भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं ऐसे भक्त मुझे सबसे अच्छे लगते है

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तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एक भक्ति र्विशिष्यते|
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रिय
|| गीता 7/17 ||

अर्थ: उनमें से नित्य युक्त ‘एक’ भक्ति वाला ज्ञानी सर्वश्रेष्ठ है, क्योंकि उस ज्ञानी को मैं अत्यंत प्रिय हूं और वह मुझे प्रिय है ।
व्याख्या: भगवान को भजने वाले चार प्रकार के लोगों में चौथे प्रकार का ज्ञानी भक्त सर्वश्रेष्ठ होता है, क्योंकि यह ज्ञानी लगातार आत्मा के ज्ञान का अनुसरण करता हुआ एक परमात्मा की ही भक्ति करता है। ऐसे भक्त को परमात्मा के अतिरिक्त कुछ और की चाह नहीं होती। निरंतर परमात्मा को पाने में लगे इस ज्ञानी के लिए संसार में सबसे ज्यादा प्रिय परमात्मा ही होता है। प्रभु के अतिरिक्त इस ज्ञानी को और कुछ भी नहीं चाहिए। वह अपने भीतर परमात्मा को हर पल स्मरण करता रहता है। इस प्रकार निरंतर प्रभु को भजता हुआ यह ज्ञानी प्रभु का प्रिय बन जाता है। जैसे संसार में हम जिसको सबसे ज्यादा प्यार करते हैं, वह भी हमें उतना ही प्यार करने लगता है।

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