के असली फल से नीचे गिर जाते हैं, जिससे उनका पतन हो जाता है। अतः यदि परमात्मा को उसके वास्तविक रूप से जानकर यज्ञ किया जाए, तो उस व्यक्ति का अध्यात्म में उत्थान जरूर होगा।