सृष्टि के प्रारंभ में भगवान कृष्ण ने सूर्य को दिया था यह महायोग

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भारतीय इतिहास में ऐसा कोई समय नहीं रहा, जब योग-ज्ञान का बोलबाला नहीं था। भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा कि यह अविनाशी योग का ज्ञान मैंने सृष्टि के प्रारंभ में सूर्य को दिया, सूर्य ने मनु को एवं मनु ने इक्ष्वाकु को दिया। अतः सृष्टि के प्रारंभ से योग का ज्ञान निरंतर बहता चला आ रहा है। योग का अर्थ केवल आसन करने भर से नहीं, बल्कि अपने शुद्ध स्वरूप को जानने और उसमें टिक जाने से है। इसकी अनेक विधियां, उपाय, साधनाएं समय पर ऋषियों द्वारा वर्णित हुई और योग का ज्ञान अलग-अलग शास्त्रों में बिखर गया।

योग के इस बिखरे ज्ञान को लगभग 2200 साल पहले महर्षि पतंजलि ने इकट्ठा कर एक स्थान पर लिपिबद्ध किया। इस ग्रंथ का नाम ‘योगसूत्र’ है। योगसूत्र में योग के हर पहलू का ज्ञान सूत्रों में दिया है। इस ग्रंथ में 195 सूत्र हैं और चार अध्याय हैं- समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद! महर्षि पतंजलि द्वारा लिखे योगसूत्रों की अब हम अपने नए कॉलम ‘योगसूत्र’ नाम से सूत्रों की व्याख्या प्रारंभ कर रहे हैं, जिससे पतंजलि के योग ज्ञान को उसके वास्तव रूप में समझने में आसानी हो सके।

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