जानें कैसे मिलता है स्वर्ग और किस तरह के भोगते हैं दिव्य सुख

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त्रैविद्या मां सोमपा: पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्र्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्।।गीता 9/20||

अर्थ: तीनों वेदों के ज्ञाता, सोमरस पीने वाले, पापरहित पुरुष यज्ञों द्वारा मुझे पूजकर स्वर्गलोक को पाने की कामन करते हैं। वे अपने पुण्यफल से स्वर्गलोक पाकर वहां देवताओं के दिव्य सुखों को भोगते हैं।

व्याख्या: तीनों वेदों का ज्ञान प्राप्त कर जब साधक अंतर्मुखी यात्रा शुरू करता है, तब वह सहस्रार चक्र से निकलने वाले आनंद रूपी सोमरस का पान करने लगता है। इससे वह पाप कर्मों से बचा रहता है।

इस तरह वह कल्याण मार्ग का अनुसरण करता हुआ निरंतर दूसरों की भलाई रूपी यज्ञ और हवन करता है और परमात्मा को भजता है। वह स्वर्गलोक को पाने के लिए प्रार्थना करता है। इस तरह वह पुण्यफल पाकर स्वर्गलोक को जाता है और वहां देवताओं के दिव्य सुखों को भोगने लगता है।

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