छेदिनी स्तोत्र || Chhedini Stotra

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रुद्रयामल तंत्र पटल ३१ में भेदिनीदेवी के स्तोत्र की साधना विधियों का वर्णन है। इसके बाद छेदिनी स्तोत्र (छेदिनीस्तव) के मध्य श्री वागेशी, कालिका, छेदिनी, लाकिनी राकिणी एवं काकिनी की स्तुति है।

रुद्रयामल तंत्र एकत्रिंश: पटल:

छेदिनी स्तोत्रम्

रूद्रयामल तंत्र शास्त्र

अथैकत्रिंशः पटल:

अथ वक्ष्ये महादेव्याः छेदिन्याः स्तवमुत्तमम् ।

छेता त्वं सर्वग्रन्थीनां मठासायद् यतीश्वरः ॥ २४ ॥

यत्प्रसादादनन्तो हि योगी संसारमण्डले ॥ २५ ॥

हे महादेव ! अब इसके बाद महादेवी छेदिनी का उत्तम स्तोत्र कहती हूँ जिसके प्रसन्न होने के कारण ही आप सभी ग्रन्थियों के छेदन करने वाले यतीश्वर बन गए हैं। इतना ही नहीं जिसके प्रसन्न होने से भगवान् अनन्त योगी बन गए । २३-२५ ।।

छेदिनी स्तोत्र

छेदिनीस्तवम्

देशानन्दा सकलगुणदा छेदिनी छेदनस्था

हव्यस्था सा विभवनिरता या निषिस्था निशायाम् ।

सा मे नित्यं कुलकमलगा गोपनीया विधिज्ञा

श्रीवागेशी गगनवसना सर्वयोगं प्रपायात् ॥ २६ ॥

जो छेदन करने वाली भगवती छेदिनी समस्त शरीर रूपी देश को आनन्द देती हैं,सम्पूर्ण गुण प्रदान करती हैं, हवि में स्थित रहने वाली हैं तथा रात्रि के समय निधि में निवासकर साधक को विभव प्रदान करती हैं ऐसी मूलाधार कमल में सर्वथा गोपनीया, विधिज्ञा गगनवसना श्री वागेशी हमारे सभी योगों की प्रकृष्ट रूप से रक्षा करे ॥ २६ ॥

कामानन्दा मदननिरता भाविता भावसिन्धौ

कामानन्दोद्भवरसवती योगियोगस्थधात्री ।

देहक्लेदे निरसनरता … … …. … … ……

सा मे धौतं प्रकुरु वपुषो धर्मपुञ्जं प्रपायात् ॥ २७ ॥

जो काम से आनन्द देने वाली, काम में निरत, भावसिन्धु में ध्यान के योग्य, काम के आनन्द से उत्पन्न रस से रसवती, योगियों के योग में रह कर उनका पालन करने वाली, शरीर की खिन्नता को दूर करने में रत देवी हमारे शरीर को स्वच्छ बनावें तथा हमारे धर्मपुञ्ज की रक्षा करें ॥ २७ ॥

कालाकालं कमलकलिकावासिनी कालिका मे

ग्रन्थिच्छेदं स्थिरगृहगता गात्रनाडीपथस्था ।

वक्त्राम्भोजे वचनमधुरं धारयन्ती जनानां

सा मे रन्ध्रं मम रुचिरतनोः पातु पञ्चानना या ॥ २८ ॥

कालिका स्तुति-काल एवं अकाल में कमल कलिका में निवास करने वाली तथा शरीर के प्रत्येक नाडी पथ में स्थित रहने वाली कालिका भगवती गृह में स्थिरता प्राप्तकर मेरी ग्रन्थियों का विच्छेद करें। जो मनुष्यों के मुख कमल में मधुर वचन धारण कराती हैं, जो पाँच मुखों वाली हैं, ऐसी कालिका भगवती मेरे सुन्दर शरीर के प्रत्येक रन्ध्रों की रक्षा करें ॥ २८ ॥

योगाङ्गस्था स्थितिलयविभवा लोमकूपाम्बुजस्था

माता गौरी गिरिपतिसुता भासुरास्त्रप्रदीप्ता ।

सम्पायान्मे हृदयविवरं छेदिनीमूलपूरे

कैलासस्था मममनुगिरिं पातु रुद्रप्रसादा ।। २९ ।।

योग के अङ्ग में निवास करने वाली, सृष्टि की स्थिति, लय तथा विभव से प्रकाशित, रोमकूप के कमल में निवास करने वाली, भासुर एवं प्रदीप्त हिमालय की कन्या माता गौरीरूप से कैलास पर निवास करने वाली, रुद्र का प्रसाद प्राप्त करने वाली ऐसी छेदिनी भगवती मेरे हृदय विवर की तथा मूलाधार चक्र में मेरे मन्त्र के शब्दों की रक्षा करें ।। २९ ।।

नादान्तःस्था मनगुणधरणासन्न सिद्धान्तपारा

भोगानन्दा भगनगबिले काशयन्ती जनानाम् ।

विद्याविद्या विविधगगना छेदिनी छन्नरूपा

सा सर्वान्तःकरणनिलया लाकिनी प्रेमभावा ॥ ३० ॥

लाकिनी स्तुति-नाद के भीतर रहने वाली, मन के गुणों को धारण करने वाली, (कुल) सिद्धान्त आसन्न लोगों को पार लगाने वाली, भोग में आनन्द प्राप्त करने वाली, भगरूपी पर्वत के विल में मनुष्यों को प्रकाश देने वाली, विद्या, अविद्या, स्वरूपा, अनेक आकाशों वाली, ऐसी प्रच्छन्नरूपा छेदिनी तथा सभी के अन्तःकरण में गुप्त रूप से निवास करने वाली प्रेमस्वरूपा लाकिनी हमारी रक्षा करें ॥ ३० ॥

योगं स्वर्गेऽर्पयसि मनसि प्रेमभावं परेशे

या या यात्रा त्रिविधकरणा कारणा सर्वजन्तोः ।

माता ज्ञात्री गणेशे गृहिगणसदया सर्वकर्त्री मनो मे

रक्षा रक्षाक्षरगतकला केवला निष्कला या ॥ ३१ ॥

जो स्वर्ग में जाने वालों को योग अर्पित करती हैं, परमेश्वर में लगाने के लिए साधकों के मन में प्रेम उत्पन्न करती हैं, जो यात्रा तत्स्वरूपा, त्रिगुणमयी, सभी जन्तुओं की उत्पत्ति की कारणभूता, जो गणेश की माता तथा उनकी ज्ञात्री हैं, गृहिणी जनों पर दया प्रदर्शित करती हैं तथा सबकी कर्त्री हैं ऐसी अक्षरगत कला वाली केवल निष्कला भगवती मेरे मन की रक्षा करें, रक्षा करें ॥ ३१ ॥

सा योगेन्द्रा समवतु मुदा मे गुदं कुण्डलिन्यां

जनो: कन्या कमलनिलया राकिणी प्रेमभावान् ।

मोक्षप्राणान् तपनरहिता पातु मे वेदवक्त्रा

सिद्धा मूलाम्बुजदलगता पावनी पातु तुण्डम् ॥ ३२ ॥

राकिणी स्तुति वह योगेन्द्रा प्रसन्न होकर कुण्डलिनी में मेरे गुद की रक्षा करें, कमल में निवास करने वाली जनुकन्या राकिणी प्रेमभावों की रक्षा करें, वेदरूपी मुखों वाली, तपन ( दुःख) से रहित भगवती मोक्ष के लिए मेरे प्राणों की रक्षा करें तथा मूलाधार के कमलदल पर निवास करने वाली पावनी सिद्धा मेरे तुण्ड (ओष्ठाधर भाग) की रक्षा करें ।। ३२ ।।

हेरम्बाज्ञा प्रलयघटिता काकिनी क्रोधरूपा ॥ ३३ ॥

यदि भजति कुलीनः कामिनीं क्रोधविद्यां

स भवति परयोगी छेदिनीस्तोत्रपाठात् ।

सकलदुरितनाश: क्षालनादिप्रसिद्धिः

सकलजनवशः स्यात् तस्य नित्यं सुराज्यम् ॥ ३४ ॥

हेरम्ब ( गणपति) की आज्ञा स्वरूप प्रलय करने वाली क्रोधरूप काकिनी कही गई हैं। उत्तम कुल में उत्पन्न हुआ साधक यदि इन क्रोध विद्या स्वरूपा, काकिनी, कामिनी का भजन करें तो वह उत्कृष्ट योगी हो जाता है। छेदिनी स्तोत्र के पाठ से साधक के समस्त पापों का नाश हो जाता है। नेती, धौती तथा क्षालनादि क्रियायें सिद्ध हो जाती हैं। ऐसे साधक के वश में सम्पूर्ण चराचर जगत् हो जाता है। उसके लिए नित्य सर्वत्र सुन्दर राज्य है॥३४॥

एतत् स्तोत्रं पठेद्विद्वान् महासंयमतत्परः ।

मूले मनः स्थिरो याति सर्वानिष्टविनाशनः ॥ ३५ ॥

सर्वसिद्धिः करे तस्य यो भावं समुपाश्रयेत् ।

विद्वान् साधक महान् संयम में तत्पर होकर इस स्तोत्र का पाठ करे तो मूलाधार में उसका मन स्थिर हो जाता है और उसके समस्त पाप विनष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार यदि भावपूर्वक छेदिनी स्तोत्र का आश्रय ग्रहण करे तो सभी सिद्धियाँ उसके हाथ में आ जाती हैं ।। ३५-३६ ।।

॥ इति श्रीरुद्रयामले उत्तरतन्त्रे महातन्त्रोद्दीपने षट्चक्रप्रकाशे सिद्धिमन्त्रप्रकरणे भैरव भैरवीसंवादे डाकिनी छेदिनी स्तोत्रं नाम एकत्रिंशः पटलः ॥ ३१ ॥

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