Ramayan Surpanakha Autobiography | शूर्पणखा का जीवन परिचय : रावण की बहन, रामायण

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शूर्पणखा (=शूर्प नखा ; तद्भव : सुपनखा या सूपनखा) रामायण की एक दुष्ट पात्र है। वह रावण की बहन थी। सूपे जैसी नाखूनों की स्वामिनी होने के कारण उसका नाम शूर्पणखा पड़ा। परन्तु सूप नखा नाम नाक की बनावट से संबंधित भी हो सकता है क्योंकि उसका नाक सूपड़ा (सूपड़ा=सूप गेहूं फटकने का एक बर्तन होता ) के समान हो गया था। इसका तमिल में नाम ‘सूर्पनगै’ है, इण्डोनेशियाई भाषा में ‘सर्पकनक’ है, ख्मेर भाषा में ‘शूर्पनखर’ है, मलय भाषा में ‘सुरपन्दकी’ है और थाई भाषा में ‘सम्मानखा’ है।

शूर्पणखा
संबंध राक्षसी
निवासस्थान लंका
जीवनसाथी विद्युत्जिवा
माता-पिता

विश्रवा (पिता)

कैकसी (माता)

भाई-बहन रावण (भाई)
विभीषण (भाई)
कुंभकर्ण (भाई)
शास्त्र रामायण और इसके संस्करण

शूर्पनखा महान ऋषि विश्रवा व कैकसी की पुत्री थी व रावण, कुंभकरण, विभीषण की बहन। शुरू से ही वह अति सुंदर व बड़े-बड़े नाखूनों वाली स्त्री थी। बचपन में उसका नाम मीनाक्षी रखा गया था अर्थात जिसकी आखें मछली के समान हो। बाद में उसे चंद्रमुखी के नाम से भी जाना जाने लगा अर्थात जिसका मुख चंद्रमा के समान हो। शूर्पनखा के नाखून अत्यधिक बड़े व नुकीले हुआ करते थे इसलिये उसका नाम शूर्पनखा भी पड़ा। आज हम शूर्पनखा के जीवन के बारे जानेंगे।

शूर्पनखा के बारे में संपूर्ण जानकारी (Surpanakha Story In Hindi)

शूर्पनखा का विवाह (Surpanakha Husband Name In Hindi)

जब शूर्पनखा विवाह योग्य हो गयी तब उसका विवाह दैत्य राक्षस कालनेय के पुत्र विद्युत जिव्ह के साथ करवा दिया गया। विद्युतजिव्ह भी रावण के समान परम प्रतापी था व दैत्यों जाति का राजकुमार था। उसके अंदर भी रावण के समान संपूर्ण पृथ्वी पर शासन करने व राजा बनने की चाह थी।

रावण के द्वारा शूर्पनखा के पति का वध (Ravana Killed Surpanakha Husband)

रावण लंका का राजा था व अत्यंत बलवान था। उसने अपने पराक्रम के बल पर अनेक राज्यों को अपने अधीन कर लिया था। वह संपूर्ण पृथ्वी, देव लोक व पाताल लोक को अपने अधीन करना चाहता था। इसलिये उसने अपने जीवनकाल में बहुत युद्ध किये व एक दिन उसका सामना दैत्य राजा कालनेय से भी हुआ। उनकी सेना में उनका पुत्र विद्युतजिव्ह भी था। रावण ने यह जानते हुए भी कि वह उसकी बहन का पति है उसका वध कर दिया।

जब शूर्पनखा को विद्युतजिव्ह की मृत्यु का समाचार पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हो गयी। उसके अंदर रावण से प्रतिशोध लेने की अग्नि धधक रही थी। इसी प्रतिशोध की अग्नि में उसने रावण को श्राप दिया था कि उसकी मृत्यु का कारण वह बनेगी।

चूँकि रावण ने भगवान ब्रह्मा, विष्णु व शिव की कठोर तपस्या करके अनेक वर प्राप्त किये थे। इस कारण उसे वरदान था कि उसकी मृत्यु किसी देवता, राक्षस, दैत्य, दानव, असुर, गन्धर्व, किन्नर, सर्प, यक्ष, गरुड़, नाग व गिद्ध से नही होगी। शूर्पनखा भी एक राक्षस थी तो वह भी रावण को नही मार सकती थी। अब वह रावण से अलग अपने भाई खर व दूषण के साथ रहने लगी थी जो समुंद्र के उस पार दंडकारण्य वन में रहते थे।

शूर्पनखा का राम व लक्ष्मण से मिलना (Surpanakha Nose Cut Story In Hindi)

एक दिन शूर्पनखा दंडकारण्य वन में विचरण कर रही थी तो उसकी नजर भगवान श्रीराम की कुटिया पर गयी। उसने श्रीराम को देखा तो उनके सुंदर शरीर को देखकर उन पर सम्मोहित हो उठी। वह उनकी कुटिया में गयी व भगवान राम के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। भगवान श्रीराम ने स्वयं के विवाहित होने की बात कहकर उसके प्रस्ताव को विनम्रता से ठुकरा दिया।

श्रीराम के प्रस्ताव के ठुकराने के पश्चात उसने उनके छोटे भाई लक्ष्मण के सामने वही प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मण उसकी इस मुर्खता को देखकर उसके प्रस्ताव को कठोर शब्दों के साथ ठुकरा दिया। दोनों भाइयों के द्वारा उससे विवाह के लिए मना किये जाने व लक्ष्मण के द्वारा कटु वचनों को सुनकर शूर्पनखा को अत्यंत क्रोध आ गया व अपनी राक्षस प्रजाति के व्यवहार के अनुसार वह माता सीता को खाने के लिए उनकी ओर झपटी।

माता सीता को बचाने के उद्देश्य से लक्ष्मण ने अपनी तलवार निकाली व शूर्पनखा की नाक व बायां कान काट दिया। यह देखकर वह रोती हुई वहां से चली गयी व अपने भाई खर व दूषण को इसके बारे में बताया। खर व दूषण जब शूर्पनखा का बदला लेने के लिए गए तो राम व लक्ष्मण ने उन दोनों का वध कर दिया।

लक्ष्मण ने सूर्पनखा की नाक ही क्यों काटी कोई और अंग क्यों न काटा।

यह बात लोग गूढ अर्थों में न समझ कर एक अनावश्यक बात बना दी है, जिसका प्रसार किया जा रहा है। हर व्यक्ति की एक सोंच होती है। चीजों को समझने का। मानस में धर्म से ज्यादा समाज पर ध्यान केन्द्रित किया गया है। यह महसूस किया जा सकता है कि रामायण एक ऐसे समाज की कल्पना करता है जहाँ प्रत्येक व्यक्ति नैतिक हो। नैतिकता का पाठ पढ़ाती है,रामायण। सूर्य और चंद्र पर धब्बे मिल जायेगें पर राम के पूरे जीवन और चरित्र में एक भी दाग नहीं मिल सकता है। अज्ञानवश अपनी छुद्र बुद्धि के कारण कोई मूर्खतावश धब्बा देखता है तो यह उसका नेत्र दोष है राम के चरित्र का नहीं। यह बात मैं सिद्ध करूंगा कुछ पौराणिक बातें करते हुये।

रामायण के मुताबिक रावण की बहन शूर्पणखा भी रावण का विनाश चाहती थी। दरअसल इसका कारण था शूर्पणखा का पति, जिसका वध रावण ने किया था। शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था। वो कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्व विजय पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। इस युद्ध के दौरान उसका सामना शूर्पणखा के पति से भी हुआ था। युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया। तब शूर्पणखा ने मन ही मन रावण को श्राप दिया कि मेरे ही कारण तेरा सर्वनाश होगा।

एक बार राम और सीता कुटिया में बैठे थे। अचानक शूर्पणखा ने वहां प्रवेश किया। वह राम को देखकर मुग्ध हो गयी तथा उनका परिचय जानकर उसने अपने विषय में इस प्रकार बतलाया- “मैं इस प्रदेश में स्वेच्छाचारिणी राक्षसी हूं। मुझसे सब भयभीत रहते हैं। विश्रवा का पुत्र बलवान रावण मेरा भाई है। मैं तुमसे विवाह करना चाहती हूं।” राम ने उसे बतलाया कि- “उनका विवाह हो चुका है तथा उनका छोटा भाई लक्ष्मण अविवाहित है, अत: वह उसके पास जाय।”

लक्ष्मण ने शूर्पणखा के विवाह प्रस्ताव को अस्वीकार कर उसे फिर राम के पास भेजा। शूर्पणखा ने राम से पुन: विवाह का प्रस्ताव रखते हुए कहा- “मैं सीता को अभी खाये लेती हूं, तब सौत न रहेगी और हम विवाह कर लेंगे।” जब वह सीता की ओर झपटी तो राम के आदेशानुसार लक्ष्मण ने उसके नाक-कान काट दिए। वह क्रुद्ध होकर अपने भाई खर के पास गयी। खर ने चौदह राक्षसों को राम-हनन के निमित्त भेजा, क्योंकि शूर्पणखा राम, लक्ष्मण और सीता का लहू पीना चाहती थी। राम ने उन चौदहों को मार डाला तो शूर्पणखा पुन: रोती हुई अपने भाई खर के पास गयी।

तापस बेष बिसेषि उदासी। चौदह बरिस रामु बनबासी॥
सुनि मृदु बचन भूप हियँ सोकू। ससि कर छुअत बिकल जिमि कोकू॥

तपस्वियों के वेष में विशेष उदासीन भाव से (राज्य और कुटुंब आदि की ओर से भली-भाँति उदासीन होकर विरक्त मुनियों की भाँति) राम चौदह वर्ष तक वन में निवास करें। कैकेयी के कोमल (विनययुक्त) वचन सुनकर राजा के हृदय में ऐसा शोक हुआ जैसे चंद्रमा की किरणों के स्पर्श से चकवा विकल हो जाता है।
चौदह वर्ष की उम्र तक बालक के जन्म. संस्कार गिने जाते हैं। चौदह वर्ष के पश्चात् बालक किशोरावस्था में प्रवेश करता है। चौदह दोष हमारी बाधा हैं। 5 कर्मेंद्री 5 ज्ञानेंद्री और काम, क्रोध लोभ-मोह और अहंकार। कुल चौदह।

खर ने क्रुद्ध होकर अपने सेनापति भाई दूषण को चौदह हज़ार सैनिकों को तैयार करने का आदेश दिया। सेना तैयार होने पर खर तथा दूषण ने युद्ध के लिए प्रस्थान किया। जब सेना राम के आश्रम में पहुंची तो राम ने लक्ष्मण को आदेश दिया कि वह सीता को लेकर किसी दुर्गम पर्वत कंदरा में चला जाय तथा स्वयं युद्ध के लिए तैयार हो गये। मुनि और गंधर्व भी यह युद्ध देखते गये। राम ने अकेले होने पर भी शत्रुदल के शस्त्रों को छिन्न-भिन्न करना प्रारंभ कर दिया। अनेकों राक्षस प्रभावशाली बाणों से मारे गये, शेष डर कर भाग गये। दूषण, त्रिशिरा तथा अनेक राक्षसों के मारे जाने पर खर स्वयं राम से युद्ध करने गया।

युद्ध में राम का धनुष खंडित हो गया, कवच कटकर नीचे गिर गया। तदनंतर राम ने महर्षि अगस्त्य का दिया हुआ शत्रुनाशक धनुष धारण किया। इन्द्र के दिये अमोघ बाण से राम ने खर को जलाकर नष्ट कर दिया। इस प्रकार केवल तीन मुहूर्त में राम ने खर, दूषण, त्रिशिरा तथा चौदह हज़ार राक्षसों को मार डाला।

वास्तव में दंडकारण्य की स्वामिनी शूर्पणखा ने भगवान श्रीराम के महत्वपूर्ण कार्य ‘निशिचर हीन करहुं महि भुज उठाय प्रण कीन्ह, विनाशाय च दुष्कृतं’ आदि में बहुत सहायता की है।

जनमानस में शूर्पणखा की छवि राक्षसी होने, कामी होने, निर्ममता से नरसंहार करने की होने से वह घृणा की दृष्टि से देखी जाती है। करोड़ों जन्मों तक तपस्या करने के बाद भी ऋषि-मुनियों को भगवद् दर्शन लाभ नहीं हो पाते, परंतु इसने उनके दर्शन के साथ-साथ बातें भी कीं तथा श्रीराम ने उसकी लक्ष्मणजी से भी बात करवाकर भक्तिस्वरूपा आद्या शक्ति जगत जननी सीता माता के दर्शन भी करवा दिए। एक जिज्ञासा बनी रहती है कि आखिर शूर्पणखा ने ऐसा कौन सा पुण्य किया होगा जिससे उसे यह सौभाग्य प्राप्त हुआ। मनीषी व ज्ञानीजन हमेशा इसका चिंतन किया करते हैं।

पूर्व जन्म में शूर्पणखा इन्द्रलोक की ‘नयनतारा’ नामक अप्सरा थी। उर्वशी, रम्भा, मेनका, पूंजिकस्थला आदि प्रमुख अप्सराओं में इसकी गिनती थी। एक बार इन्द्र के दरबार में अप्सराओं का नृत्य चल रहा था। उस समय यह नयनतारा नृत्य करते समय भ्रूसंचालन अर्थात आंखों से इशारा भी कर रही थी। इसे देख इन्द्र विचलित हो गए और उसके ऊपर प्रसन्न हो गए।

तब से नयनतारा इन्द्र की प्रेयसी बन गई। तत्कालीन समय में पृथ्वी पर एक ‘वज्रा’ नामक एक ऋषि घोर तपस्या कर रहे थे, तब नयनतारा पर प्रसन्न होने के कारण ऋषि की तपस्या भंग करने हेतु इन्द्र ने इसे ही पृथ्वी पर भेजा, परंतु वज्रा ऋषि की तपस्या भंग होने पर उन्होंने इसे राक्षसी होने का श्राप दे दिया। ऋषि से क्षमा-याचना करने पर वज्रा ऋषि ने उससे कहा कि राक्षस जन्म में ही तुझे प्रभु के दर्शन होंगे। तब वही अप्सरा देह त्याग के बाद शूर्पणखा राक्षसी बनी। उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि प्रभु के दर्शन होने पर वह उन्हें प्राप्त कर लेगी।

वही नयनतारा वाला मोहक रूप बनाकर ही शूर्पणखा श्रीराम प्रभु के पास गई, परंतु एक गलती कर बैठी। वह यह कि परब्रह्म प्रभु परमात्मा परात्पर परब्रह्म को पति रूप में पाने की इच्छा प्रकट कर दी-

‘तुम सम पुरुष न मो सम नारी। यह संजोग विधि रचा विचारी।।’
मम अनुरूप पुरुष जग माही। देखेऊं खोजि लोक तिहुं नाहीं।
ताते अब लगि रहिऊं कुंवारी। मनु माना कप्पु तुम्हहि निहारी।।

परब्रह्म को प्राप्त करने की एक प्रक्रिया होती है। भक्ति या वैराग्य के सहारे ही परब्रह्म को प्राप्त किया जा सकता है। शूर्पणखा भक्तिरूपा सीता माता और वैराग्यरूपी श्री लक्ष्मणजी के पास न जाकर सीधे ब्रह्म के पास चली गई। यह उसकी सबसे बड़ी गलती है। वह तो डायरेक्ट श्रीराम की पत्नी बनकर भक्ति को ही अलग कर देना चाहती थी। इसके अलावा वैराग्य का आश्रय लेती तो भी प्रभु को प्राप्त कर सकती थी, परंतु वैराग्य को भी नकारकर अर्थात वैराग्यरूपी श्री लक्ष्मणजी के पास भी न जाकर एवं अहंकार में आकर सीधे प्रभु के पास चली गई। उसमें अहंकार आ गया। वह कहती है- ‘संपूर्ण संसार में मेरे समान कोई नारी नहीं’। इसका अर्थ यह हुआ कि समस्त संसार में आपकी पत्नी बनने लायक मेरे समान कोई नारी नहीं है।

वैरागी लक्ष्मण ने सोचा कि राक्षसी को वैराग्य तो आ नहीं सकता, अत: उसे पुन: प्रभु के पास भेज दिया। तब प्रभु ने कहा कि मैं तो भक्ति के वश में हूं, तब शूर्पणखा भक्तिरूपा सीता माता के पास गई, परंतु वहां भी एक भागवतापराध कर बैठी। सोचा, प्रभु इस भक्ति के वश में हैं, अत: मैं इस भक्ति को ही खा जाऊं। भक्ति को ही नष्ट कर दूं, जबकि नियम यह है कि- ‘श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।

अत: लक्ष्मणजी ने क्रोध में आकर उसके नाक-कान काटकर अंग भंग कर दिया। तब शूर्पणखा के ज्ञान-चक्षु खुल गए और प्रभु के कार्य को पूरा कराने ‘विनाशाय च दुष्कृतम्’ के लिए उनकी सहायिका बनकर प्रभु के हाथ से खर व दूषण, रावण, कुंभकर्ण, मेघनाद आदि निशाचरों को मरवा दिया और प्रभु प्राप्ति की उचित प्रक्रिया अपनाने के लिए पुष्करजी में चली गई और जल में खड़ी होकर भगवान शिव का ध्यान करने लगी।

‘ज्योतिमत्रिस्वरूपाय निर्मल ज्ञान चक्षुसे।
ॐ रुद्रेश्वराय शान्ताय ब्रह्मणे लिंग मूर्तये।।’

दस हजार वर्ष बाद भगवान शिव ने शूर्पणखा को दर्शन दिए और वर प्रदान किया कि 28वें द्वापर युग में जब श्रीराम कृष्णावतार लेंगे, तब कुब्जा के रूप में तुम्हें कृष्ण से पति सुख की प्राप्ति होगी। तब श्रीकृष्ण तुम्हारी कूबड़ ठीक करके वही नयनतारा अप्सरा का मनमोहक रूप प्रदान करेंगे।

अब प्रश्न ये है कि यदि कोई आपकी पत्नि पर हमला करे तो क्या आप चुपचाप खडे रहेगें। दूसरी बात लक्ष्मण ने वह अंग काटा जिसका अतिरिक्त मांस कटने से शरीर को कोई अपंगता नहीं आती है। यदि हाथ पैर काट दे या आंख फोड दें तो या फिर उंगली काट दें तो अपंगता आती है। पर नाक के ऊपर का मांस या का कान की लौ काटने से शरीर में कोई नुक्सान नहीं। यह तो हुई भौतिक व्याख्या।

सूक्ष्म व्याख्या देखें तो नाक कान लक्ष्यमन यानि लक्ष्य + मन ने काटे। मतलब यदि तुम ब्रह्म स्वरूप राम के पास जाना चाहते हो तो अपने मन में तुम्हारा लक्ष्य होना चाहिये कि ब्रह्म की प्राप्ति और इसके लिये अपने गर्व और अहंकार के प्रतीक यानि नाक को कटवाना होगा। वह भी अपने मन के लक्ष्य के हाथों। साथ ही अपने कानों से सुनी विपरीत बातों पर ध्यान नहीं देना होगा। अर्थात अपनी नाक और कान को कटवा कर लक्ष्य के प्रति मन से समर्पित होकर कार्य करना होगा तब ही ब्रह्म की प्राप्ति होगी।

रावण के दरबार में शूर्पनखा का प्रलाप (Ravan Surpanakha Samvad)

खर व दूषण की मृत्यु के बाद शूर्पनखा समुंद्र पार करके लंका में रावण के राजमहल में पहुंची व सारा वृतांत गलत तरीके से सुनाया। उसने रावण के सामने भरी सभा में उसकी शक्ति पर प्रश्न उठाया तथा अपनी बहन के अपमान व खर दूषण की मृत्यु का बदला लेने की बात कही।

इसके साथ ही वह रावण के स्त्री के प्रति प्रेम को भी भलीभांति जानती थी। इसलिये उसने रावण के सामने माता सीता की सुंदरता का बखान किया व रावण के लिए उसे एक उत्तम स्त्री बताया। रावण सीता के बारे में ऐसा विवरण सुनकर विचलित हो उठा। अपने अहंकार के मद में रावण ने माता सीता का अपहरण किया जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बना।

कुछ लोगों के अनुसार शूर्पनखा ने जान बूझकर राम व लक्ष्मण को क्रोध दिलाया था। चूँकि रावण ने स्वयं को मिले वरदान में अपनी मृत्यु के कारण में मानव व वानर को नही मांगा था तो उसकी मृत्यु उन दोनों के द्वारा हो सकती थी। जब उसे भगवान राम व लक्ष्मण की शक्ति के बारें में पता चला तो अपने भाई से अपने पति की मृत्यु का बदला लेने के लिए उसने यह सब षड़यंत्र रचा जिससे अंत में जाकर रावण की मृत्यु हुई।

रावण के अंत के बाद शूर्पनखा की तपस्या (Surpanakha After Ravana Death)

अपने भाई रावण की मृत्यु के बाद शूर्पनखा ने भगवान विष्णु की गहन तपस्या की व उन्हें अगले जन्म में अपनी पति के रूप में माँगा। भगवान विष्णु ने उसे यह वरदान दिया। अगले जन्म में जब भगवान विष्णु कृष्ण रुपी अवतार में इस धरती पर आयें तब उनकी सोलह हज़ार पत्नियों में एक शूर्पनखा भी थी।

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