भोग की इच्छाओं के अनुसार देवताओं की पूजा
कामैस्तैस्तैर्हृतज्ञाना: प्रपद्यन्तेऽन्यदेवता:।
तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियता: स्वया।। 7/20
जिन लोगों का ज्ञान कामनाओं की वजह से समाप्त जा चुका है, वे अपने स्वभाव और इच्छापूर्ति के हिसाब से ही नियमों का पालन करते हैं और इच्छाओं के पूरा करने के हिसाब से देवताओं को पूजते हैं।
जब इंसान लगातार भोग की इच्छा में लगा रहता है तब उसकी आध्यात्मिक ऊर्जा बाहर की ओर बहने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि भोग ऊर्जा को गलत दिशा में बहाने की प्रक्रिया है। इंसान को अपने स्वरूप को लेकर जो ज्ञान होता है, वह ऊर्जा को गलत दिशा में बहाने की वजह से पूरी तरह से खत्म हो जाता है।
इससे वह इंसान इच्छाओं के जाल में उलझ जाता है। इसके बाद चाहकर भी वह अध्यात्म में टिक नहीं पाता। ऐसे में इंसान सिर्फ भोगों को पाने और उन्हें भोगने में ही लगा रहता है। वह भोग के वशीभूत होकर दूसरे तरह के नियमों का पालन करने लगता है और भोगों को पाने के लिए उन्हें प्रदान करने वाले देवताओं की पूजा-अर्चना करने लगता है।