गीता ज्ञानः ऐसे लोगों की भगवान हमेशा रक्षा करते हैं

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अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना: पर्युपासते। तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम् ।। गीता 9/22।।

अर्थ : जो भक्तजन अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मुझे पूजते हैं, ऐसे नित्ययुक्त साधकों के योगक्षेम को मैं स्वयं वहन करता हूं।

व्याख्या : जिस व्यक्ति के मन में हर समय केवल परमात्मा ही बसें हों और उनसे बढ़कर दुनिया में उसके लिए अन्य कोई न हो, वही भक्त है। भगवान कह रहे हैं कि जो भक्त केवल मेरा ही हर पल चिंतन करते हुए अन्य कोई भी भाव को अपने भीतर नहीं लाता और केवल मेरा ही पूजन करता है, ऐसे निरंतर परमात्मा से जुड़े साधकों की साधना की रक्षा मैं स्वयं करता हूं।

अर्थात भक्त ने जो भी साधना आज तक की है, वह संस्कार रूप में चित्त में जाकर इक्कट्ठी हो जाती है, फिर उसका नाश नहीं होता, क्योंकि परमात्मा उसकी रक्षा करते हैं और वह साधना, साधक को अध्यात्म मार्ग में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती रहती है।

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