हनुमान रक्षा स्तोत्र || Hanuman Raksha Stotra

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बजरंग बली हनुमान का जन्म भगवान श्रीराम की सहायता के लिए हुआ। हनुमान जी को भगवान शंकर का अवतार भी माना जाता है। कहा जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की सेवा के निमित्त भगवान शिव जी ने एकादश रुद्र को ही हनुमान के रूप में अवतरित किया था। हनुमान जी चूंकि वानर−उपदेवता श्रेणी के तहत आते हैं इसलिए वे मणिकुण्डल, लंगोट व यज्ञोपवीत धारण किए और हाथ में गदा लिए ही उत्पन्न हुए थे। पुराणों में कहा गया है कि उपदेवताओं के लिए स्वेच्छानुसार रूप एवं आकार ग्रहण कर लेना सहज सिद्ध है। पुराणों के अनुसार, इस धरा पर जिन सात मनीषियों को अमरत्व का वरदान प्राप्त है, उनमें बजरंगबली भी हैं। माता अंजनी एवं पवन देवता के पुत्र हनुमान का जीवनकाल पराक्रम और श्रीराम के प्रति अटूट निष्ठा की असंख्य गाथाओं से भरा पड़ा है। हनुमान जी में किसी भी संकट को हर लेने की क्षमता है और अपने भक्तों की यह सदैव रक्षा करते हैं। हनुमान रक्षा स्तोत्र या हनुमद्रक्षास्तोत्रम् का पाठ यदि नियमित रूप से किया जाए तो कोई बाधा आपके जीवन में नहीं आ सकती। साथ ही हनुमानचालीसा का पाठ करने से बड़े से बड़ा भय दूर हो जाता है।


॥ हनुमान रक्षा स्तोत्र या श्रीहनुमद्रक्षास्तोत्रम् ॥

वामे करे वैरिभिदं वहन्तं शैलं परे शृङ्खलहारटङ्कम् ।
ददानमच्छाच्छसुवर्णवर्णं भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम् ॥ १॥
पद्मरागमणिकुण्डलत्विषा पाटलीकृतकपोलमस्तकम् ।
दिव्यहेमकदलीवनान्तरे भावयामि पवमाननन्दनम् ॥ २॥
उद्यदादित्यसङ्काशमुदारभुजविक्रमम् ।
कन्दर्पकोटिलावण्यं सर्वविद्याविशारदम् ॥ ३॥
श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरुहम् ।
अभयं वरदं दोर्भ्यां कलये मारुतात्मजम् ॥ ४॥
वामहस्ते महाकृच्छ्रदशास्यकरमर्दनम् ।
उद्यद्वीक्षणकोदण्डं हनूमन्तं विचिन्तयेत् ॥ ५॥
स्फटिकाभं स्वर्णकान्तिं द्विभुजं च कृताञ्जलिम् ।
कुण्डलद्वयसंशोभिमुखाम्भोजं हरिं भजे ॥ ६॥

हनुमान रक्षा स्तोत्र समाप्त

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