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माँ गायत्री मंत्र लिरिक्स (ॐ भूर्भुवः स्वः) संस्कृत/हिन्दी में

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं ।
भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॥

श्री गायत्री मंत्र का शब्दानुसार अर्थ (Words Translation in Hindi)

संस्कृत मंत्र का शब्दशः हिन्दी अनुवाद निम्न प्रकार हैंः-

ॐ = ओमकार (प्रणव)
भूर = मनुष्यों को प्राण (जीवन) देने वाला
भुवः = दुखों का अंत (नाश) करने वाला
स्वः = सुख (खुशी/आनन्द/प्रसन्नता) प्रदाण करने वाला
तत = वह
सवितुर = सूर्य की जैसे उज्जवल
वरेण्यं= सभी से उत्तम
भर्गो- = कर्मों का उद्धार करने वाला
देवस्य- = प्रभु (ईश्वर)
धीमहि- = आत्म चिंतन (ध्यान/मेडिटेशन) के योग्य
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमारी
प्रचो- शक्ति
दयात् = हमें प्रदान करें (प्रार्थना)

भावार्थ – ॐ उस प्राणस्वरूप, दुःखों का नाश करने वाले, सुख के स्वरूप, सर्वश्रेष्ठ, सूर्य के समान तेजवान, पापों का नाश करने वाले, ईश्वर के रूप परमात्मा को हम अपनी अन्तरात्मा (आत्म चिन्तन) में धारण करें। वह प्रभु (परमात्मा) हमारी बुद्धि को अच्छे मार्ग (सतमार्ग) पर चलने की शक्ति प्रदान करें।

गायत्री मंत्र की रचना का इतिहास या स्त्रोत

पहली बार इस शक्तिशाली मंत्र को सुनने पर अथवा इस मंत्र के विषय में चर्चा होने पर स्वाभाविक ही किसी भी मनुष्य के मन में कुछ प्रश्न उत्पन्न होते होगें। जैसेः-

  • गायत्री मंत्र की रचना किसने की?
  • कौनसे वेद में गायत्री मंत्र का उल्लेख हैं?
  • मंत्र का उच्चारण कितनी बार करना चाहिए?
  • इस मंत्र का जाप कितनी बार करने से लाभ होता हैं? आदि

विकिपीडिया में विभिन्न विद्धानों द्वारा उपलब्ध करायी गयी जानकारी के अनुसार, गायत्री मंत्र की रचना यजुर्वेद एवं ऋग्वेद के मेल से हुई मानी जाती हैं। यजुर्वेद से इस मंत्र का प्राम्भिक भाग ‘ऊँ भूर्भवः स्वः’ लिया गया है तथा शेष भाग ऋग्वेद के छन्द संख्या 3.62.10 से लिया गया हैं। इस मत्र का संबंध हिन्दू देवी गायत्री से माना जाता हैं। वैसे तो मंत्र का जाप कभी भी कर सकते है परन्तु स्नान के पश्चात् पूजा कक्ष में सुखासन में बैठकर 108 बार अथवा 3 माला का जाप अति फलदायी होता हैं।

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