ज्यादातर इस तरह के व्यक्ति फंसते हैं जन्म-मरण के चक्र में

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ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति |
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते || गीता 9/21||

अर्थ: वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्य क्षीण होने पर मृत्यु लोक में लौट आते हैं। इस प्रकार तीनों वेदों के धर्म का पालन करते हुए, भोगों की कामना करने वाले बार-बार आवागमन को प्राप्त होते हैं ।

व्याख्या: इस जन्म में पुण्य कर्म करने से व्यक्ति को मृत्यु के बाद स्वर्ग लोग की प्राप्ति होती है और फिर जब तक पुण्य कर्मों का फल बना रहता है तब तक वो जीव स्वर्ग का भोग भोगता रहता है, लेकिन जब पुण्य खत्म हो जाते हैं तब जीव मृत्युलोक में पुनः लौटकर फिर से जन्म लेता है। इस जन्म में वो फिर वेदों में बताये धर्म का पालन करता हुआ पुण्य कर्मों को करता है और फिर उन कर्मों से इच्छित भोग चाहता है। इसप्रकार भोगों की कामना करने वाले व्यक्ति बार-बार जन्म-मरण के चक्र को प्राप्त होते रहते हैं।

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