बुद्धिमान की बुद्धि और तपस्वी का तेज ‘मैं’

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बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम् | बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्||7/10

हे अर्जुन! सब प्राणियों का सनातन बीज मुझे जानो। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तपस्वियों का तेज हूं।

‘मैं एक हूं और रूपों में प्रकट हो जाऊं’ यह उपनिषद का वाक्य है जिसमें ऋषियों के अनुसार परमात्मा के भीतर अनेक होने का संकल्प आया। उसी संकल्प की वजह से दुनिया बनी और परमात्मा पूरे ब्रह्माण्ड में फैल गए। इसलिए सब प्राणियों की पैदाइश का कारण वह परमात्मा ही है और परमात्मा को ही सभी का सनातन बीज जानना चाहिए।

कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसमें परमात्मा का अंश न हो। आगे भगवान कह रहे हैं कि बुद्धिमानों की जो बुद्धि है, वह बुद्धि ‘मैं’ ही हूं क्योंकि बुद्धि के बिना बुद्धिमान नहीं हुआ जा सकता। और जो तपस्वी तपस्या में लगातार लगे हैं, उस तपस्या से जो तेज पैदा होता है वह तेज और कुछ नहीं बल्कि ‘मैं’ ही हूं, क्योंकि बिना तेज के तपस्वी हो ही नहीं सकता।

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