Ramayan Meghnad Autobiography | मेघनाद या इन्द्रजीत का जीवन परिचय : इंद्र को पराजय किया, रामायण

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मेघनाद जिसे राजपुत्र मेघनाद या इन्द्रजीत के नाम से भी जाना जाता है, लंका के राजा रावण का पुत्र था। अपने पिता की तरह यह भी स्वर्ग विजयी था। इंद्र को परास्त करने के कारण ही ब्रह्मा जी ने इसका नाम इन्द्रजीत रखा था। इसका नाम रामायण में इसलिए लिया जाता है क्योंकि इसने राम- रावण युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसका नाम उन योद्धाओं में लिया जाता है जो की ब्रह्माण्ड अस्त्र, वैष्णव अस्त्र तथा पाशुपात अस्त्र के धारक कहे जाते हैं। इसने अपने गुरु शुक्राचार्य के सान्निध्य में रहकर तथा त्रिदेवों द्वारा कई अस्त्र- शस्त्र एकत्र किए। स्वर्ग में देवताओं को हरा कर उनके अस्त्र-शस्त्र पर भी अधिकार कर लिया।

मेघनाद पितृभक्त पुत्र था। उसे यह पता चलने पर की राम स्वयं भगवान है फिर भी उसने पिता का साथ नही छोड़ा। मेघनाद की भी पितृभक्ति प्रभु राम के समान अतुलनीय है।

जब उसकी माँ मन्दोदरी ने उसे यह कहा कि मनुष्य मुक्ति की ओर अकेले जाता है तब उसने कहा कि पिता को ठुकरा कर अगर मुझे स्वर्ग भी मिले तो मैं ठुकरा दूँगा।

संक्षिप्त परिचय
मेघनाद
अन्य नाम इंद्रजित
कुल राक्षस
पिता रावण
माता मंदोदरी
समय-काल रामायण काल
परिजन विभीषण, कुम्भकर्ण, सुलोचना
गुरु शुक्राचार्य
विवाह सुलोचना
विद्या पारंगत धनुर्विद्या, मायावी शक्तियाँ प्राप्त।
निवास लंका
संदर्भ ग्रंथ रामायण
यशकीर्ति इंद्र पर विजय, हनुमान को बंदी बनाना, राम-लक्ष्मण को दो बार युद्ध में हराना।
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अन्य जानकारी जब मेघनाद का जन्म हुआ तो वह मेघ गर्जन के समान ज़ोर से रोया, इसी से उसका नाम मेघनाद रखा गया। मेघनाद विशाल भयानक वटवृक्ष के पास भूतों को बलि देकर युद्ध में जाता था, इसी से वह अदृश्य होकर युद्ध कर पाता था।

मेघनाद रामायण, का एक ऐसा पात्र था जिसे स्वयं वाल्मीकि जी ने सबसे शक्तिशाली योद्धा बताया है। वह लंकापति रावण का पुत्र व लंका का प्रमुख राजकुमार था। श्रीराम-रावण युद्ध में राक्षस सेना की ओर से केवल वही एक ऐसा योद्धा था जो दो बार विजयी होकर लौटा था अन्यथा हर कोई युद्धभूमि में मारा जाता था। मेघनाद का जन्म ही एक चमत्कार के साथ हुआ था तथा वध भी बहुत यत्नों के बाद हो पाया था। आज हम आपको मेघनाद का संपूर्ण जीवन परिचय देंगे।

रामायण में मेघनाद का जीवन परिचय (Meghnath Story In Hindi)

मेघनाद का जन्म (Meghnath Ka Janm)

मेघनाद के जन्म के समय लंकापति रावण ने सभी ग्रहों को उसके 11 वें घर में रहने का आदेश दिया था ताकि उसका जन्म शुभ नक्षत्र में हो। किंतु आखिरी समय में शनि देव ने अपनी चाल बदल दी व 11 वें से 12 वें घर में प्रवेश कर गए जो अंत में मेघनाद की मृत्यु का कारण बना था। शनि देव से क्रुद्ध होकर रावण ने उन्हें बहुत मारा था।

जब मेघनाद का जन्म हुआ था तब वह सामान्य बच्चों की तरह रोया नही था बल्कि मेघों/बादलों के समान गरजा था। इससे खुश होकर रावण ने उसका नाम मेघनाद रख दिया था अर्थात बादलो की गर्जना।

मेघनाद का विवाह (Meghnath Ka Vivah)

मेघनाद का विवाह शेषनाग की कन्या सुलोचना के साथ हुआ था। सुलोचना एक नाग कन्या थी। इस प्रकार मेघनाद लक्ष्मण का दामाद था क्योंकि लक्ष्मण शेषनाग के ही अवतार थे।

मेघनाद का यज्ञ व शक्तियां (Meghnath Ki Shakti)

जब मेघनाद बड़ा हो गया तब उसने गुरु शुक्राचार्य की सहायता से अपनी कुलदेवी निकुंबला के समक्ष सात यज्ञों का अनुष्ठान किया था। इससे उसे कई अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए थे जिसमे एक दिव्य रथ था जो उसके मन की गति से किसी भी दिशा में उड़ सकता था। साथ ही उसे अक्षय तरकश व दिव्य धनुष प्राप्त हुए थे जिसमे बाण कभी समाप्त नही होते थे।

इन यज्ञों से उसे जो मुख्य शस्त्र प्राप्त हुए थे वे थे भगवान ब्रह्मा का सर्वोच्च अस्त्र ब्रह्मास्त्र, भगवान विष्णु का सर्वोच्च अस्त्र नारायण अस्त्र व भगवान शिव का सर्वोच्च अस्त्र पाशुपति अस्त्र। इन तीनो अस्त्रों को प्राप्त करने के पश्चात वह अपने पिता रावण से भी अत्यधिक शक्तिशाली हो गया था।

मेघनाद का नाम इंद्रजीत पड़ना (Meghnath Ka Naam Indrajit Kaise Pada)

एक बार रावण देवराज इंद्र से युद्ध करने गया हुआ था जिसमे इंद्र ने रावण को हराकर उसे बंदी बना लिया था। जब मेघनाद को यह पता चला तो उसने इंद्र से युद्ध किया व उन्हें पराजित कर दिया। अब मेघनाद इंद्र को बंदी बनाकर लंका ले आया। फिर एक दिन रावण व मेघनाद ने इंद्र के वध करने की योजना बनायी।

यह देखकर स्वयं भगवान ब्रह्मा मेघनाद के पास आए व उसे देवराज इंद्र को छोड़ देने को कहा। बदले में उन्होंने मेघनाद को वरदान दिया कि किसी भी युद्ध में जाने से पहले यदि वह अपनी कुलदेवी निकुंबला का यज्ञ कर लेगा तो उस युद्ध में उसे कोई भी पराजित नही कर पाएगा। किंतु साथ ही भगवान ब्रह्मा ने यह भी कहा कि जो कोई भी उसका यह यज्ञ बीच में विफल कर देगा, उसी के हाथों उसकी मृत्यु होगी।

साथ ही मेघनाद की भक्ति व देवराज इंद्र के अहंकार को दूर करने के लिए भगवान ब्रह्मा ने मेघनाद को इंद्रजीत की उपाधि दी अर्थात जो इंद्र को भी जीत सकता हो।

मेघनाद व हनुमान युद्ध (Meghnath Hanuman Yudh Ashok Vatika)

मेघनाद का पिता रावण स्त्रिलोलुप व अहंकारी था और इसी अहंकार में उसने एक दिन माता सीता का हरण कर लिया था। रावण के ज्यादातर संबंधी, पत्नी, नाना इत्यादि ने उसे ऐसा ना करने को कहा था लेकिन मेघनाद हमेशा अपने पिता के साथ था। एक दिन मेघनाद को सूचना मिली कि अशोक वाटिका में एक बंदर ने उथल-पुथल मचा दी हैं तथा उसने उसके छोटे भाई अक्षय कुमार का भी वध कर दिया है।

यह सुनकर मेघनाद अत्यधिक क्रोधित हो गया व अपने पिता से आज्ञा पाकर हनुमान से युद्ध करने गया। उसका हनुमान से भीषण युद्ध हुआ व अंत में उसने हनुमान पर ब्रह्मास्त्र चला दिया। वह हनुमान को बंदी बनाकर रावण के दरबार में लेकर आया। बाद में हनुमान लंका में आग लगाकर वापस चले गए लेकिन कोई कुछ नही कर सका।

मेघनाद द्वारा अंगद का पैर उठाना (Meghnath Angad Samvad)

हनुमान के जाने के कुछ समय पश्चात श्रीराम संपूर्ण वानर सेना के साथ लंका में प्रवेश कर चुके थे तथा अंगद के द्वारा शांति संदेश रावण के दरबार में भिजवाया था जिसे रावण ने ठुकरा दिया था। इसके बाद अंगद ने भरी सभा में रावण के सभी योद्धाओं को चुनौती दी थी कि यदि कोई भी उसका पैर उठा देगा तो श्रीराम अपनी हार स्वीकार कर लेंगे।

एक-एक करके रावण के सभी योद्धा विफल हुए तो अंत में रावण का सबसे शक्तिशाली पुत्र व योद्धा मेघनाथ उसका पैर उठाने उतरा। यह पहली बार था जब मेघनाद के अहंकार पर चोट पहुंची थी तथा वह भी अंगद का पैर उठाने में असफल रहा था।

मेघनाद ने बांध दिया नारायण व शेषनाग अवतार को नागपाश में (Meghnath Nagpash Ram Lakshman)

जब युद्ध में एक-एक करके रावण के सभी योद्धा व भाई-बंधु मारे गए तब अंतिम विकल्प के रूप में उसने मेघनाद को भेजा। मेघनाद ने युद्धभूमि में जाते ही चारो ओर हाहाकार मचा दिया था तथा शत्रु सेना पर कहर बनकर टूटा था। अंत में उसने श्रीराम व लक्ष्मण पर नागपाश अस्त्र चला दिया जिसमे दोनों बंधकर मुर्छित हो गए व धीरे-धीरे मृत्यु के मुख में समाने लगे।

इसके बाद युद्ध रुक गया व मेघनाद गर्जना करता हुआ वापस अपने महल आ गया। रावण अपने पुत्र की जीत से बहुत खुश हुआ था व उसे गले लगा लिया था।

मेघनाद का लक्ष्मण को मुर्छित करना (Meghnath Laxman Shakti Ban Ramayan)

बाद में मेघनाद को ज्ञात हुआ कि स्वयं गरुड़ देवता ने आकर दोनों भाइयों को नागपाश के बंधन से मुक्ति दिलवा दी है तो वह अत्यधिक क्रोधित हो उठा। अगले दिन वह फिर से युद्ध में गया व लक्ष्मण से भीषण संग्राम करने लगा। अंत में उसने आकाशमार्ग से लक्ष्मण पर शक्तिबाण चला दिया जिसके प्रभाव से लक्ष्मण अचेत हो गए और भूमि पर गिर पड़े।

इस बार मेघनाद मुर्छित लक्ष्मण को उठाकर लंका ले जाना चाहता था ताकि उनका कोई भी उपचार ना किया जा सके। मेघनाद ने लक्ष्मण को उठाने की बहुत कोशिश की लेकिन लक्ष्मण इतने भारी हो गए थे कि वे उससे उठे ही नही। इतने में वीर हनुमान आकर लक्ष्मण को अपने साथ लेकर चले गए। मेघनाद विजयी होने की गर्जना करता हुआ राजमहल आया जहाँ उसका भव्य स्वागत हुआ।

मेघनाद का निकुम्बला यज्ञ विफल होना (Meghnath Nikumbala Devi Ki Puja)

सुबह होते-होते मेघनाद को सूचना मिली कि श्रीराम की सेना ने लंका के राजवैद्य सुशेन की सहायता से लक्ष्मण के प्राण बचा लिए हैं। यह सुनकर मेघनाद इतना ज्यादा क्रोधित हो गया था कि वह अपने पिता से आज्ञा लेकर कुलदेवी निकुम्बला का यज्ञ करने निकल पड़ा। अब वह यज्ञ पूर्ण करके ही युद्धभूमि में उतरना चाहता था।

यज्ञ करने का स्थल लंका में एक गुप्त जगह पर था जहाँ वह अपने साथ सैनिकों की विशिष्ट टुकड़ी लेकर गया था। जब वह यज्ञ कर रहा था तब अचानक से श्रीराम की सेना ने लक्ष्मण के नेतृत्व में यज्ञ स्थल की भूमि पर आक्रमण कर दिया तथा उसके सभी सैनिको का वध कर दिया।

मेघनाद ने फिर भी यज्ञ करना जारी रखा लेकिन अंत में श्रीराम की सेना ने यज्ञभूमि में आकर उसका यज्ञ असफल कर दिया। यह देखकर मेघनाद अत्यंत क्रोधित हो गया तथा अपने रथ में बैठकर तेज गति से युद्धभूमि के लिए निकल पड़ा।

मेघनाद को पहली बार हुआ नारायण के अवतार का ज्ञान (Meghnath Ka Charitra Chitran)

तीसरे दिन भी वह लक्ष्मण के साथ भीषण युद्ध कर रहा था तथा यज्ञ विफल होने से अत्यधिक क्रोधित भी था। इसी क्रोध में उसने अपने तीन सबसे बड़े अस्त्रों का प्रयोग करने का निर्णय लिया। उसने एक-एक करके लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र, नारायण अस्त्र व पशुपति अस्त्र छोड़े लेकिन वे लक्ष्मण का कुछ नही बिगाड़ पाए।

मेघनाद जानता था कि ये अस्त्र हमेशा सफल रहते हैं लेकिन इनका भगवान शिव, आदि शक्ति, नारायण, ब्रह्मा, शेषनाग व उनके अवतारों पर कोई प्रभाव नही होता। जब उसने लक्ष्मण पर उन तीनो अस्त्रों का कोई असर होते नही देखा तो उसे ज्ञान हो गया था कि वह कोई सामान्य मनुष्य नही अपितु भगवान का एक अवतार हैं। यह देखकर वह तुरंत युद्धभूमि छोड़कर राजमहल में अपने पिता से मिलने गया।

मेघनाद का रावण को समझाना (Meghnath Ravan Ka Samvad)

रामायण में सीधा-सीधा उल्लेख हैं कि मेघनाद एक पित्र भक्त था तथा उसने रावण के हर कार्य में उसका साथ दिया था। जब रावण ने सीता का हरण किया तथा युद्ध में एक-एक करके उसके सभी साथी मारे जाने लगे तब सभी उसे समझाने का प्रयास करते जिससे रावण का भी साहस डगमगा जाता। लेकिन मेघनाद अंत तक रावण के साथ ढाल बनकर खड़ा रहा लेकिन यह पहली बार था जब मेघनाद ने माता सीता को लौटा देने की बात रावण से कही थी।

वह तेज गति से रावण के पास पहुंचा व उसे सब घटना बतायी। उसने रावण के सामने स्वीकार किया कि श्रीराम कोई और नही अपितु नारायण के अवतार हैं और अब उसे माता सीता को उन्हें लौटा देना चाहिए। वह अपने पिता की भलाई चाहता था लेकिन रावण यह सुनकर उसे दुत्कारने लगा व उसे कायर की संज्ञा दे दी।

अपने पिता के इन कटु वचनों को सुनकर मेघनाथ बहुत निराश हो गया और उसने एक वीर की भांति युद्ध में मरना उचित समझा। उसे पता था कि वह नारायण से नही जीत सकता इसलिये आज युद्ध में उसकी मृत्यु निश्चित थी। वह अपने माता-पिता व पत्नी सुलोचना को अंतिम प्रणाम कर युद्ध भूमि के लिए निकल पड़ा।

मेघनाद का वध हो जाना (Meghnath Ka Vadh)

लक्ष्मण के लिए मेघनाद को मारना इतना आसान नही था। मेघनाद वापस आकर अपनी मायावी शक्तियों से फिर भीषण युद्ध करने लगा। जब लक्ष्मण उसे मारने में लगातार असफल रहे तो उन्होंने क्रोधित होकर अपने तरकश में से एक बाण निकाला व धनुष पर चढ़ाकर उसे यह प्रतिज्ञा दी कि यदि श्रीराम सच में एक धर्मात्मा हैं, यदि मैं सच में श्रीराम का एक अनन्य भक्त हूँ तो यह तीर मेघनाद का मस्तक काटकर ही वापस आएगा।

इसके बाद उस तीर से मेघनाद का मस्तक कटकर अलग हो गया व प्रभु श्रीराम के चरणों में जाकर गिर गया। उसकी मृत्यु के पश्चात लंका में चीत्कार मच गया व रावण विलाप करने लगा था। भगवान श्रीराम ने मेघनाद के अंतिम संस्कार के लिए एक दिन युद्ध विराम की घोषणा कर दी व उसकी पत्नी सुलोचना अपने पति के मस्तक को लेकर अग्नि में कूद गयी।

मेघनाद का वध हो जाना रावण के लिए एक बहुत बड़ी क्षति थी और वह बुरी तरह टूट गया था। अब उसका कोई भी योद्धा नही बचा था तथा वह पूरी तरह से अकेला हो गया था। लंका की प्रजा अपने भावी राजा की मृत्यु से बुरी तरह निराश हो गयी थी। श्रीराम ने भी लंकावासियो व रावण की भावनाओं को समझते हुए पहली बार एक दिन के युद्धविराम की घोषणा की थी ताकि मेघनाद का संस्कार शांतिपूर्वक तरीके से किया जा सके।

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