जानें, कैसे चार तरह के लोग भगवान को पूजते हैं
चतुर्विधा भजन्ते मां जना: सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ || गीता 7/16||
अर्थ: हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन ! चार प्रकार के पुण्यकर्मी मेरा भजन करते हैं- अर्थार्थी, आर्त, जिज्ञासु और ज्ञानी ।
व्याख्या: भगवान् कह रहे हैं- हे भरतश्रेष्ठ अर्जुन! कोई भी व्यक्ति बिना कारण मुझे नहीं भजता। अतः मुझे चार प्रकार के लोग भजते हैं। पहले हैं ‘अर्थाथी’! इसमें वे लोग आते हैं जो सांसारिक सुख व पदार्थ पाने के लिए मेरा भजन-पूजन करते हैं, मेरी आराधना करते हैं।
दूसरे होते हैं ‘आर्त’! इनमें वो लोग आते हैं जो अपने या अपने वालों के दुखों व कष्ट निवारण के लिए मेरा स्मरण करते हैं। इसी प्रकार तीसरे ‘जिज्ञासु’ होते हैं, जो मुझे मेरे वास्तव स्वरूप को जानने की पवित्र भावना रखते हैं और निरंतर मुझे जानने में लगे रहते हैं।
इस प्रकार चौथे तरह के भक्त होते हैं उनको ज्ञानी कहते हैं, ये आत्मा का ज्ञान प्राप्त कर चुके होते हैं और अब केवल मुझे प्राप्त करना चाहते हैं।