आध्यत्मिक काशी का महत्व. शिव के चन्द्र, त्रिशूल और भष्म का महत्व, Importance of spiritual Kashi. Significance of Shiva’s Chandra, Trishul and Bhasma,

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आध्यत्मिक काशी (Kashi) का महत्व. शिव ( shiva ) के चन्द्र , त्रिशूल और भष्म का महत्व.

ॐ शर्वाय क्षितिमूर्तये नम: 

ॐ भवाय जलमूर्तये नम:

ॐ रुद्राय अग्निमूर्तये नम:

ॐ उग्राय वायुमूर्तये नम:

ॐ भीमाय आकाशमूर्तये नम:

ॐ पशुपतये यजनामूर्तये नम:

ॐ महादेवाय सोममूर्तये नम:

ॐ ईशानाय सूर्यमूर्तये नम:

जब साधक की चित्तवृत्ति शुद्ध,शांत और नि:स्वार्थ होकर अपने आभ्यंतर के आध्यत्मिक हृदय में वहां स्थित होती है जहाँ प्रज्ञा का बीज होता है, तो उसी अवस्था को काशी प्राप्ति कहते हैं. यह अवस्था परम सुप्ति के सामान है. इसमें आनंद का अनुभव होता है, इसी कारण काशी को आनंद वन भी कहते हैं. 

इस काशी में महाश्मशान स्थिति का कारण यह है कि यहाँ शिव तेजस से विकारों के दग्ध होने पर अनात्मरूप उपाधियों से छुटकारा मिलता है और अहेंकार भी दग्ध हो जाता है. गौरीमुख का तात्पर्य यह है कि इस काशी प्राप्ति की अवस्था में साधक दैवी ज्योति और बोधशक्ति के सम्मुख पहुँच जाता है और ज्यों ज्यों उसका आध्यात्मिक दिव्य चक्षु श्रीशिव के द्वारा खुलता है, त्यों त्यों ही वह त्रिलोकी के पार पहुँच गौरी अर्थात विद्यादेवी को बिना आवरण देखने में समर्थ हो जाता है. मणिकर्णिका,प्रणवकर्णिका है और इनकी तीन कर्निकाएं चित्त की तीन अवस्थाओं का द्योतक हैं- जैसे साधारण, जाग्रत अवस्था, दूर दर्शन और दूर श्रवण की अवस्था ,स्वर्गलोक की अवस्था. काशी इन तीनो के परे है. 

जिसके लाभ से मुक्ति होती है. शिव जी तारक मंत्र तभी प्रदान करते हैं, जब साधक ह्रदय रूप में काशी में स्थित होता है . और तब वह तारक मंत्र के प्रभाव में सदा के लिए तुरीयावस्था में चला जाता है. त्रिशूल का भाव है त्रिपात का नाश करना. अर्थात त्रिपात से मुक्ति पाकर जागृत, स्वपन , सुशुप्ती इन तीनो अवस्थाओं से भी परे तुरिया में पहुंचना . ऐसा साधक ही यतार्थ त्रिशूलधारी है. 

शिव के मस्तक में चंद्रमा का संकेत प्रणव की अर्धमात्रा है और इसी निमित्त उनके मस्तक को अर्धचन्द्र भूषित करता है .योगिगन अपने आभ्यंतर के चित्त अग्नि के द्वारा अहेंकार का दग्ध करते हैं और उसके साथ उसके कार्य पञ्चतन्मात्रा,पञ्चमहाभूत आदि सबको दग्ध कर परम शुद्ध आध्यात्मिक भाव में परिवर्तित क्र देते हैं, तब वह निर्विकार शुद्ध और शांत हो जाता है उसे ही भष्म कहते हैं.उस शुद्ध भाव रूप भष्म को धारण करने से शान्ति मिलती है.  

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