ऐसा व्यक्ति अंतकाल में परमात्मा में लीन हो जाता है

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साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदु:। प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतस:।। गीता 7/30।।

अर्थ : जो मुझे अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ का स्वामी जानते हैं, वे युक्त चित्त पुरुष प्रयाणकाल में भी मुझे ही जानते हैं ।

व्याख्या : परमात्मा इस भौतिक जगत्, सभी भूतों व सारी सृष्टि के स्वामी है और परमात्मा से ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उपजा है। परमात्मा सभी देवताओं व ब्रह्माण्ड में फैली सभी ऊर्जाओं के स्वामी हैं। इतना ही नहीं सभी प्राणियों में स्थित जो आत्मा है उसका स्वामी भी परमात्मा ही है।

ब्रह्माण्ड में ऐसा कुछ भी नहीं जिसका परमात्मा स्वामी न हो। जो पुरुष निराकार परमात्मा को सबका स्वामी जानकर निरंतर साधना में रत रहता है फिर अपने चित्त को निरंतर आत्मा से जोड़ने वाले पुरुष का जब अंतकाल आता है, तब भी वो सब परमात्मा से हो रहा है ऐसा जान लेता है ऐसा पुरुष अंत में परमात्माको ही प्राप्त हो जाता है, क्योंकि यदि जीते जी परमात्मा को अनुभव नहीं किया तो मरते वक्त उसका ध्यान आना असम्भव है।

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