ब्रह्म हत्या दोष क्या है ? ब्रह्मा का कटा शीश कैसे चिपक गया महादेव के भैरव अवतार से जानिए हिंदी पौराणिक कथा में ?
ब्रह्मा के झूठ कहने पर जब महादेव के भैरव अवतार ने ब्रह्मा का शीश काटा तो वो भैरव की हथेली से जा चिपका. जानिये पूरी कथा .
आरम्भ से
इस कथा को जानने से पहली यदि हम सृष्टी की उत्पत्ति पर थोड़ी दृष्टि डाले तो इस कथा को समझने में हमे बहुत अधिक सहायता मिलेगी .
सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग, ये चार युग मिलकर चतुर्युग कहलाते हैं . सहस्त्रों चतुर्युग मिलकर एक कल्प बनता है और कल्प के अंत में फिर होता है प्रलय.
इस दौरान सृष्टी समाप्त हो जाती है .लेकिन सप्त ऋषि तारों को हमेशा बने रहने का वरदान प्राप्त है जिस कारण वे दिशा दिखाने के लिए हमेशा आकाश में स्थित रहते हैं .
प्रलय और निर्माण का कार्य भगवान द्वारा सृष्टी का खेल है, और यह हमेशा चलता रहता है .
कथा जानिये क्यूँ काटा था महादेव ने ब्रह्मा का सर ?
एक बार इसी प्रकार सृष्टी में प्रलय आने के बाद भगवान नारायण चिरनिद्रा में चले गए. इसी मध्य सहस्त्रों कोटी वर्षों के बाद ,विष्णु की नाभि से एक एक कमल पुष्प की उत्पत्ति हुई जिससे ब्रह्मा जी बाहर आये .
उस समय ब्रह्मा के पांच शीश थे .और उनका नाम पंचानन था .ब्रह्मा ने अपनी आखें घुमाकर विशाल और अनंत ब्रह्मांड को देखा. लेकिन वे भगवान् नारायण को नहीं देख पाए जिस कारण ब्रह्मा को लगा कि वही सृष्टी के निर्माता हैं .
ब्रह्मा जी ने तब सुन्दर सफ़ेद मेघों को अपने वाहन का रूप दिया जो एक एक विशाल हंस बन गया . तब ब्रह्मा उसी हंस पर स्वर होकर ब्रह्मांड का विचरण करने निकल पड़े . इस मध्य उनके अहेंकार वाले पांचवे शीश ने कहा कि “मै ही सृष्टी का निर्माता हूँ”, यह पूरे ब्रह्मांड में गूंजने लगा .
तभी उनके पीछे -पीछे विष्णु जी आ गए .जिन्होंने ब्रह्मा से कहा कि इस संसार में वो नहीं बल्कि मैं ही बड़ा हूँ क्यूंकि आपकी उत्पत्ति मेरे द्वारा हुई है . मगर ब्रह्मा जी यह मानने के लिए तैयार नहीं थे .
तभी अचानक इसी मध्य आकाश में एक लंबा सा आग्नेय लिंग प्रकट हो गया. उस लिंग से आवाज़ आई कि जो भी इस लिंग के आदि और अंत का पता लगा लेगा वही बड़ा कहलायेगा .
जिसके बाद विष्णु गरुड़ को लेकर उस आग्नेय लिंग के नीचे की ओर एवं ब्रह्मा जी हंस के वाहन को लेकर ऊपर की ओर उड़ान भर चले . कहते हैं सहस्त्रों वर्षों तक विष्णु जी उस आग्नेय लिंग के नीचे का छोर ढूंढते रहे मगर उन्हें वो छोर नहीं मिला .
उसी तरह ब्रह्मा जी ने भी बहुत प्रयास किये किन्तु उन्हें आग्नेय लिंग का उपरी छोर नहीं मिला .जिसके पश्चात विष्णु जी थक- हारकर आकर उस लिंग के समक्ष प्रकट होकर अपनी पराजय स्वीकार कर ली .
किन्तु ब्रह्म देव ने वहां प्रकट होकर झूठ कह दिया कि उन्होंने आग्नेय लिंग के ऊपरी छोर का पता लगा लिया है . ब्रह्मा जी के इस प्रकार असत्य वचन कहने के कारण महादेव का सबसे क्रोधी और प्रचंड स्वरुप भैरव प्रकट हो गए जिहोने ब्रह्मा के उस पांचवे शीश को जिसे बहुत घमंड हो गया था और वो बार बार झूठ कह रहा था , भैरव ने उस शीश को खंडित कर दिया .
जिसके बाद ब्रह्मा को अपनी भूल का आभास हुआ .नारायण और ब्रह्मा जी की विनती पर भैरव अपने वास्तविक रूप में आ गए जो कि महादेव का था . तब महादेव ने दोनों से कहा कि परम ब्रह्म के द्वारा ही हम तीनो की उत्पत्ति हुई है .इसलिए हम त्रिदेव हैं .
उन्ही परम ब्रह्म के आदेश पर हमे सृष्टी की रचना, पालन और संहार का कार्य करना है. जो रचना का कार्य होगा उसके अग्रणीय ब्रह्मदेव होंगे .दुसरे का कार्य पालनकर्ता का होगा जी की नारायण होंगे और तीसरे का कार्य संहारकर्ता का होगा जोकि मैं होऊंगा .
लेकिन वहां महादेव के भैरव अवतार पर ब्रह्म हत्या का दोष लग चुका था. ब्रह्म हत्या का दोष लगने के कारण ही उनके हाथ ब्रह्मा का वो कटा शीश इस तरह से चिपक गया था कि भैरव से खुद से अलग ही नहीं कर पा रहे थे. इस स्थिति में भैरव अनेकों देवी देवताओं के पास गए मगर उनकी समस्या का कहीं भी निदान नहीं हुआ. तत्पश्चात पार्वती जी ने भैरव को ब्रह्म हत्या के दोष से अवगत करवाया कि कैसे किसी गौ और ब्रह्मण की हत्या करने पर यह दोष लगता है.
चाहे वो कोई भी देवी -देवता हो, वो इस पाप से रक्षित नहीं हो सकता. भैरव इसी ब्रह्म हत्या के दोष से युगों तक भटकते रहें . किन्तु फिर जब वो भ्रमण करते हुए काशी पहुँचते तो उनकी हथेली से ब्रह्मा का पांचवा शीश स्वत: छूटकर ज़मीन पर गिरा और गिरकर भीतर चला गया.
के कहने पर जब भैरव ने काशी में कदम रखा तो उनकी हथेली से ब्रह्मा का शीश छूटकर गिर गया और फिर भैरव को ब्रह्म हत्या से वहीँ मुक्ति भी मिल गयी.
इधर ब्रह्म देव ने सृष्टी का निर्माण कार्य आरम्भ कर दिया. ब्रह्म देव ने अपने मन से जिन विभूतियों की उत्पत्ति की वे ब्रह्म देव के मानस पुत्र कहलाये .
ब्रह्मा की गोद से देवर्षि नारद की उत्पत्ति हुई . ऋषि वशिष्ठ ब्रह्मा जी के प्राण से उत्पन्न हुए . भृगु ऋषि त्वचा से , क्रतु ब्रह्मा के हाथ से , ऋषि पुलह ब्रह्मा की नाभि से , पुलत्स्य ब्रह्मा के कान से, अंगीरा ऋषि ब्रह्मा के मुख से , अत्री ब्रह्मा के नेत्रों से ,मरीचि उनके मन से ,और दक्ष ब्रह्मा के अनूठे से उत्पन्न हुए.
किन्तु इनके बाद जब धरती पर मनुष्य उत्पन्न करने की बारी आई तो ब्रह्मा ने शतरूपा और मनु की उत्पत्ति. हम सब उन्ही शतरूपा और मनु की संताने हैं.