ऐसे चार तरह के भक्त भगवान को प्रिय हैं
उदारा: सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थित: स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्|| 7/18
ये सभी निश्चित रूप से उदार हैं, लेकिन ज्ञानी को मैं अपना ही आत्मा मानता हूं, क्योंकि वे हर तरफ घूमते-फिरते और कहीं भी रहने पर मुझमें ही स्थित हैं।
भगवान को हमेशा याद करने वाले सभी चारों तरह के भक्त उदार ही होते हैं। भले ही वे धन-दौलत की इच्छा से याद कर रहे हों या दुखों को दूर करने के भाव से या फिर परमात्मा को जानने के भाव से या आत्मा का ज्ञान पाने के लिए। इन चारों में जो चौथे तरह के ज्ञानी होते हैं, जिन्हें आत्मा का ज्ञान हो गया है, उन्हें भगवान अपनी ही आत्मा मानते हैं।
भगवान का मानना है कि आत्मा मेरा ही अंश है। ऐसे में आत्मा का ज्ञान हो जाने से लगातार साधना में लगा साधक परमात्मा में स्थित होने लगता है। फिर हमेशा आत्मा में युक्त रहने वाला योगी, संसार में सब कुछ करता हुआ, हर तरफ भ्रमण करता हुआ भी परमात्मा में ही स्थित रहता है।