हिन्दु संस्कृति के वट विशाल || HINDU SANSKRITI KE VAT VISHAL || RSS Geet

0

हिन्दु संस्कृति के वट विशाल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल
तेरी चोटि नभ छूती है तेरी जड पहुँच रही पाताल

जाने कितने ही सूर्योदय मध्यान्ह अस्त से तू खेला
जाने कितने तूफानों को तूने निज जीवन में झेला
कितनी किरणों से लिपटी है तेरी शाखाएँ डाल-डाल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल – (२)

जाने कितने प्रिय जीवों ने तुझमें निज नीड़ बसाया है
जाने कितने यात्री गण ने आ रैन बसेरा पाया है
कितने शरणागत पूज रहे तेरा उदारतम अन्तराल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल – (२)

कुछ दुष्टों ने जड़ भी खोदी शाखा तोड़ी पत्ते खींचे
फिर कई विदेशी तत्वों के विष से जड़ के टुकड़े सींचे
पर सफल आज तक नहीं हुई उन मूढ़ जनों की कुटिल चाल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल – (२)

अनगिन शाखाएँ बढ़ती है धरती में मूल पकड़ती हैं
हो अन्तर्विष्ट समष्टि समा वे तेरा पोषण करती है
तुझ में ऐसी ही मिल जाती जैसे सागर में सरित माल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल – (२)

उन्मुक्त हुआ लहराता यह छाया अमृत बरसाता यह
ओ जग के प्रिय वट वृक्ष सदा सन्तानों को सरसाता यह
जग में सबसे ऊँचा दीखे श्रद्धास्पद तेरा भव्य भाल
हिन्दु संस्कृति के वट विशाल – (२)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *