जीवन में भगवान की मौजूदगी

0

पुण्यो गन्ध: पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।7/9

मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूं, अग्नि में तेज हूं, प्राणियों का जीवन और तपस्वियों का तप हूं।

भगवान सृष्टि के कण-कण में वैसे ही समाये हुए हैं जैसे दूध में मक्खन। यहां भगवान कह रहे हैं कि पृथ्वी में जो गंध होती है वह मैं ही हूं। हर तरह की गंध, चाहें वह दुर्गन्ध हो या सुगंध, धरती से ही पैदा होती है।

गंध ही पृथ्वी के वे तत्व हैं जिनसे वह मिलकर बनी है। इसी तरह अग्नि में जो तेज है वह भी मैं ही हूं। यदि आग से तेज निकाल दिया जाए तो आग, आग नहीं रह जाएगी।

भगवान कह रहे हैं कि सभी प्राणियों का जीवन भी मैं ही हूं, जहां मैं रहता हूं वहां जीवन होता है। प्राणियों का प्राण परमात्मा से उपजा है। इसी तरह तपस्वियों का तप भी मैं ही हूं क्योंकि बिना तप के तपस्वी हो ही नहीं सकता।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *